Book Title: Shatrunjaya Giriraj Darshan ane Shilp Sthapatya kalama Shatrunjay
Author(s): Kanchansagarsuri
Publisher: Agamoddharak Granthmala
View full book text ________________
श्रीशत्रुंजय - गिरिराज - दशनम्
ले० ११० देरीनं० ४३९ ने० चो० ॥ श्रीबृहत् खरतच्छे श्रीजिनमाणिक्यसूरिपट्टप्रभाकरयुगप्रधानश्रीजिनचंद्रसूरि - राज्ये कपर्दियक्षप्रतिमा का पिता प्र० सागर....॥... ॥.... धति करपणीए हिस मति कल्लेल लगणी.
ले० १११ देरीनं० ८४९/८२ खरतरखसही, लेखः ॥ सं० १६७५ वर्षे वैशाख सुदि १२ तिथौ शुक्रवारे श्रीमदंचलगच्छाधीराज - पुज्यश्रीधर्ममूर्तिसूरि-तत्पट्टालंकारसू रिप्रधानयुगप्रधान - श्रीकल्याणसागरसूरी - विजयिराज्ये श्रीश्रीमालज्ञातीय - अहमदावादवास्तव्य साह भवान भार्या राजलदे पुत्र साह खीमजी रुपजीवाभ्यामेका देहरी कारापीता विमलाचले चतुर्मुखे ॥
ले० ११२ देरीनं० ८४९/८२ खरतरवसही, परिकरः । संवत् १३८१ श्रीधर्म - नाथविंबं श्रीजिनचंद्रसू रिशिष्यैः श्रीजिनकुशलसुरिभिः प्रतिष्ठितं कारीतं च । सा० सामत सुत सा० राउल भार्या तेजु पुत्रः सा० धणपति सा० नरसिंघ सा० गोविंद सा० मीमसिंह उकेशगच्छे (साते उरीगच्छे ) राउल भार्या श्रेयार्थ ॥ छः ॥ शुभं भवतु चतुर्विधसंघ ॥
ले० ११३ देरीनं० ८६ खरतखसही, परिकरः ॥ संवत् १३८१ वर्ष वैशाख यदि ९ गुरौ बारे खरतरगच्छीय - श्रीमद् जिनकुशलसुरिभिः श्रीनमिनाथदेवबिंबं प्रतिष्ठितं... देवकुल प्रदीपक.... श्रीमद् देवगुरुआज्ञा चिंतामणी... संगमकेन.., ।।
ले० ११४ देरीनं० ९० / १ खरतरखसही, पाषाणसिद्धचक्रः । संवत् १७८७ वर्षे महा सुदि ५ शुभदिने राधण पुरवास्तव्य श्रीमालीलघुशाखायां शाह धजा भार्या आणंदीबाई श्रीसिद्धचक्रं कारापीत || प्रतिष्ठितं च श्रीमहावीरदे वाच्छिन्नपरं परायत - श्रीबृहत्खरतरगच्छाधिराज - श्री अकबरशा हिप्रतिबोध - तत्प्रदत्तयुगप्रधानभट्टारक श्री १०७ श्रीश्रीश्री जिनचद्रसू रिशाखायां मोहोपाध्याय - श्रीराजसागरजी तत्शिप्यमहोपाध्याय - श्रीज्ञातधर्म्मजी तत्शिष्यश्रीउपाध्यायश्रीदिवचंद्र तत्शिप्यपंडीतप्रवरदेवचद्रयुतेन ॥ श्री गौमुख, चक्रेश्वरी, कवड, माणभद्रयक्ष चतुर्विशति यक्षयक्षीणी षोडस विद्यादेवि श्रीजिनशासनभक्त देवदेविगण शासनाधिष्ठायकसर्वक्षेत्राधीशा शांतिकरा सन्तु ॥ श्रीरस्तु ॥ श्री ॥
ले० ११५ देरीनं० ९० / २ खरतरखसही, लेखः ॥ संवत् १६७५ वर्षे वैशाख सुदि १२ - - श्री अहमदावाद - वास्तव्य - चारभाईआगांत्रे ओसवालज्ञातीय श्रीपालसुत शाहचांपसी सुत शाह करमसी भारजा बाईकरमादे खरतर गच्छे || पीपल्या || शुभं भवतु ॥
(३२)
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org
Loading... Page Navigation 1 ... 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548