Book Title: Shravak Dharm Vidhi Prakaran
Author(s): Haribhadrasuri, Vinaysagar Mahopadhyay, Surendra Bothra
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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श्रावक धर्म विधि प्रकरण
इय मिच्छाओ विरमिय, सम्मं उवगम्म भण्इ गुरुपुरओ । अरहंतो निस्संगो, मम देवो दक्खिणा साहू ॥ ४४ 11
४४. अतः (त्रिविध - त्रिविध प्रकार से ) मिथ्यात्व का त्याग कर सम्यक्त्व को अंगीकार करें, गुरु के समीप जाकर उनके समक्ष इस प्रकार सम्यक्त्व स्वीकार करे वीतराग अरिहंत ही मेरे देव हैं, पंच महाव्रतधारी साधु ही मेरे गुरु हैं ।
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44. Abandoning unrighteousness (through these nine ways) one should accept righteousness properly by approaching the guru, and declaring before him The detached Arihant is my only deity, and the ascetics are my revered gurus. अह सो सम्महिड़ी, संपुन्नं भावचरणमिच्छंतो । पालेड़ दंसणायारमहा सो पुण इमो ति ॥
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४५. इस प्रकार सम्यक्त्व की प्रतिपत्ति के पश्चात् वह सम्यक् दृष्टि (श्रावक) अखण्ड भावचारित्र की अभिलाषा करता हुआ आठ प्रकार के दर्शनाचार का पालन करे । दर्शनाचार के आठ भेद आगे वर्णित हैं ।
45. After this first step, the individual (shravak) having right attitude ( or faith) should observe the eight codes of darshanachar (conduct related to right faith) with the desire to attain the perfect attitude of right conduct. The eight codes of darshanachar are as follows.
निस्संकिय निक्कंखिय, निव्वितिमिच्छा अमूढदिट्ठी उवबूहथिरीकरणे, वच्छल्लपभावणे अट्ठ ॥
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४६. निश्शंकितता, निराकांक्षता, निःसंदिग्धता, अविचलित दृष्टि, गुण- ग्राहकता, स्थिरीकरण अर्थात् विचलित होने वाले को धर्म मार्ग में स्थिर करना, स्वधर्मियों के प्रति वात्सल्यभाव, शासन और धर्म की प्रभावना - ये दर्शनाचार के आठ भेद हैं ।
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