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हुआ, निरापद यात्राएँ संभव हुईं, तब इस तीर्थराज की जाहाजलाली खूब बड़ी व आज यहाँ यात्रियों को किसी भी प्रकार की तकलीफ नहीं होती है।
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सम्मेतशिखर पारसनाथ पहाड़ नामकरण से भारतीय नक्शे में दर्शाता है। भगवान पारसनाथ के इस तीर्थ पर निर्वाण प्राप्त करने के पश्चात् से इस पर्वतमाला को पारसनाथ पहाड़ कहा जाता है। जिनेश्वर भगवनों के समाधि स्थलों के शिखरों की सम्मिलित इस पर्वत श्रेणी का सम्मेतशिखर नाम खूब सार्थक है और जैन सूत्रों एवं प्राचीन ग्रंथों में इसे इसी नाम से उल्लेखित किया गया है। बिहार प्रदेश के हजारीबाग जिले में रेलवे लाइन एवं कलकत्ता से दिल्ली जाने वाली मुख्य सड़क पर यह तीर्थ आया हुआ है। रेल यात्रियों को पारसनाथ अथवा गिरडिह स्टेशन पर उतरना चाहिए। आवागमन की इस सुगमताओं ने यात्रियों की यहाँ की यात्रा के लिए खूब खूब आकृष्ट किया है। इन दिनों प्रतिवर्ष अनेक संघ यात्राएँ मोटर एवं रेल द्वारा होती हैं, जिनमें हजारों यात्री भाग लेते हैं। तीर्थराज पर यात्रियों के रहने, भोजन आदि की अति उत्तम व्यवस्था है।
तीर्थ क्षेत्र की यात्रा महापुण्य प्रदात्री होती है। ऐसी हर आत्माओं की मान्यता है। लेकिन सिद्धक्षेत्र तीर्थों की यात्राएँ अत्यन्त प्रभावशालिनी होने से युगों और भवान्तरों के कर्मभल का प्रक्षालन कर देती है ।
यात्रा कुगति अर्गला, पुण्य सरोवर पाल । शिवगतिनी साहेलडी, आपे मंगल माल ।. टाले दाह तृष्णा, हरे गाले ममता पंक। तीन गुण तीरथ लहे, ताकी भजो निःशंक ॥ अन्य स्थले कृतं पापं, तीर्थ स्थले विनश्यति । सिद्ध क्षेत्रीय तीर्थों की यात्रा का फल देखिए:
दस कोटि अणुव्रत धरा, भक्ते जमाड़े सार । १ सिद्ध क्षेत्र यात्रा करें, लाभ तणो नहीं पार ॥ २
सम्मेतशिखर तीर्थ महिमा में अनेकानेक कवियों ने भावपूर्ण पद गाये हैं:नन्दीश्वर जे फल होवे, तेथी बमणेह फल कुण्डल गिरि होवे ॥ ३ त्रिगुण रुचिक गिरी चउगणु गजदंता तेथी बमणेह फल जंबु महेता ॥ भ. ग. घट गणु फल धातकी चैत्य जुहारे, छत्रीस गणेरु फल पुक्खल विहारे ॥ भ.पु.
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