Book Title: Shravak Dharm Vidhi Prakaran
Author(s): Haribhadrasuri, Vinaysagar Mahopadhyay, Surendra Bothra
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 13
________________ श्रावक धर्म विधि प्रकरण ) की मौलिक रचना मानते हैं तो उन्हें जिनभद्र (लगभग शक सम्वत् ५३०) और सिद्धसेन क्षमाश्रमण (लगभग शक संवत् ५५०) तथा उनके शिष्य जिनदासगणि महत्तर (शक संवत् ५९८ या वि० सं० ७३३) के पूर्ववर्ती या कम से कम समकालिक तो मानना ही होगा। यदि हम हरिभद्र को सिद्धसेन क्षमाश्रमण एवं जिनदासगणि महत्तर का पूर्ववर्ती मानते हैं तब तो उनका समय विक्रम संवत् ५८५ माना जा सकता है। मुनि जयसुन्दरविजयजी शास्त्रवार्तासमुच्चय की भूमिका में उक्त तिथि का समर्थन करते हुए लिखते हैं - प्राचीन अनेक ग्रन्थकारों ने श्री हरिभद्रसूरि को ५८५ वि०सं० में होना बताया है। इतना ही नहीं, किन्तु श्री हरिभद्रसूरि ने स्वयं भी अपने समय का उल्लेख संवत्-तिथि-वार-मास और नक्षत्र के साथ लघुक्षेत्रसमास की वृत्ति में किया है, जिस वृत्ति के ताडपत्रीय जैसलमेर की प्रत का परिचय मुनि श्री पुण्यविजय सम्पादित 'जैसलमेर कलेक्शन' पृष्ठ ६८ में इस प्रकार प्राप्य है : “क्रमांक १९६, जम्बूद्वीपक्षेत्रसमासवृत्ति, पत्र २६, भाषा : प्राकृत-संस्कृत, कर्ता : हरिभद्र आचार्य, प्रतिलिपि ले० सं० अनुमानत: १४वीं शताब्दी।" इस प्रति के अन्त में इस प्रकार का उल्लेख मिलता है - दति क्षेत्रसमासवृत्तिः समाप्ता। विरचिता श्रीहरिभद्राचार्य : ॥ छ । लघुक्षेत्रसमासस्य वृत्तिरेषा समासतः । रचिता बुधबोधार्थ श्रीहरिभव्रसूरिभिः ॥ १ ॥ पञ्चाशितिकवर्षे विक्रमतो व्रजति शुक्लपञ्चम्याम् । शुक्रस्य शुक्रवारे शस्ये पुष्ये च नक्षत्रे ॥ २ ॥ ठीक इसी प्रकार का उल्लेख अहमदाबाद, संवेगी उपाश्रय के हस्तलिखित भण्डार की सम्भवत: पन्द्रहवीं शताब्दी में लिखी हुई क्षेत्रसमास की कागज की एक प्रति में उपलब्ध होता है। .. दूसरी गाथा में स्पष्ट शब्दों में श्री हरिभद्रसूरि ने लघुक्षेत्रसमासवृत्ति का रचनाकाल वि० सं० (५)८५, पुष्यनक्षत्र शुक्र (ज्येष्ठ) मास, शुक्रवार, शुक्ल पञ्चमी बताया है। यद्यपि यहाँ वि० सं० ८५ का उल्लेख है तथापि जिस वारतिथि-मास-नक्षत्र का यह उल्लेख है उनसे वि०सं० ५८५ का ही मेल बैठता है। अहमदाबाद वेधशाला के प्राचीन ज्योतिष विभाग के अध्यक्ष श्री हिम्मतराम जानी ने ज्योतिष और गणित के आधार पर जाँच करके यह बताया है कि उपर्युक्त

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