Book Title: Sanuwad Vyavharbhasya
Author(s): Dulahrajmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 13
________________ (१२) ८६. ९८. मितभाषिता का स्वरूप। अपरुषभाषिता का स्वरूप। १२४. प्रासंगिकभाषिता की सफलता। १२५,१२६. अप्रासंगिकभाषिता का स्वरूप। अनुविचिन्त्यभाषिता। १२७-३४ मानसिक विनय के दो भेद। १३५. औपचारिक विनय के सात भेद तथा उनका विस्तृत विवेचन। १३६-३९. स्वपक्ष और विपक्ष में किया जाने वाला १४०. लोकोपचार विनय। १४१-४३. प्रतिरूप विनय के भेद तथा उनका वर्णन। ८७-९०. अनुलोमवचन का अनुपालन। १४४. ९१,९२. प्रतिरूपकायक्रिया विनय। १४५-४८. ९३. विश्रामणा (शरीर चांपने) के लाभ। १४९-१५०. गुरु के प्रति अनुकूल-वर्तन के दृष्टान्त। १५१. अप्रशस्त समिति, गुप्ति के लिए प्रायश्चित्त का १५२-१५३. विधान। गुरु के प्रति उत्थानादि विनय न करने पर प्रायश्चित्त १४५. का उल्लेख। १५५. प्रतिक्रमणार्ह प्रायश्त्ति। १५६. ९९-१०५. तदुभय प्रायश्चित्त का वर्णन। १५७,१५८. १०६,१०७. महाव्रत अतिचार सम्बन्धी तदुभयाई प्रायश्चित्त १५९. का कथन। १०८,१०९. विवेकाह प्रायश्चित्त। ११०. व्युत्सह प्रायश्चित्त। १६१. कायोत्सर्ग प्रायश्चित्त का विषय, परिमाण, कब १६२. और क्यों का समाधान। १६३,१६४. ११४. उद्देश, समुद्देश आदि में कितने श्वासोच्छ्वास का १६५-६७. प्रायश्चित्त। ११५. पहले उद्देश तथा पश्चात् प्रस्थापना का उल्लेख। । १६९,१७०. ११६. पहले प्रस्थापना फिर उद्देश आदि का समाधान। ११७,१८. वस्त्रादि के स्खलित होने पर नमस्कार महामंत्र १७१. का चिंतन अथवा सोलह, बत्तीस आदि १७२. श्वासोच्छ्वास का कायोत्सर्ग। १७३. ११९. प्राणवध आदि में सौ श्वासोच्छ्वास का कायोत्सर्ग।। १७४. १२०. प्राणवध आदि में २५ श्लोकों का ध्यान तथा स्त्रीविपर्यास में १०८ श्वासोच्छवास के कायोत्सर्ग | १७५. को प्रायश्चित्त। १७६. उच्छ्वास का कालमान-श्लोक का एक चरण। १२२,१२३. कायोत्सर्ग में कौन सा ध्यान-कायिक, वाचिक | १७७. Jain Education International For Private & Personal Use Only या मानसिक? प्रश्न तथा उत्तर। कायोत्सर्ग के लाभ। तपोर्ह प्रायश्चित्त का कथन तथा उसके विविध प्रकार। मासिक आदि विविध प्रायश्चित्तों का विधान। मूल, अनवस्थित और पारंचित प्रायश्चित्त के विषय। प्रतिसेवना प्रायश्चित्त का औचित्य। आरोपणा प्रायश्चित्त का कालमान। आरोपण प्रायश्चित्त छह मास ही क्यों ? धान्य पिटक का दृष्टान्त। किसके शासनकाल में कितना तपःकर्म ? विषम प्रायश्चित्त दान में भी तुल्य विशोधि। प्रतिकुंचना प्रायश्चित्त के भेद-प्रभेद। बृहत्कल्प और व्यवहार दोनों सूत्रों में विशेष कौन? दोनों के अभिधेय भेद का दिग्दर्शन तथा विविध उदाहरण। कल्प और व्यवहार में प्रायश्चित्त दान का विभेद। अभिन्न व्यंजन में भी अर्थभेद। शब्द-भेद से अर्थ-भेद। प्रायश्चित्ताह पुरुष। कृतकरण के भेद-सापेक्ष तथा निरपेक्ष। निरपेक्ष कृतकरण के तीन भेद। अकृतकरण के दो भेद-अनधिगत तथा अधिगत। प्रकारान्तर से पुरुषभेद मार्गणा। कृतकरण का स्वरूप। निरपेक्ष कृतकरण के प्रायश्चित्त का स्वरूप। सापेक्ष कृतकरण के प्रायश्चित्त का स्वरूप। अकृतकरण की अधिगत विषयक प्ररूपणा। प्रायश्चित्तदान के भेद से आचार्य आदि के तीन भेदों का उल्लेख। गीतार्थ और अगीतार्थ के दोषसेवन में अंतर। दोष के अनुरूप प्रायश्चित्तदान का उल्लेख। गीतार्थ के दर्प प्रतिसेवना की प्रायश्चित्तविधि। अज्ञानवश अशठभाव से किए दोष का प्रायश्चित्त नहीं। जानते हुए दोष का सेवन करने वाला दोषी। तुल्य अपराध में भी प्रायश्चित्त की विषमता क्यों ? कैसे? गीतार्थ के विषय में विशोधि का नानात्व। www.jainelibrary.org १६०. १६८.

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