Book Title: Shravak Pragnapti
Author(s): Keshavlal Premchandra
Publisher: Nirnaysagar Press

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Page 171
________________ सटीकश्रावकप्रज्ञत्याख्यप्रकरणं । १५९ व्यापारासेवनाशून्यमेव सामायिकमिति अत आह इतरयोगासेवनारूपं निवरद्ययोगप्रति सेवनारूपं चेति सावद्ययोगपरिवर्जनवन्निरवद्ययोगपरिसेवनेऽपि अहर्निशं यत्तः कार्य इति दर्शनार्थमे - तदिति । एत्थ पुण सामायारी "सामाइयं सावगेणं कहं कायवंति इह सावो दुविहो इडिपत्तो अणिडिपत्तोय जो सो अणिडिपत्तो सो चेइयघरे साहुसमीवे घरे वा पोसहसालाए वा जत्थ वा वीसमइ अच्छइ वा निघावारो सवत्थ करेइ सबं चउसु ठाणेसु णियमा कायचं चेइयघरे साहुमूले पोसहसालाए घरे आवस्सगं करोति त्ति तत्थ जइ साहुसमासे करेइ तत्थ को विही जइ परंपरभयं णत्थि जइ विय केणइ समं विवाओ णत्थि जइ कस्सइ न धरेइ मा तेण अच्छविगच्छिंथि कड्डिहिइ य धारणगं दट्ठण गेण्हइ मा भज्जिहिइ जइ वावारं ण करेइ ताहे घरे चैव सामाइयें काऊण वच्चइ पंचसमिओ तिगुत्तो इरियाउवउत्तो जहा साहू भासाए सावज्जं परिहरंतो एसणाए कट्टे लेट्टं वा पडिलेहिउं पमज्जिडं एवं आयाणे निक्खिवणे खेल सिंघाणए न विगिंचइ विगिंचंतो वा पडिलेहेइ पमजिय जत्थ चिट्ठइ तत्थ तिगुत्तिणिरोहं करेइ, एयाए विहीए गंता तिविहेण नमिऊण साहुणो पच्छा सामाइयं करेइ, करेमि भंते सामाइयं सावज्जं जोगं पच्चक्खामि दुविहं तिविहेणं जाव साहुं पज्जुवासामित्ति काऊण पच्छा इरियावहियं पडिक्कमइ पच्छा आलोएत्ता वंदइ आयरियाइ जहारायणियाए पुणो वि गुरुं वंदित्ता पडिले हित्ता निविट्ठो पुच्छइ पढइ वा एवं चेइएस विजया

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