Book Title: Shaddarshan Samucchaya
Author(s): Haribhadrasuri, Mahendramuni
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 414
________________ ३८८ षड्दर्शनसमुच्चये [ का. ५७. ६ ४०७ - ६४०७. नापि संयोगः, स हि साध्यसाधनादीनां भवन् किं ततो भिन्नो वा स्यादभिन्नो वा। प्राचि पक्षे कथं विवक्षितानामेवैष किं नान्येषामपि। भेदाविशेषात्, न च समवायोऽत्र नियामकः तस्य सर्वत्र सदृशत्वात् । द्वितीये तु साध्यादीन्येव स्युः न कश्चित्संयोगो नाम कथंचिद्भिन्नसंयोगाङ्गीकारे तु परवादाश्रयणं भवेत् । $ ४०८. नापि विरोधोऽभिधातव्यः, तस्याप्येकान्तमतेऽसंभवात् । स हि सहानवस्थानं परस्परपरिहारो वा भवेत् । तेत्राये कि कदाचिदप्येकत्रानवस्थानमुत कियत्कालं स्थित्वा पश्चादनवस्थानम् । आये पक्षेऽहिनकुलादीनां न विरोधः स्यात् अन्यथा त्रैलोक्येऽप्युरगादीनामभावः। द्वितीये तु नरवनितावेरपि विरोधः स्यात्, तयोरपि किंचित्कालमेकौ स्थित्वापगमात् । किं च वडवानलजलधिजलयोविद्युदम्भोदाम्भसोश्च चिरतरमेकत्रावस्थातः कथमयं विरोधः । परस्परपरिहारस्तु सर्वभावानामविशिष्टः कथमसौ प्रतिनियतानामेव भवेत् । ६४०७. यदि साध्य और साधनका परस्पर संयोग सम्बन्ध माना जाय, तो वह संयोग उनसे भिन्न होगा या अभिन्न ? यदि भिन्न है; तो 'वह इन्हीं साध्य-साधनका संयोग है अन्यका नहीं' यह नियम नहीं हो सकेगा। जब संयोग विवक्षित साध्य-साधनोंसे उतना ही भिन्त है जितना कि अविवक्षित साध्य और साधनोंसे; तो क्या कारण है कि वह इन्हींका कहा जाय और अन्य साध्यसाधनोंका नहीं कहा जाय । समवाय तो नित्य और व्यापी होनेसे सभीके प्रति समान दृष्टि रखनेवाला है, अतः वह भी संयोगका अमुक साध्य-साधनोंसे ही गठबन्धन नहीं करा सकता। यदि साध्य आदिसे संयोग अभिन्न है तो साध्य और साधनकी ही सत्ता रहेगी न कि संयोगकी, अभेदमें तो एक ही वस्तु बच सकती है। कथंचिद् भेद माननेपर तो अनेकान्तवादको शरणमें पहुंचना होगा। ६४०८. साध्य और साधनमें परस्पर विरोध भी नहीं कह सकते; क्योंकि सर्वथा एकान्त पक्षमें विरोधका सिद्ध करना भी असम्भव है। बताइए साध्य और साधनमें सहानवस्थान रूप विरोध होगा या परस्परपरिहारस्थिति रूप? उनमें सहानवस्थान रूप विरोध भी क्यों माना जाता है-क्या वे कभी भी एक जगह नहीं रह सकते या कुछ देर तक साथ रहकर पीछे अलग हो जाते हैं ? यदि कभी भी एक जगह न रहनेवालोंमें ही सहानवस्थान रूप विरोध माना जाय; तो सांप और नेवला आदि भी कभी-कभी एक साथ भी रहते हैं अतः उनमें सहानवस्थान विरोध नहीं कहना चाहिए। यदि उनमें सहानवस्थान विरोध हो तो संसारसे सांपोंका लोप ही हो जायेगा । स्त्री और पुरुष भी कुछ देर तक इकट्ठे रहकर पीछे अलग हो जाते हैं; अतः उनमें भी सहानवस्थान विरोध मानना चाहिए। यदि कुछ देर तक एक साथ रहकर पीछे तुरन्त ही अलग हो जानेवालोंमें ही विरोध माना जाय, तो बड़वानल-समुद्री आग और समद्रका जल, बिजली और बादलोंमें रहनेवाला पानी, ये सभी बहुत देर तक एक साथ रहते हैं अतः इनमें विरोध नहीं होना चाहिए । परस्पर परिहार स्थिति रूप विरोध तो सभी पदार्थों में साधारण रूपसे हुआ ही करता है । हर एक पदार्थ दूसरे पदार्थोंसे भिन्न अपनी स्थिति रखता ही है। अतः इस सर्व साधारण विरोधका अमुक साध्य-साधनोंसे ही सम्बन्ध कैसे जोड़ा जा सकता है ? १. "द्विविधो हि पदार्थानां विरोधः । अविकलकारणस्य भवतोऽन्यभावेऽभावाद् विरोधगतिः। शीतोष्णस्पर्शवत् । परस्परपरिहारस्थितिलक्षणतया वा भावाभाववत् ।"-न्यायवि. ३७२-७५। २. तन्नाद्यः किं भ. १, प. १, २। ३.-कत्रमिति स्थि-भ. १, प. १,२। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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