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वरना....समर्पण नहीं सीखा है हमने, हमने सीखा है संघर्ष और ऐसा जमकर, डटकर संघर्ष कि पीछे नहीं हटे कभी, नीचे नहीं झुके कभी।
आज स्थिति यही उत्पन्न हुई है कि..... 'तेरी गठरी में लगा चोर - मुसाफिर जाग जरा।'
मौसम आया है तो इसे त्याग और बलिदान से सजाओ, जीवन को धर्म पर जलाओ नहीं तो भावी इतिहास हमें निकम्मी संतान ठहराएँगे और भावी पीढ़ियाँ हमारे नाम को कौसेंगी, भविष्य हमारे नाम को स्मरण करते शर्माएगा। वंशजों के सिर धरती में गढ़ जाएँगे। हमको धरती में गढ़ना नहीं है, जरूरत पड़ी तो धरती को उठा लेना है।
. शाश्वत धर्म से
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