Book Title: Shaddarshan Samucchaya
Author(s): Haribhadrasuri, Mahendramuni
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 467
________________ - का० ७४. ६५३४ ] मीमांसकमतम् । ४४१ कृष्टेऽर्थे बुद्धिः शाब्दम् " [ शाबरभा. १।१।५ ] इति । अयं शब्दोऽस्यार्थस्य वाचक इति यज्ज्ञानं तच्छब्दज्ञानम् । तस्मादनन्तरं शब्दे श्र ते ज्ञानावसंनिकृष्टेऽर्थे अप्रत्यक्षेऽप्यर्थे घटादौ बुद्धिज्ञानं शाब्दं प्रमाणम् । शब्दादप्रत्यक्षे वस्तुनि यज्ज्ञानमुदेति तच्छाब्दमित्यर्थः । अत्र मते शब्दस्येदं स्वरूपं प्ररूप्यते । नित्या आकाशवत्सर्वगताश्च वर्णाः । ते च ताल्वोष्ठादिभिरभिव्यज्यन्ते न पुनरुत्पाद्यन्ते विशिष्टानुपूर्वीका वर्णाः शब्दः । नित्यः शब्दार्थयोर्वाच्यवाचक संबन्ध इति । ६५३४. अथोपमानमाह 'उपमानं तु' इत्यादि । उपमानं पुनः कीर्तितम् । तत्किरूपमित्याह 'प्रसिद्धार्थस्य' इत्यादि । प्रसिद्ध उपलब्धोऽर्थो गवादिर्यस्य पुंसः स प्रसिद्धार्थः ज्ञातगवादिपदार्थ इत्यर्थः । तस्य गवयदर्शने साधर्म्याद्गवयगतसादृश्यात्परोक्षे गवि अप्रसिद्धस्य पुरानुपलब्धस्य सादृश्यसाधनं ज्ञानम् । अस्येदं सूत्रं " उपमानमपि सादृश्यादसंनिकृष्टेऽर्थे बुद्धिमुत्पादयति, यथा गवयदर्शनं गोस्मरणस्य" [शावरभा. १।११८ ] इति । गवयसादृश्यादसंनिकृष्टेऽर्थे परोक्षस्य गोः सादृश्ये गोस्मरणस्येति । गवि स्मरणं यस्य पुंसः स गोस्मरणः तस्य गोस्मरणवत इत्यर्थः । शेषं स्पष्टम् । तत्रेदं तात्पर्यम् - येन प्रतिपत्रा गौरुपलब्धो न गवयो न चातिदेशवाक्यं 'गौरिव गवय' इति श्रुतम् तस्यारण्ये पर्यंटतो गवयदर्शने प्रथम उपजायते परोक्षे गवि सादृश्यज्ञानं यदुत्पद्यते 'अनेन सदृशों गौः' इति, तदुपमानमिति । तस्य विषयः सादृश्यविशिष्टः परोक्षो गौः, तद्विशिष्टं वा बुद्धिः शाब्दम् ' 'यह शब्द इस अर्थका वाचक है' इस संकेतज्ञानको शब्दज्ञान कहते हैं । इस संकेत ग्रहणके बाद शब्दको सुननेपर जो परोक्ष अर्थका भी ज्ञान होता है उसे शाब्द प्रमाण कहते हैं । प्रत्यक्ष भी घटपटादि पदार्थोंका शाब्द ज्ञान होता है । तात्पर्य यह कि शब्दसे होनेवाले अप्रत्यक्ष वस्तुविषयक ज्ञानको शाब्द कहते हैं । मीमांसक लोग वर्णोंको आकाशकी तरह नित्य तथा सर्वगत मानते हैं । तालु, मुख, नासिका आदिसे ये वर्ण प्रकट होते हैं, इनकी उत्पत्ति नहीं होती। विशिष्ट आनुपूर्वी रचनात्राले वर्णं ही शब्द कहलाते हैं । शब्द भी नित्य हैं । शब्द और अर्थका वाच्यवाचक सम्बन्ध भी नित्य है । $ ५३४. उपमानका लक्षण - प्रसिद्ध - उपलब्ध हैं गो आदि पदार्थ जिसको उस प्रसिद्धार्थगौ आदिको अच्छी तरहसे जाननेवाले पुरुषको गवय - रोजको देखते हो गवयमें रहनेवाली समानासे परोक्ष गौमें गवयके सादृश्यका ज्ञान होना उपमान है । यद्यपि गौमें गवयकी समानता मौजूद थी परन्तु उपमानके पहले पुरुषको उसकी समानताका ज्ञान नहीं था । उपमान प्रमाणसे 'गौ इस गवयके समान है' यह सादृश्य ज्ञान हो जाता है । उपमानका लक्षणसूत्र यह है 'उपमानमपि सादृश्यादसंनिकृष्टेऽर्थे बुद्धिमुत्पादयति यथा गवयदर्शनं गोस्मरणस्य' - गवयकी सदृशता से परोक्षसामने अविद्यमान गोके सादृश्यका ज्ञान होना उपमान है । यह उपमान गोका स्मरण करनेवाले पुरुषको ही होता है । तात्पर्य - जिस प्रतिपत्ता - जाननेवाले ज्ञाताने गौको तो देखा है पर आज तक गवयको नहीं देखा और न 'गायके समान गवय होता है' इस अतिदेश - परिचय वाक्यको ही सुना है उस पुरुषको एक दिन जंगलमें घूमते समय एकाएक गवय दिखाई देता है । वह पहले ही पहले गवयको देखकर उससे परोक्ष गोकी समानता मिलाता है और समझ लेता है कि-' इसके समान गो है' यह परोक्ष गोमें होनेवाला गवय-सादृश्यज्ञान उपमान कहलाता है । १. " शास्त्रं शब्दविज्ञानात् असन्निकृष्टेऽर्थे विज्ञानम् । " - शाबर भा. ११५। २. " अपौरुषेयः शब्दस्यार्थेन संबन्धः ।” –शाबरभा. १1३1५। ३. " तस्माद्यत्स्मर्यते तत्स्यात्सादृश्येन विशेषितम् । प्रमेयमुपमानस्य सादृश्यं वा तदन्वितम् ॥ प्रत्यक्षेणावबुद्धेऽपि सादृश्ये गवि च स्मृते । विशिष्टस्यान्यतोऽसिद्धेरुपमानप्रमाणता ॥ " - मी. इको. उपमान. इको. ३७-३८ । ५६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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