Book Title: Shravak Dharm Vidhi Prakaran
Author(s): Haribhadrasuri, Vinaysagar Mahopadhyay, Surendra Bothra
Publisher: Prakrit Bharti Academy

View full book text
Previous | Next

Page 71
________________ श्रावक धर्म विधि प्रकरण ) ४६. वही, २/१०४ ४७. वेसागिहेसु गमणं जहा निसिद्धं सुकुलबहुयाणं। तह हीणायार-जइ-जण-संग सड्ढाण पडिसिद्धं॥ परं दिट्ठिविसो सप्पो वरं हलाहलं विसं। हीणायार अगीयत्थं वयणपसंगं खु णो भद्दो॥ – सम्बोधप्रकरण, श्रावक-धर्माधिकार २,३ ४८. वही, २/७७-७८ बाला वयंति एवं वेसो तित्थंकराण एसोवि। नमणिज्जो धिद्धि अहो सिरसूलं कस्स पुक्करिमो॥ सम्बोधप्रकरण, २/७६ वरं वाही वरं मच्चू वरं दारिद्दसंगमो। वरं अरण्णे वासो य मा कुसीलाणसंगमो ॥ हीणायारो वि वरं मा कुसीलएण संगमो भदं। जम्हा हीणो अप्पं नासइ सव्वं हु सीलनिहिं । वही, २/१०१-१०२ विस्तार के लिए देखें, सम्बोधप्रकरण गुरुस्वरूपाधिकार। इसमें ३७५ गाथाओं में सुगुरु का स्वरूप वर्णित है। ५३. नो अप्पणा पराया गुरुणो कइया वि हुंति सढाणं। जिणवयण रयणनिहिणो सव्वे ते वनिया गुरुणो॥ – सम्बोधप्रकरण, गुरुस्वरूपाधिकार : ३ ५४. लोकतत्त्वनिर्णय, ३२-३३ योगदृष्टिसमुच्चय, १२९। ५६. देखें - जिनरत्नकोश, हरिदामोदर वेलंकर, भंडारकर ओरिएण्टल रिसर्च इन्स्टीट्यूट, पूना १९४४, पृ० १४४ ५२. ७०

Loading...

Page Navigation
1 ... 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134