Book Title: Sammetshikhar Jain Maha Tirth
Author(s): Jayprabhvijay
Publisher: Rajendra Pravachan Karyalay

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Page 8
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नाम से संबोधित करते है, किन्तु इस लकीर से हटकर अज्ञानियों की भाषा का प्रयोग किया जाय तो यह श्मशान भूमि है तो क्या कभी किसी ने आज तक श्मशान भूमि के विकास किये है | इतिहास पढ़ने पर उत्तर यही मिलेगा कि श्मशान भूमि का विकास नहीं होता है। तो यह दिगम्बर बंधु व लालुप्रसादजी यादव क्यों श्वेताम्बर जैन समाज के सम्मुख विकास के नाम पर योजना बनाकर व्यर्थ का अनाधिकार युक्त प्रश्न पैदाकर हजारों लाखों श्री सम्मेतशिखरजी के उपासक व आराधक भक्त मंडल शांति से उपासना करते हैं तो आराधना के मध्य ट्रस्ट मंडल के ट्रस्टियों के दिलों में यह विद्वेष की ज्वाला क्यों ? प्रज्जवलित करते है और अपने देवाधिदेव परमात्मा की घोर आशातना पैदाकर निकाचित कर्मों का बंधन क्यों करते हैं। क्या दिगम्बर भाई अपने श्वेताम्बर भाईयों के दिल में रही मैत्री कारूण्य और मध्यस्थ भावनाओं के दिशा दर्शन से देश राष्ट्र व समाज एवं मानव मात्र के लिये एवं तिर्यन्च जीव मात्र के लिये किये गये कार्यों का अनुसरण कर इतिहास में कही पर भी नाम कर अपनी देशभक्ति, राष्ट्रभक्ति स्वामिभक्ति का परिचय देने का साहस करेंगे। देश धर्म की रक्षा के लिये श्री विक्रमादित्य, हेमु, कंकु चौपड़ा, जैन तथा उसने २२ महायुद्ध देश रक्षा के लिये किये व शेरशाहसूरि व बाबर के मध्य का काल जो १२ वर्ष का है उन १२ वर्षों में विक्रमादित्य हेमु ने दिल्ली की गादी पर बैठकर श्रमण भगवान महावीर के अहिंसा धर्म का अनुसरण करके देश के सामने जीवों की रक्षा से देश का शासन अच्छी तरह से चल सकता है। जिस समय विक्रमादित्य हेमु का दिल्ली की गादी पर राज्याभिषेक हुआ था, उस रोज संपूर्ण भारत वर्ष में अपने-अपने प्रदेश की राजधानी में शांति स्नात्र महापूजन पढ़ाया गया था। श्री वस्तुपाल - तेजपाल दोनों बंधुओ ने देश धर्म रक्षार्थ चौसठ महायुद्ध किये व विश्व प्रसिद्ध कलायुक्त अनुपम आबु देलवाड़ा में उस समय यानि आज से ४५० वर्ष पूर्व १८ करोड़ रुपये खर्च किये थे जीवन में साढ़े बारह भव्य व विशाल संघ पद यात्राएं की थी। प्रथम संघ में साथ में ७००००० सात लाख मनुष्य थे जिसका विस्तृत वर्णन अंतिम पृष्ठों पर देखें । इन दोनों भाइयों ने १० लाख जैन मुर्तियों का निर्माण करवाया था १ लाख नूतन जैन मंदिर बनवाये थे। भारत वर्ष में रहने वाले मानव मात्र को अपने-अपने धर्म के अनुरूप मंदिर बनवाने के लिये और देश की पवित्र नदियों पर जैसे गंगा, जमुना, सरस्वती, नर्मदा आदि पवित्र नदियों पर धर्म स्थल बनवायें। दोनों For Private And Personal

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