Book Title: Sanskrit Hindi Kosh Author(s): Vaman Shivram Apte Publisher: Nag Prakashak View full book textPage 5
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir छन्दों के विषय में है—- इसमें गण, मात्रा, तथा परिभाषा आदि सभी आवश्यक सामग्री रख दी गई है। इसके तैयार करने में मुख्यतः वृत्तरत्नाकर और छन्दोमंजरी का ही आश्रय लिया है । परन्तु उन छंदों को भी जो माघ, भारवि, दण्डी, अथवा भट्टि ने अतिरिक्त रूप से प्रयुक्त किया है, इसमें रख दिया गया है। दूसरे परिशिष्ट में कालिदास, भवभूति और बाण आदि संस्कृत के महाकवियों की कृति तथा जन्म विवरण आदि दिया गया है । इस विषय में मैंने मैक्समूलर की 'इंडिया' तथा वल्लभदेव की सुभाषितावली की भूमिका से जो कुछ ग्रहण किया है उसके लिए वे धन्यवाद के पात्र हैं। तीसरा परिशिष्ट भौगोलिक शब्दों का संग्रह है, इसमें मैंने निगम के 'एन्सेंट ज्याग्राफी' से तथा इंग्लिश संस्कृत डिक्शनरी में उपसृष्ट श्री बोरूह के निबंध से बड़ी सहायता प्राप्त की है तदर्थ में हृदय से उनका आभार मानता हूँ । कोश के क्रम का ज्ञान आगे दिये गये "कोश के देखने के लिए आवश्यक निर्देश" से भली-भाँति हो सकेगा। मैं केवल एक बात पर आपका ध्यान खींचना चाहता हूँ कि मैंने इस कोश में सर्वत्र 'अनुस्वार' का प्रयोग किया है । व्याकरण की दृष्टि से चाहे यह प्रयोग सर्वथा सही न हो, तो भी छपाई की दृष्टि से सुविधाजनक है । और मुझे विश्वास है कि कोश की उपयोगिता पर इसका कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ता है । समाप्त करने से पूर्व मैं उन सब विविध कृतियों का कृतज्ञ हूँ जिनसे इसको तैयार करने में मुझे सहायता मिली। इसके लिए सबसे पहली रचना प्रोफ़ेसर तारानाथ तर्कवाचस्पति की 'वाचस्पत्य' । इस कोश में दी गई सामग्री का अधिकांश उसी से लिया गया है, यद्यपि कई स्थानों पर संशोधन भी करना पड़ा है। वर्तमान संस्कृत-इंग्लिश डिक्शनरियों में जो शब्द, अर्थ और उद्धरण उपलब्ध नहीं हैं वे इसी कोश से लिये गये हैं। दूसरा कोश “दी संस्कृत-इंग्लिश डिक्शनरी” प्रो० मोनियर विलियम्स का है जिनका मैं बहुत ऋणी हूँ । इस कोष का मैंने पर्याप्त उपयोग किया है। अतः मैं इस सहायता का आभारी हूँ। अन्त में मैं 'जर्मन वर्टरबुश' के कर्ता डा० रॉय और बॉलिक को धन्यवाद दिये बिना नहीं रह सकता। इनके कोश में अनेक उद्धरण और संदर्भ हैं-परन्तु अधिकांश वैदिक साहित्य से लिये गये हैं ! इसके विपरीत मैंने अधिकांश उद्धरण अपने उस संग्रह से लिये हैं जो भवभूति, जगन्नाथ पंडित, राजशेखर, बाण, काव्य प्रकाश, शिशुपालवध, किरातार्जुनीय, नैषवचरित, शंकरभाष्य और वेणीसंहार आदि की सहायता से तैयार किया गया है। इसके अतिरिक्त उन ग्रन्थकर्ताओं और सम्पादकों का भी मैं कृतज्ञ हूँ जिनकी सहायता यदा-कदा प्राप्त करता रहा हूँ । अन्त में मुझे विश्वास है कि 'स्टुडेंट्स संस्कृत - हिन्दी कोश' केवल उन विद्यार्थियों के लिए ही उपयोगी सिद्ध नहीं होगी जिनके लिए यह तैयार की गई है बल्कि सस्कृत के सभी पाठक इससे लाभ उठा सकेंगे। कोई भी कृति चाहे वह कितनी ही सावधानी से क्यों न तैयार की गई हो - सर्वथा निर्दोष नहीं होती । मेरा यह कोश भी कोई अपवाद नहीं है । और विशेष रूप से उस अवस्था में जबकि इसे छापने की शीघ्रता की गई हो । अतः मैं उन व्यक्तियों से, जो इस कोश को अपनाकर मेरा सम्मान करें, यह निवेदन करता हूँ कि जहाँ कहीं इसमें वे कोई अशुद्धि देखें, अथवा इसके सुधारने के लिए कोई उत्तम सुझाव देना चाहें, तो मैं दूसरे संस्करण में उनको समावेश करने में प्रसन्नता अनुभव करूँगा । पूना, १५ फरवरी, १८९० । For Private and Personal Use Only वी० एस० आप्टेPage Navigation
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