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षड्दर्शनसमुच्चये
[ का०६८.६५१७इति तदपि न रागद्वेषमूलनिग्रहानुग्रहप्रस्तानां कामासेवनविहस्तानामसंभाव्यमिदमेषामिति ।
६५१७. न च प्रत्यक्षं तत्साधकम् “संबद्धं वर्तमानं च गृह्यते चक्षुरादिना" [ मी. प्रत्यक्ष. सू. श्लो. ८४ ] इति वचनात् । न चानुमानम् प्रत्यक्षदृष्ट एवार्थे तत्प्रवृत्तेः। न चागमः, सर्वज्ञस्यासिद्धत्वेन तदागमस्यापि विवादास्पदत्वात् । न चोपमानम्, तदपरस्यापि सर्वज्ञस्याभावादेव । न चापत्तिरपि, सर्वसाधकस्यान्यथानुपपन्नपदार्थस्यादर्शनात् । ततः प्रमाणपञ्चकाप्रवृत्तेरभावप्रमाणगोचर एव सर्वज्ञः। प्रयोगश्चात्र-नास्ति सर्वज्ञः, प्रत्यक्षादिगोचरातिक्रान्तत्वात, शशशृङ्गवदिति ॥६॥ 5 ५१८. यदि देवस्तद्वचनानि च न सन्ति, तर्हि कुतोऽतीन्द्रियार्थज्ञानमित्याशङ्क्याह
तस्मादतीन्द्रियार्थानां स.क्षाद्रष्टुरभावतः ।
नित्येभ्यो वेदवाक्येभ्यो यथाथत्वविनिश्चयः ॥६९॥ $ ५१९. व्याख्या-तस्मात् ततः कारणात् । कुतो हेतुतः। इत्याह-अतीन्द्रियार्थानाम् इन्द्रिय हो सकती है?" तात्पर्य यह कि कुमारिलका झुकाव स्पष्ट रूपसे ब्रह्मा, विष्णु आदि दिव्य शरीरियोंको सर्वज्ञ माननेकी ओर है। अतः इन्हें सर्वज्ञ मान ही लेना चाहिए।
समाधान-राग-द्वेष मूलक शिष्टानुग्रह तथा दुष्ट निग्रह करनेवाले कामसेवन आदि विकारोंसे युक्त सरागी ब्रह्मा, विष्णु आदिमें सर्वज्ञताकी बात करना सचमुच सर्वज्ञताका परिहास करना
५१७. सर्वज्ञकी सत्ता सिद्ध करनेकी शक्ति प्रत्यक्ष आदि किसी भी सदुपलम्भक प्रमाणमें नहीं है। प्रत्यक्ष तो असम्बद्ध तथा अवर्तमान सर्वज्ञको सत्ता नहीं साध सकता; क्योंकि "सम्बद्ध और वर्तमान पदार्थ हो चक्षुरादि इन्द्रियोंसे गृहीत होते हैं।" यह एक सर्वसम्मत सिद्धान्त है। प्रत्यक्षके द्वारा देखे गये पदार्थमें ही अनुमानकी प्रवृत्ति होती है अतः अत्यन्त परोक्ष सर्वज्ञको जाननेकी हिम्मत अनुमान भी नहीं कर सकता। जब सर्वज्ञ ही विचाराधीन है तब सर्वज्ञप्रणीत आगम असिद्ध होनेके कारण सर्वज्ञका साधक नहीं हो सकता। दूसरा कोई सर्वज्ञ नहीं दिखाई देता, जिससे उपमान सर्वज्ञको सदृशता मिलाकर उसकी सत्ता साध सके। सर्वज्ञका साधक कोई अविनाभावी पदार्थ भी नहीं दिखाई देता, जिसके बलपर अर्थापत्ति सर्वज्ञकी सत्ता साधनेको तैयार हो सके । इस तरह सद्भावको साधनेवाले प्रत्यक्ष आदि पांच प्रमाणोंका विषय न होनेके कारण प्रमाणपंचकाभावमूलक अभाव प्रमाण ही सर्वज्ञको विषय करके उसकी सत्ता समूल उखाड़ फेंकेगा। इस तरह यह निर्बाध रूपसे कहा जा सकता है कि-सर्वज्ञ है ही नहीं, क्योंकि वह सदुपलम्भक प्रत्यक्ष आदि पांच प्रमाणोंका विषय नहीं होता, जैसे कि खरगोशका सींग ॥६॥
६५१८. यदि सर्वज्ञ और सर्वज्ञप्रणीत आगम नहीं हैं तब अतीन्द्रिय पदार्थोंका परिज्ञान कैसे होगा? इस शंकाका परिहार करते हुए कहते हैं
इस तरह जब अतीन्द्रिय पदार्थोंको कोई साक्षात्कार करनेवाला है ही नहीं, तब नित्य वेदवाक्योंसे ही अतीन्द्रियार्थोंका यथावत् परिज्ञान हो सकता है ॥६९॥
६५१९. जब इन्द्रियोंके अगोचर अतीत अनागतकालीन पदार्थ, आत्मा, पुण्य-पाप, काल, स्वर्ग, नरक, परमाणु आदि देश काल स्वभावसे विप्रकृष्ट अतीन्द्रिय पदार्थोंका साक्षात्कार करने
१. “सर्वज्ञो दृश्यते तावन्नेदानीमस्मदादिभिः। निराकरणवच्छक्या न चासीदिति कल्पना ॥ न चागमेन सर्वज्ञस्तदीयेऽन्योन्यसंश्रयात् । नरान्तर प्रणीतस्य प्रामाण्यं गम्यते कथम् ॥"-मी. श्लो. चोदनासू. श्लो, ११७-८॥
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