Book Title: Shaddarshan Samucchaya
Author(s): Haribhadrasuri, Mahendramuni
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 488
________________ ૪૬૨ षड्दर्शनसमुच्चये इति श्रोतपागणगगनाङ्गणदिनमणिश्रीदेवसुन्दरसूरिपदपद्मोपजीविश्री गुणरत्नसूरिविरचितायां तर्क रहस्यदीपिकायां षड्दर्शनसमुच्चयटीकायां जैमिनीयचार्वाकी व मतस्वरूपनिर्णयो नाम षष्ठोऽधिकारः ॥ तत्समाप्तौ च समाप्तेयं तर्करहस्यदीपिकानाम्नी षड्दर्शनसमुच्चयवृत्तिः । इति श्री तपागगरूपी आकाशके सूर्य श्री देवसुन्दरसूरिके चरणोपजीवी श्री गुप्णरत्न सूरि द्वारा रची गयी षडदर्शनसमुचयको तर्करहस्यदीपिका नामकी टीकामें जैमिनीय और चार्वाक मतके स्वरूपका निर्णय करनेवाला छठवाँ अधिकार पूर्ण हुआ । Jain Education International १. तपावणनभोगण -प. १, २ । इस अधिकारकी समाप्ति के साथ ही साथ यह तर्क रहस्यदीपिका नामकी षड्दर्शनसमुपाय की वृत्ति भी समाप्त होती है । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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