Book Title: Shravak Dharm Vidhi Prakaran
Author(s): Haribhadrasuri, Vinaysagar Mahopadhyay, Surendra Bothra
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 130
________________ (श्रावक धर्म विधि प्रकरण ) श्रावकधर्मविधिप्रकरणगाथाकाराद्यनुक्रमः। गाथाद्यपादः गाथा गाथाद्यपादः गाथा ६७ १०१ १०० ११६ ११४ ४३ १०९ ११८ ३८ १०३ २७ अइसेसइड्डिधम्मअन्नाईणं सुद्धाण अप्पडिदप्पडिलेहिय- अब्बंभे पुण विरई अविरुद्धो ववहारो अह मन्नसि होइ यि अह सो सम्मद्दिट्ठी अहिगारिणा खु धम्मो आउयपरिहाणीए आरंभे मिच्छत्ते आरंभे विव मिच्छे आह तिहाऽणुभई जं आहारदेहसक्कार इच्छापरिमाणं खलु इड्डीओणेगविहा इय आरंभेऽणुमई इय मिच्छाओ विरमिय इय सपरपक्खविसयं इहरा ठएइ कणे इह सहसब्भक्खाणं उचियं सेवइ वित्तिं उड्डाहोतिरियदिसिं उस्सुत्तमणुवइ8 उस्सुत्तमायरंतो उस्सुत्तं पुण एत्थं एए पुण विणेया एएसुं चिय खवणाएएहिं तदहिगारिएत्तो यि तेसिमुवएत्थ उ सावगधम्मे एत्थ य पासत्थाई-. एत्थं पुण अहयारा एमाइ बहुविगप्पं एयं अणंतरुत्तं एवमसंतो वि इमो एवं वाया न भणइ एवं संवासकओ ओगाहइ तत्थेव उ करदाणेण य सव्वे करसन्नभमुहखेवाकामं सहासि कालतिएण य गुणिया कंखा देसे एगं कंदप्पं कुक्कुइयं ३२ १०८ ३३ ४० ३४ ६४ ७६

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