Book Title: Sammetshikhar Jain Maha Tirth
Author(s): Jayprabhvijay
Publisher: Rajendra Pravachan Karyalay
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ।। कोबातीर्थमंडन श्री महावीरस्वामिने नमः ।। ।। अनंतलब्धिनिधान श्री गौतमस्वामिने नमः ।। ।। गणधर भगवंत श्री सुधर्मास्वामिने नमः ।। ।। योगनिष्ठ आचार्य श्रीमद् बुद्धिसागरसूरीश्वरेभ्यो नमः ।। । चारित्रचूडामणि आचार्य श्रीमद् कैलाससागरसूरीश्वरेभ्यो नमः ।। आचार्य श्री कैलाससागरसूरिज्ञानमंदिर पुनितप्रेरणा व आशीर्वाद राष्ट्रसंत श्रुतोद्धारक आचार्यदेव श्रीमत् पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा. जैन मुद्रित ग्रंथ स्केनिंग प्रकल्प ग्रंथांक :१ जैन आराधन धना केन्द्र महावीर कोबा. अमर्त तु विद्या श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र शहर शाखा आचार्यश्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर कोबा, गांधीनगर-श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र आचार्यश्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर कोबा, गांधीनगर-३८२००७ (गुजरात) (079) 23276252, 23276204 फेक्स : 23276249 Websiet : www.kobatirth.org Email : Kendra@kobatirth.org आचार्यश्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर शहर शाखा आचार्यश्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर त्रण बंगला, टोलकनगर परिवार डाइनिंग हॉल की गली में पालडी, अहमदाबाद - ३८०००७ (079)26582355 - For Private And Personal Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री सम्मेत शिखर जैन महातीर्थ सम्पादक : ज्योतिषाचार्य मनिपवर जयप्रभविजय " श्रमण " For Private And Personal Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जैनशासनप्रभावकबंधुजोड़ीवस्तुपाल-तेजपाल यात्रार्थ निकलेउस समय निम्नानुसार परिवारसाथ था। २४ - हाथी दांत के रथ (चौवीस) ४५०० - सारथवा वाले (चार हजार पांच सौ) ४५०० - गाड़ी वाले (चार हजार पांच सौं) ११०० - वहेल वाला (एक हजार एक सौ) ५०५ - पालखी वाला (पांच सौ पांच) २००० - पोठीया वाला ( दो हजार) ७०० - सुखासन वाला (सात सौ) २२०० - श्वेताम्बर साधु (दो हजार दो सौ) ११०० - दिगम्बर साधु (एक हजार एक सौ) ४०८ - उंट सवार (चार सौ आठ) ४५० - संगीतकार (भोजक) (चार सौ पचास) १००० - हलवाई (रसोई बनाने वाले) (एक हजार) ३३०० - चारण (तीन हजार तीन सौ) ३३०० - भाट (तीन हजार तीन सौ) १०५० - कुम्हार (मिट्टी के बर्तन बनाने वाले) (एक हजार पचास) ४००० - घुड़सवार (चार हजार) ७,००,००० - यात्री मनुष्य (सात लाख) ५०० - सुथार (पांच सौ) ३५० - दीवटीया घांटी (तीन सौ पचास) १००० - लुहार (एक हजार) ३७३७२१८८१६ सभी मिलाकर तीन अरब, तीहोत्तर करोड़, बहोत्तर लाख, अठारह हजार आठ सौ सोलह लोढ़िये (स्वर्ण मुद्रा) उस समय पूण्य कार्य में खर्च किया। वस्तुपाल संवत् १२९८ में स्वर्गस्थ हुए, तेजपाल संवत् १३०८ में स्वर्गस्थ हुए। 'शाश्वत धर्म, १९६४'अक्टूबर से उद्दत For Private And Personal Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ सम्मेत शिखर तीर्थाधिपति श्री पार्श्वनाथाय नमः ॥ श्री सम्मेत शिखर महातीर्थ श्री सम्मेतशिखर महातीर्थ का आधिपत्य श्री अखिल भारतवर्षिय श्री वेताम्बर जैन श्री संघ का था - है एवं चान्द सूर्य तक रहेगा संयोजक - संपादक परम पूज्य व्याख्यान वाचस्पति साहित्य शिरोमणि श्री श्री १००८ श्रीमद्विजय यतीन्द्रसूरीश्वरजी शिष्यरत्न ज्योतिषाचार्य शासन दीपक मुनिश्री जयप्रभविजय जी " श्रमण " For Private And Personal Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - पुस्तक - श्री सम्मेत शिखर महातीर्थ 0 प्रकाशक - श्री राजेन्द्र प्रवचन कार्यालय श्री मोहनखेड़ा तीर्थ जि. धार (म.प्र.) - सुकृत के सहयोगी - - शासनरत्न प्रवचनकार मुनिश्री हितेशचन्द्रविजयजी श्रेयस मुनिश्री दिव्यचन्द्र विजयजी की प्रेरणा से १. आहोर (राज.) निवासी श्री मांगीलाल ललितकुमार बेटा पोता लक्ष्मणाजी फर्म शांतिलाल एण्ड कम्पनी किराना मर्चेन्ट राजमहेन्द्री (आ.प्र.) ईष्ट गोदावरी । २. भीनमाल (राज.) निवासी श्री खीमचन्दजी उगमराज हीरालाल देवराज मूलचन्द बेटा पोता सांकलचन्दजी केवलचन्दजी गांधी मूथा। निवासी - खीमचन्द साकलचन्द्रजी सेकानियों का वास मु.पो. भीनपाल (राज.) की ओर से। ३. किरवा (राज.) निवासी पूज्य पिताजी ताराचन्द्रजी बाफना की स्मृति में धर्मपत्नी गंजाबाई सुपुत्र रमेशचन्द्र अशोकचन्द्र उर्फ रणजितकुमार सूरजकुमार बेटा पोता बेरिदासजी बाफना - हस्ते अं. सौ. विमलाबाई अं. सौ. सविता बाई। फर्म - गजीवो, परेल बम्बई (महाराष्ट्र)। C प्राप्ति स्थान - श्री राजेन्द्र प्रवचन कार्यालय मु.पो. मोहनखेड़ा तीर्थ पोस्ट राजगढ़ (धार) म.प्र. - ४५४११६ - प्रवेश - श्री वीर निर्माण सं. २५२० विक्रम सं. २०५१ श्री राजेन्द्रसूरि सं. ८८ ईस्वी सन् १९९४ मुद्रक : राजेन्द्र प्रिटिंग प्रेस, राजगढ़ (धार) - २३२२, २५२२ For Private And Personal Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org संयोजक, सम्पादक की ओर से भारत वर्ष में जब भी शांति का साम्राज्य चल रहा होता है। तब १९११ वर्ष पूर्व उद्भव हुए दिगम्बर समाज द्वारा विद्वेष की अग्नि प्रज्ज्वलित होती है। दिगम्बर धर्म के संस्थापक श्वेताम्बर मुनि श्री शिवभूतिजी ने श्री वीर प्रभु के निर्वाण के ६०९ वर्ष बाद स्थापित किया है ऐसा श्री उत्तराध्ययन सूत्र जो कि संपूर्ण जैन श्वेताम्बर समाज के मान्य हैं। श्री महावीर प्रभु की अंतिम देशना के रूप में मान्य आगम ग्रंथ है। Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री श्वेताम्बर जैन समाज का आज नहीं लाखों वर्ष पूर्व वर्तमान चौवीसी के द्वितीय तीर्थकर परमात्मा श्री अजीतनाथजी बिहार प्रदेश अंतर्गत श्री सम्मेतशिखरजी की पवित्र भूमि पर विराजमान समाधि युक्त सिद्धवर टोंक पर सिंहसैनादि गणधर ९५ व १००० मुनि परिवार संह चैत्र सुदि ५ को मोक्ष पधारे। तब से लेकर आज तक वर्तमान चौवीसी के श्री पार्श्वनाथ भगवान मोक्ष पधारे यानि वर्तमान चौबीसी के २० तीर्थकर १२८० गणधर मोक्ष पधारे। वर्तमान चौबीसी के प्रथम तीर्थकर आदिनाथजी अष्टापद पर्वत पर श्री वासुपूज्यस्वामी चंपानगरी श्री नेमीनाथ भगवान गिरनार पर्वत पर एवं अंतिम तीर्थकर श्री महावीर स्वामीजी पावापुरी में इस प्रकार चार तीर्थकर परमात्मा अन्य भिन्न-भिन्न जगह पर बीस तीर्थंकर एक ही स्थल सम्मैत शिखर पर्वत पर व उसकी परिधि में १६,००० एकड़ भूमि का घेरा है। वह सभी निर्वाण भूमि होने से परम पवित्र भूमि है। तीर्थ क्षेत्रों की स्पर्शना, दर्शन, वंदन व पूजन करने जाने की भावना होती है। क्योंकि पवित्र भूमि के स्पर्श से ही विचार शुद्ध व भावना निर्मल विचारों की होती है। तीर्थ क्षेत्र में मनुष्य को जाने पर जीवन के लिये जो आवश्यक सुविधाओं की जरूरत होती है जैसे शुद्ध सात्विक भोजन, पूजन की सामग्री रहने की सुविधा व स्नानादि की व्यवस्था मानव भौतिक सुखों ३ For Private And Personal Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir से त्रस्त होकर निर्वाण भूमियों में जाकर आत्म साधना का इच्छुक रहता है किन्तु आज का मानव तीर्थ भूमि का महत्व नहीं समझकर वहां परम पवित्र भूमियों पर विकास का नाम देकर अनाधिकार लाखों वर्षों का कब्जा अनेक बार राजा पालगंज से खरीदा प्रिविकौसिल लन्दन का फैसला कलकत्ता हायकोर्ट का फैसला अकबर बादशाह द्वारा दान-पत्र देकर यह उल्लेखित किया कि जब तक सूरज-चांद रहेगा तब तक श्वेताम्बर जैन समाज का सम्मेतशिखर पर अधिकार रहेगा। यह सनद तत्कालिन आचार्य प्रवर तपागच्छ नायक समर्थ जैनाचार्य श्री हीर विजयसूरीश्वरजी महाराज को अर्पण की थी। फिर भी समझ में नहीं आता यह दिगम्बर भाई परम पवित्र तीर्थों पर यदा-कदा अनाधिकार चेष्टा से विवाद को पैदा करते हैं। __ आज भारत वर्ष में जो भी चमत्कारिक प्रभावशील और परम पवित्र तीर्थ भूमियों पर व्यर्थ का विवाद पैदाकर तीर्थकर परमात्मा की गंभीर आशातना करवाते हैं। उदाहरण के तौर पर ऋषभदेव तीर्थ केसरियाजी, मक्सीजी, अंतरिक्षजी आदि अनेक तीर्थ भूमियों का विवाद क्या शोभा देता है? कई बार सम्मेतशिखरजी पर विवाद पैदा किये। सन् १९६४ में भी यही विवाद पैदा किया था उस समय घानसा राजस्थान में परम पूज्य शासन प्रभावक आचार्यदेव कविरत्न श्रीमद् विजय विद्याचंद्रसुरीश्वरजी महाराज ने श्री सम्मेतशिखरजी तीर्थ रक्षा समिति स्थापित कर देश के तत्कालिन प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, गृहमंत्री व बिहार के मुख्यमंत्री आदि से पत्र व्यवहार द्वारा सम्पर्क सत्यवस्तु का प्रमाण सह दिग्दर्शन करवाया था। तब वहां के वन सम्पदा की उत्पन्न आय में से ६० प्रतिशत एवं ४० प्रतिशत यानि ४० प्रतिशत राज्य सरकार का व ६० प्रतिशत व्यवस्थापक श्वेताम्बर श्री संघ द्वारा स्थापित ट्रस्ट के पास रहती है। क्या दिगम्बर भाई इन विवादों से उत्पन्न परमात्मा देवाधिदेव की होने वाली भयंकर आशातना पैदा करने का निकाचित कर्मबन्ध का विचार कर आत्म कल्याण के मार्ग की और मोड़ने का प्रयास कर निर्वाण भूमि तीर्थ भूमि के विवादों को समाप्त करेंगे। यह भी तो प्रश्न है क्या पवित्र भूमियों पर भौतिक सुख-सुविधा करके उस पवित्रता को खत्म करेंगे। ____ मनुष्य के पास भौतिक साधन घर में भी है वह उनसे त्रस्त होता है तभी तो ऐसी परम पवित्र भूमि पर जाकर आत्मशांति चाहता है वीतराग देवाधिदेव जिस पवित्र भूमि पर विराजीत होकर मोक्ष नगरी पधारे व निर्वाण भूमि अपने लिये पवित्र होने से वंदन पूजन करते हैं और श्रेष्ठ शब्दों का प्रयोग करते हैं। निर्वाण भूमि के For Private And Personal Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नाम से संबोधित करते है, किन्तु इस लकीर से हटकर अज्ञानियों की भाषा का प्रयोग किया जाय तो यह श्मशान भूमि है तो क्या कभी किसी ने आज तक श्मशान भूमि के विकास किये है | इतिहास पढ़ने पर उत्तर यही मिलेगा कि श्मशान भूमि का विकास नहीं होता है। तो यह दिगम्बर बंधु व लालुप्रसादजी यादव क्यों श्वेताम्बर जैन समाज के सम्मुख विकास के नाम पर योजना बनाकर व्यर्थ का अनाधिकार युक्त प्रश्न पैदाकर हजारों लाखों श्री सम्मेतशिखरजी के उपासक व आराधक भक्त मंडल शांति से उपासना करते हैं तो आराधना के मध्य ट्रस्ट मंडल के ट्रस्टियों के दिलों में यह विद्वेष की ज्वाला क्यों ? प्रज्जवलित करते है और अपने देवाधिदेव परमात्मा की घोर आशातना पैदाकर निकाचित कर्मों का बंधन क्यों करते हैं। क्या दिगम्बर भाई अपने श्वेताम्बर भाईयों के दिल में रही मैत्री कारूण्य और मध्यस्थ भावनाओं के दिशा दर्शन से देश राष्ट्र व समाज एवं मानव मात्र के लिये एवं तिर्यन्च जीव मात्र के लिये किये गये कार्यों का अनुसरण कर इतिहास में कही पर भी नाम कर अपनी देशभक्ति, राष्ट्रभक्ति स्वामिभक्ति का परिचय देने का साहस करेंगे। देश धर्म की रक्षा के लिये श्री विक्रमादित्य, हेमु, कंकु चौपड़ा, जैन तथा उसने २२ महायुद्ध देश रक्षा के लिये किये व शेरशाहसूरि व बाबर के मध्य का काल जो १२ वर्ष का है उन १२ वर्षों में विक्रमादित्य हेमु ने दिल्ली की गादी पर बैठकर श्रमण भगवान महावीर के अहिंसा धर्म का अनुसरण करके देश के सामने जीवों की रक्षा से देश का शासन अच्छी तरह से चल सकता है। जिस समय विक्रमादित्य हेमु का दिल्ली की गादी पर राज्याभिषेक हुआ था, उस रोज संपूर्ण भारत वर्ष में अपने-अपने प्रदेश की राजधानी में शांति स्नात्र महापूजन पढ़ाया गया था। श्री वस्तुपाल - तेजपाल दोनों बंधुओ ने देश धर्म रक्षार्थ चौसठ महायुद्ध किये व विश्व प्रसिद्ध कलायुक्त अनुपम आबु देलवाड़ा में उस समय यानि आज से ४५० वर्ष पूर्व १८ करोड़ रुपये खर्च किये थे जीवन में साढ़े बारह भव्य व विशाल संघ पद यात्राएं की थी। प्रथम संघ में साथ में ७००००० सात लाख मनुष्य थे जिसका विस्तृत वर्णन अंतिम पृष्ठों पर देखें । इन दोनों भाइयों ने १० लाख जैन मुर्तियों का निर्माण करवाया था १ लाख नूतन जैन मंदिर बनवाये थे। भारत वर्ष में रहने वाले मानव मात्र को अपने-अपने धर्म के अनुरूप मंदिर बनवाने के लिये और देश की पवित्र नदियों पर जैसे गंगा, जमुना, सरस्वती, नर्मदा आदि पवित्र नदियों पर धर्म स्थल बनवायें। दोनों For Private And Personal Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बंधुओने सभी धर्मों का शासन किया। मुस्लिम बंधुओं को भी चौरासी मस्जिदें बनवाकर दी। यह दोनों बंधु नरवीर थे। इन्होंने जीवन में चार सौ करोड़ रुपयों का देश, राष्ट्र व धर्म रक्षा के लिये एवं कला संस्कृति को जीवन्त रखने के लिए खर्च किये। इसका विस्त्रत विवरण प्राग्वाट इतिहास में पढ़े जो राणी स्टेशन जिला-पाली राजस्थान में उपलब्ध है। भामाशाह सेठ ने देश रक्षा के लिये ऐसा दान दिया कि आज भी श्वेताम्बर जैन समाज गौरवता से नाम लेता है। सादड़ी राजस्थान के निवासी धरणाशाह सेठ ने अद्वितीय राणकपुर मंदिर बनवाये। जिन्हें देखने के लिये विश्व का प्रत्येक मानव लालायित रहता है। मालव प्रदेश में स्थित मांडवगढ़ के निवासी श्री झांझण मंत्री ने अपने धर्म गुरु आचार्य देव श्री ज्ञानसागर सूरीश्वरजी महाराज का माण्डवगढ़ में जब प्रवेश करवाया था तब उनके स्वागत में ७२ लाख स्वर्ण मोहरे खर्च की थी। व चातुर्मास में भगवती सूत्र के व्याख्यान सूने थे भगवती सूत्र में छतीस हजार प्रश्न है प्रत्येक प्रश्न पर १-१ स्वर्ण मुद्रा चढ़ाई थी। बाद में सभी स्वर्ण मुद्राओं की स्वर्ण स्याही बनाकर ४५ आगमों को स्वर्ण स्याही से लिखवाकर पाटन के भंडारों में रखे गये थे। जो आज भी सुरक्षित है। धन्य है उन्हों की श्रुत भक्ति। __ श्री गदाशाह, श्री भैसाशाह पेथड़शाह आदि मांडवगढ़ नगर के नरवीरों ने देश, राष्ट्र व धर्म एवं कला संस्कृति को जीवन्त रखने के लिए करोड़ों रुपये खर्च करके इतिहास के पृष्ठों पर स्वर्णाक्षरों में इन दानवीरों के नाम अंकित है। कच्छ भद्रेश्वर निवासी श्री जगडुशाह सेठ एवं गुजरात निवासी खेमा-देदराणी आदि महापुरुषों ने सम्पूर्ण भारत वर्ष के जीव मात्र के लिये संलग्न १२ वर्ष तक भोजन की व्यवस्था की थी। श्री जावड़ शाह कर्माशाह, समराशाह, मोतीशाह आदि अनेक दानवीरों ने करोड़ों रुपये खर्च करके अपने धर्मस्थलों को सुरक्षित रखा है। श्री वीर प्रभु को निर्वाण हुए २५२० वर्ष हुए इतने अल्प समय में श्वेताम्बर जैन समाज में हजारों नररत्न पैदा हुए जिन्होंने अपनी लक्ष्मी से, ज्ञान से दानवीरता से खर्च कर अपने आपको धन्य माना है। राजस्थान में एक कहावत है कि: "जननी जने तो ऐसा जनजे, के दाता के शूर। नी तो रहीजे वांझणी, मती गंवाजे नूर॥" धन्य है ऐसी माताओं को, जिन्होंने नारी समाज के नाम को उज्ज्वल किया। आचार्य पद के सुयोग्य व्यक्ति को जैनाचार्य बनाया जाता है जो आचार्य पद के For Private And Personal Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कर्तव्यों का ख्याल रखकर अपने अधिकारों को उपयोग करते हैं। वे आचार्य स्वर्गवासी होने पर भी अपने कर्तव्यों से जीवित हैं। जैसे- पंद्रहवी शताब्दी से पूर्व आचार्य पद पर पूज्य कालकाचार्य महाराज विराजमान हुए थे एवं उनकी बहन सरस्वती ने भी दीक्षा ली थी। एक समय आचार्य श्री कालकाचार्य अपनी बहन साध्वी सरस्वती के साथ उज्जैन नगर में विराजमान थे, तब तत्कालीन उज्जैन के राजा गर्दभील ने साध्वी सरस्वती का गोचरी जाते समय अपहरण कर लिया था । यह बात आचार्य श्री कालकाचार्य को जब ज्ञात हुई तो उन्होंने श्री संघ को एकत्रित करके यह बात बनाई तो संघ के प्रतिनिधियों ने उचित उत्तर नहीं दिया। तब श्री कालकाचार्य ने मुनि वेष त्यागकर हुण प्रदेश में जाकर युद्धकला वहां के निवासियों को सिखाकर, पचास हजार की सेना सहित उज्जैन आकर राजा गर्दभील से युद्ध कर अपनी बहन साध्वी सरस्वती को मुक्त कराया। आचार्य पद पर बैठकर साध्वी रक्षा का कर्तव्य समझा था । आचार्य श्री कालिकाचार्य युद्ध स्मरण रखने के लिए आज जितने भी जैन समाज में चतुर्थी को संवत्सरी करते हैं वे कालकाचार्य के पक्ष के माने जाते हैं । युद्ध के पापों की आलोचना श्री संघ के सम्मुख ली थी। आप किसी भी क्षेत्र में देखें राष्ट्र, धर्म, कलासंस्कृति, नारी उत्थान, साहित्य क्षेत्र, तिर्यन्च पशुओं की जीवदया के कार्यों में मुक्त हस्त से लाखों करोड़ों रुपयों का दान करते हैं बारहवी शताब्दी में पूज्यपाद आचार्यवर्य श्री हेमचंद्राचार्य ने श्री कुमारपाल राजा को प्रतिबोध देकर जैन बनाया था। कुमारपाल राजा के राज्य में हाथी, घोड़े, गाय, बैल आदि पशुओं को पानी छानकर पिलाया जाता था कि जीव हिंसा न होवे और श्रमण भगवान महावीर स्वामी का प्रथम मूल उद्देश्य अहिंसा धर्म का पालन होंवे । पूज्य प्रवर हेमचंद्राचार्य ने साहित्य क्षेत्र में सवा लाख प्राकृत भाषा में श्लोंको की रचनाकर शिक्षित जग में महान कीर्तिमान कार्य किया है। २० वीं शताब्दी में महान श्वेताम्बर आचार्य भट्टारक श्री श्री श्री १००८ श्रीमद् विजय राजेन्द्रसूरीश्वरजी महाराज ने अद्वितीय ग्रंथराज अभिधान राजेन्द्र महाकोष की रचना कर साहित्य क्षेत्र में महान कार्य किया है । आज तक ऐसा महानकार्य किसी भी विद्वान ने नहीं किया है। इस प्रकार महान जैनाचार्य उपाध्याय मुनिवरों ने इतना कार्य किया है कि उसे पढ़ भी ले तो बहुत है । प्रशान्त मूर्ति उपाध्याय श्री मोहनविजयजी महाराज, महान तार्कि साहित्य चुामणी श्रीमद् विजय धनचंद्रसूरीश्वरजी महाराज, साहित्यविशारद For Private And Personal Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विद्याभूषण श्रीमद् विजय भूपेन्द्रसूरीश्वजी महाराज परम पूज्य व्याख्यान वाचस्पति साहित्य शिरोमणी श्रीमद् विजय यतीन्द्रसूरीश्वरजी महाराज, संस्कृत साहित्य विशारद उपाध्याय श्री गुलाब विजयजी महाराज कविरत्न शासन प्रभावक आचार्यदेव श्रीमद् विजय विद्याचंद्रसुरीश्वरजी महाराज, साहित्य प्रेमी पूज्य मुनिप्रवर श्री देवेन्द्र विजयजी महाराज आदि ने साहित्य क्षेत्र, शिक्षा क्षेत्र जीवदया क्षेत्र, आदि विद्यादान के लिये गुरुकुल स्थापित करवाये सभी क्षेत्रों में कार्य करके इतिहास में अपने नामों को स्वर्णाक्षरों में अंकित करवाया है। पूज्य कविरत्न आचार्य प्रवर श्रीमद् विजय विद्याचंद्रसूरीश्वरजी महाराज ने हिन्दी में पद्यों की रचना कर महान श्रम किया है। श्री आदिनाथ, श्री शांतिनाथ, श्री नेमीनाथ, श्री पार्श्वनाथ श्री महावीरस्वामी आदि पंच तीर्थंकरों के जीवन की पद्यबद्ध रचना की। आज तक कवि जगत में किसी भी महापुरुष ने ऐसा श्रम नहीं किया है। इसके साथ ही साहित्य जगत में कविताबद्ध पद्यों की रचना कर प्रकाशित करवाया है। जैसे आदर्श महापुरुष आचार्य प्रवर श्रीमद् विजय राजेन्द्रसूरीश्वरजी, श्री भूपेन्द्रसूरीश्वरजी, श्री यतीन्द्रसुरीश्वरजी आदि महान जैनाचार्यों के जीवन को कविता में पद्य रचनाकर प्रकाशित किया है। नारी जगत के उज्जवल चारित्र को पद्यों में गंथकर मानश्रीजी प्रेमश्रीजी आदि गुरुणियों का जीवन पद्य रचनाओं में कर प्रकाशित करवाया है। __ सर्वजन के उपयोग के लिये पथिक, महाकाव्य, चिन्तन की रश्मियां पथिकमणी माला और १२५ दोहों का प्रकाशन करवाकर अनुठा कार्य किया है। इस प्रकार श्वेताम्बर जैन समाज अपने आचार्यों के मार्गदर्शन में चलकर अपनी लक्ष्मी का सद्उपयोग करने का लक्ष्य सीखा है। इस जगह श्वेताम्बर जैनियों के प्रत्येक कार्य को लिखा जाय तो बहुत बड़ा ग्रंथ होगा। हमें उन श्वेताम्बर जैन समाज के गौरवान्वित कार्यों से गौरव अनुभव करते हैं। हमे यह लिखने में संकोच नहीं होता है कि ऐसा कार्य आज विश्व में सात वस्तुए ऐसी है जिन्हें देखने के लिये प्रत्येक मानव लालायित रहता है। उन सात वस्तुओं में से चार वस्तुए भारत में हैं। १ आबु देलवाड़ा, राणकपुर जैन मंदिर ३- दिल्ली में कुतुबमिनार ४- आगरा में ताजमहल इन में से दो वस्तुए श्वेताम्बर जैन समाज के नरवीर दानवीर ने वनवाई है। जिसमें देश के नागरिक व श्वेताम्बर जैन समाज गौरव का अनुभव करते है। क्योंकि उन्होंने ही भाइयों ने ऐसे आदर्श कार्य किये है। आज भी प्रवासी राजस्थानी जैन श्वेताम्बर १० करोड़ मनुष्यों को अपने उद्योगों में कार्य देकर उनका पालन For Private And Personal Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पोषण कर रहे हैं। मनुष्य इण्डस्ट्रियों में कार्य कर आवश्यक उत्पादनों को पैदा कर देश विदेश में भेजकर राष्ट्र में विदेशी मुद्रा को आयात कर राष्ट्र निर्माण में भी सहयोग करते हैं। आज राजस्थान के पश्चिमी प्रदेश का सर्वे करवाकर जोधपुर डिविजन का सर्वे देंखे कि मानव मात्र की रक्षा व तिर्यन्च पशुओं की रक्षा के लिये आवश्यक सभी सामग्रियों में १०-१५ करोड़ रुपये एक माह में खर्च होते हैं। सार्वजनिक वस्तुओं का निर्माण कर रहे हैं जैसे विश्व विद्यालय, कालेज, अस्पताल, प्याऊ, सार्वजनिक धर्मशालाएं, नलकूप कबुतर चुगने के स्थल, गौशालाएं व अजैन मंदिरों का निर्माण भी श्वेताम्बर जैन समाज करवाती है। नारी को स्वावलम्बी बनाने के लिये राजस्थान के पाली जिले में विद्यावाड़ी नामक संस्था को स्थापित कर अनुठा कार्य किया है। जो सबके लिये आवश्यक है। विद्यावाड़ी में प्रति वर्ष ५०० से ७०० कन्याएँ अध्ययन करती है। इसलिये दिगम्बर भाइयों से यही कहना है कि वे व्यर्थ के अनाधिकार युक्त विवाद फैलाकर तीर्थ स्थलों में भयंकर आशातना होने की कार्यवाही न करें। जो लाखों वर्षों से जिनके अधिकारों में है उसको उसी प्रकार सुरक्षित रहने दे। हमारा यह सत्य कहना है कि भगवान महावीर स्वामी के निर्वाण के ६०९ वर्षों के बाद श्वेताम्बर जैन मुनिश्री शिवभूतिजी ने अपने आचार्य आर्यकृष्णाचार्य से रत्नकंबल के विषय के विवाद उत्पन्न कर दिगम्बर धर्म को चलाया। अगर यह असत्य है तो आप बतावें कि किस दिगम्बर मुनि ने कपड़े पहनकर श्वेताम्बर धर्म को चलाया। उदाहरण महान ग्रंथों में होना आवश्यक है। शुभम् दिनांक २७.६.९४ For Private And Personal Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री ऋषभदेव स्वामी ने नमः श्री राजेन्द्रसूरीश्वरेभ्यो नमः -------------------------------------- बोटिक : दिगम्बर : मत उत्पत्ति दिग्दर्शन - -- - - - -- चौबीसवें तीर्थकर श्री महावीर परमात्मा के निर्वाण से ६०९ वर्ष बाद बोटिक : दिगम्बर : मत की उत्पत्ति हुई, वह इस प्रकार है___ रथवीपुर नगर के बहार दीपक नाम का एक बड़ा उद्यान है। एकदा नवकल्पी विहारानुक्रम से पू. आचार्य देव श्री आर्यकृष्णाचार्य म.सा.शिष्य परिवार के साथ विचरते-विचरते वहीं उद्यान में पधारे, योग्य निर्जीव भू-पटशाला में विराजमान रहे। उस समय उसी नगर में एक शिवभूति नामका युवा पुरुष नगर के राजा के पास कार्यार्थ आया। तब राजा ने कहा कि आपके साहस एवं पराक्रम की परीक्षा करने के बाद राज्य की सेवा के कार्य में लगाएंगे। ___ अश्विन माह की कृष्ण चतुर्दशी दिन राजसभा में शिवभूति को बुलाकर राजा ने फरमाया कि आज रात को श्मशान भूमि में जाकर मध्य रात्रि के समय मातृ तर्पण करना है। इस कार्य के लिए मद्य एवं मोदक वगैरह सामग्री ले जाना। शिवभूति ने कहा :- जैसी आपकी आज्ञा ‘ऐसा कहकर शिवभूति तर्पण सामग्री लेकर अपने आवास पर गया स्नानादि कार्य करके शुद्ध पवित्र होकर संध्या समय तर्पण सामग्री लेकर श्मशान की ओर चल दिया। चलते-चलते श्मशान भूमि में पहुंचा चारों ओर अंधेरा छा गया था, अर्द्ध दग्घ चिताए चल रही थी। वनचर प्राणियों का भयानक आवाज सुनाई दे रही थी। एक ओर नदी का पानी ध्वनि के साथ बहता जा रहा था। भूत पिशाच अट्टाहास करते हुए अत्र-तत्र, घूमते-फिरते, आते-जाते थे, चारों ओर भयजनक वातावरण था, उस समय साहसिक शिवभूति एक वर्तुलाकार लकीर खींचकर मंडल में सावधानी से बैठ गया एवं मातृ तर्पण विधि प्रारंभ की। इस तरफ राजा ने भी गुप्तचर पुरुषों को शिवभूति की चर्या देखने के लिए भेजा था, वे गुप्त पुरुषों ने शिवभूति की कर्तव्य निष्ठा एवं धैर्य - साहसिकता प्रत्यक्ष देखकर राजा को सर्व वृत्तान्त निवेदित किया। For Private And Personal Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शिवभूति भी पूरी रात श्मशान में रहकर प्रात:काल होते ही नगर में अपने आवास पर आया, स्नानादि शुद्ध होकर राज सभा में आकर राजा को प्रणाम करके खड़ा रहा एवं अपने कर्तव्य पालन का निवेदन किया। राजा भी शिवभूति की साहसिकता सुनकर प्रसन्न हुआ एवं सहस्त्रमल्ल उपनाम देकर सेवा कार्य के लिए नियुक्त दी। एक बार राजा ने मथुरा जितने के लिए सेना के साथ शिवभूति को भी भेजा। क्रमश: प्रयाण करते-करते एक दिन सेनापति ने कहा कि - माथुरा की सेना तो बलवान है, अपनी सेना बल अल्प है। युद्ध कैसे करेंगे? तब शिवभूति ने कहा कि - फिक्र मत करो, साहस एवं पराक्रम से अपन विजय प्राप्त करेंगे। सुभाषित में भी कहा कि - शूरवीरता, दान एवं बुद्धिबल जहाँ होता है, वह व्यक्ति गुणवान होता है और गुणवान को सर्वत्र विजय प्राप्त होती है और हुआ भी ऐसा ही। रण मैदान युद्ध हुआ अंत में मथुरा की सेना हार गई और शिवभूति ने विजय ध्वज लहराया। शिवभूति जब स्थवीपुर नगर में आया, तब महाराजा ने उसका भारी स्वागत किया एवं सहस्त्रमल्ल ऐसा नाम दिया और जो कुछ चाहता हो, तो माँगने का वरदान भी दिया। शिवभूति ने कहा कि - आपकी कृपा ही मेरा सब कुछ है किन्तु विशेष में में बेरोकटोक स्वेर विहार भ्रमण चाहता हूँ। राजा ने भी स्वेर विहार की अनुमति दी। सुभाषित में ठीक ही कहा है कि यौवन उम्र में यदि धन, सत्ता एवं कुसंग मिल जाए, तब तो भारी तबाही मचा दे। जैसा कि चंचल बंदर को मदिरा का पान और बिच्छु का डंक फिर बात ही न पूछे कि वह कितनी कुदाकूद करता शिवभूति अपनी इच्छानुसार स्वेर भ्रमण करता हआ घर पर कभी देर.से आए। कभी न कभी, कभी तो पूरी रात मित्रों के साथ घूमता-फिरता रहता। ऐसी परिस्थितियों में उसकी पतिवृत्ता नारी बहुत ही परेशान थी किन्तु कुलीन होने के नाते कभी भी स्वामिनाथ को कुछी भी कहती नहीं थी परन्तु मनोमन बहुत ही दुःखित थी, जिस कारण से वह ठीक तरह से भोजन नहीं कर पाती थी, सदा बेचैन, अस्वस्थ रहने के कारण से स्नानादि कार्य भी नहीं कर पाती थी। ___ एक दिन अवसर देखकर सासूजी से कहा कि - माँ मैं आपके पुत्र से बहुत ही परेशान हूँ, वे कभी भी समय पर घर पर नहीं आते हैं। कभी देर से आते हैं, For Private And Personal Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कभी आधी रात को, तो कभी-कभी पूरी रात बाहर ही घूमा करते हैं। मैं न तो नींद ले पाती हूँ, न ही भोजन कर सकती हूँ और न ही स्नानादि कार्य भी। सासुजी ने बहु की पूरी परिस्थिति देख ली और शाम को बहू से कहा कि - बेटी आज तुम अपने शयन खंड में चैन से सो जाए, मैं दरवाजे के पास रहूँगी, तुम आराम से सो जाओ। बहू ने वैसा ही किया। कितने दिनों के बाद आज बहू चैन से सोई थी। निश्चिंत अवस्था में ही निद्रा आती है, चिन्तित अवस्था में न तो निद्रा आती है, और न ही भोजन भाता है। ___ मध्य रात्रि के बाद जब शिवभूति घर आया और द्वार खटखटाया, तब अंदर से माताजी ने कहा कि इतनी देर रात कहाँ घुमता-फिरता है। मालूम है कि गृहस्थी का घर इतनी देर रात को खल्ला नहीं रहता है, जाओ अभी घर के द्वार नहीं खुलेंगे, जहाँ द्वार खुला दिखे, वहाँ चले जाओ। स्वैच्छा भ्रमण से उन्मत हुआ शिवभूति वहाँ से चल पड़ा, चलता-चलता वहाँ आया, जहाँ पर पू. आचार्य देव श्री आर्यकृष्णाचार्य विराजमान थे। उपाश्रय के द्वार सदा खुले ही रहते हैं, क्योंकि वहाँ चोरी का कोई भय नहीं रहता और न ही चौकीदार है, क्योंकि उपाश्रय में चोरने योग्य ऐसी कोई बहुमूल्य, कीमती वस्तु भी नहीं रहती है और जो अमूल्य ज्ञानादि धन है, वो तो चुराई नहीं जाती, अत: उपाश्रय के द्वार सदा खुले ही रहते हैं। ___ रात्रि के तीन प्रहर बीत चुके थे, चौथे प्रहर का प्रारंभ हो चुका था। सभी साधु निद्रा त्याग कर अपने-अपने आवश्यक क्रिया स्वाध्याय ध्यान में लीन हो रहे थे। तब शिवभूति ने उपाश्रय के द्वार खुले देखकर प्रवेश किया और पूज्य आचार्य देव के पास आकर हाथ जोड़कर कहने लगे कि - मुझे यहाँ रहने की इजाजत दें, तब पू. आचार्य देव श्री ने कहा कि - यहाँ तो केवल श्रमण साधु ही रह सकते है। शिवभूति ने कहा कि मैं साधु बनूंगा, पू. आचार्य देव ने कहा कि - ठीक है प्रात:काल होते ही संघ समक्ष आपको दीक्षा दी जाएगी। शिवभूति ने कहा - नहीं अभी, इसी वक्त मैं साधु बनूंगा। ऐसा कहकर अपने खुद का परिचय देकर स्वयं ही केश लुंचन करके पूज्य आचार्य देव श्री की चरणों में बैठ गया। पू. आचार्य देव श्री ने देखा कि यह साहसिक एवं कृत निश्चित पुरुष है, यह देखकर उसे साधुवेश दिया एवं शिवभूति मुनि नाम देकर प्रव्रजित किया एवं अन्यत्र विहार भ्रमण में प्रवृत्त हुए। For Private And Personal Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कई महीनों के बाद ग्रामानुग्राम विहार करते-करते पू. आचार्य देव के साथ शिवभूति मुनि रथवीरपुर नगर के दीपक उद्यान में पधारे, ऐसी बात सुनकर राजा स्वयं सपरिवार दर्शन वंदन करने उद्यान में आया एवं राज मंदिर पधारने की आग्रहपूर्ण विनती की। शिवभूति मुनि भी राजा की विनंती ध्यान में लेकर गुरु की आज्ञा से राजा के साथ राज मंदिर गया, राजा ने भी बड़े आदर के साथ स्वागत किया एवं बहुमूल्य रत्नकंबल शिवभूति मुनि को दिया। शिवभूति मुनि नहीं चाहते हुए भी राजा ने अति आग्रह से रत्नकंबल दिया। आखिर शिवभूति मुनि रत्नकंबल लेकर उद्यान की ओर चला, रास्ते में बहुमूल्य रत्नकंबल ने शिवभूति मुनि के चित्तवृत्ति में राग, मोह उत्पन्न किया। रागान्ध शिवभूति मुनि ने रत्नकंबल गुरुदेव के चरणों में रखने के बजाए अपने खुद के पास ही रख लिया और मोहवश कोई ले लेगा या फट जाएगी ऐसा सोचकर शिवभूति मुनि ने उस कंबल को न तो उपयोग में लिया और न ही किसी को देता किन्तु कपड़े में बाँधकर अपने पास ही हमेशा रखता। ___ पू. गुरुदेव श्री ने शिवभूति मुनि की ऐसी चित्तवृत्ति को देखकर एवं शिवभूति मुनि का हित कैसे हो, ऐसा सोचकर जब कोई कार्य से शिवभूति मुनि उपाश्रय से बाहर गए तब पू. आचार्य देव ने एक साधु को कहा कि शिवभूति की वह रत्नकंबल यहाँ लाओ, शिष्य ने ऐसा ही किया, तब पू. आचार्य देव ने उस रत्नकंबल के टुकड़े-टुकड़े करके सभी साधुओं को बैठने के लिए आसन के रूप में दे दिए। __ शिवभूति मुनि जब उपाश्रय आया एवं रत्नकंबल के टुकड़े-टुकड़े देखकर मन में बहुत ही रोष आया, किन्तु पू. गुरुदेव के सामने कुछ बोल न सका। ___कहावत है- जब तबीयत अच्छी नहीं होती, तब अच्छा दूधपाक भी दुःखदायक होता है। इसी तरह मोहांध शिवभूति मुनि को गुरुदेव का यह हितकर कार्य भी बहुत दुःख देनेवाला हुआ। __ जिस तरह बरसात के दिनों शीत से काँपते हुए बन्दर को हित शिक्षा देने वाला सुघरी पक्षी का बन्दर ही दुश्मन होकर उसका माला-घर तोड़-फोड़ डाला। इसी तरह अब शिवभूति मुनि पू. गुरुदेव के प्रति मन में रोष करता हुआ पू. गुरुदेव को पाठ पढ़ाने की सोचने लगा। एक दिन पू. गुरुदेव श्री आर्यकृष्णाचार्यजी म. जिन सिद्धान्त का प्रवचन दे रहें थे, वहाँ जिनकल्प वर्णनाधिकार प्रसंगे कहा कि- स्थविर कल्प में रहकर For Private And Personal Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अहिंसा/संयम एवं तपश्चर्या स्वरूप सर्व विरती धर्म का दृढ़ अभ्यास ज्ञपरिज्ञाः ग्रहण शिक्षा एवं प्रत्याखान परिज्ञा/आसेवन शिक्षा द्वारा प्राप्त करने के बाद सामायिक एवं छेदोपस्थान चारित्र साधना के साथ-साथ कतिपय साहसिक पराक्रमी प्रथम संघयण वाले महामुनियों परिहार विशुद्धि चारित्र का कल्पानुसार १८ माह तक अभ्यास पूर्ण करने के बाद यदि वे चाहते तो स्थविरकल्प में पुनः प्रवेश करते या तो जिन कल्प को स्वीकार करते हैं। ___यह परिहार विशुद्धि एवं जिनकल्प का प्रारंभ जिनेश्वर परमात्मा के कर-कमलों से पवित्र वासक्षेप प्राप्त करने के द्वारा होता है या जिनेश्वर परमात्मा से ऐसी शिक्षा जिन्होंने प्राप्त की है, ऐसे महामुनियों के कर-कमलों से ही होता है और कोई तीसरे से कभी नहीं....। जिनकल्प का आचरण बहुविध योग्यतानुसार निम्न प्रकार से होता है:१- उपधिपात्र आदि उपकरण के साथ २- सर्वस्व के त्याग के साथ ३- उपधि प्राप्त आदि उपकरण रखने वालों के भी आठ प्रकार निम्न प्रकार से जानना चाहिए: १. रजोहरण २. मुखवस्त्रिका (मुहपति) ३. पात्र ४. पात्र बंधन ५. पात्र स्थापन ६. पात्र केसरिका (पुंजणी) ७. पल्ला ८. गुच्छा ९. पात्र नियोंग १०. सूती वस्त्र ११. उनी (गरम) १२. कंबल के साथ रखने की सुती कपड़ा। कुल मिलाकर १२ उपकरण हुए यह प्रथम प्रकार २- अंतिम एक वस्त्र छोड़कर ११ उपकरण रखने वाले जिनकल्प यह दूसरा प्रकार ३- कंबल के सिवाय शेष १० उपकरण रखने वाले जिनकल्प यह तीसरा प्रकार ४- सुती वस्त्रों को छोड़कर शेष ९ उपकरण रखने वाले जिनकल्प चौथा प्रकार ५- पात्र के सभी उपकरण को छोड़कर शेष पाँच उपकरण रखने वाले जिनकल्प करपात्री- यह पाँचवाँ प्रकार ६- अंतिम वस्त्र को छोड़कर शेष ४ उपकरण रखने वाले करपात्री जिनकल्प यह छठा प्रकार १४ For Private And Personal Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७- कंबल को छोड़कर शेष ३ उपकरण रखने वाले करपात्री जिनकल्प यह सातवाँ प्रकार ८- वस्त्र को छोड़कर शेष २ उपकरण (रजोहरण एवं मुहपति) रखने वाले करपात्री जिनकल्प यह आठवाँ प्रकार । ये आठ प्रकार के उपकरणधारी जिनकल्प हैं एवं नवमा प्रकार का जिनकल्प सर्वस्व त्यागियों का है। ये नौ प्रकार में से कोई भी प्रकार का जिनकल्प स्वीकारने वाले महामुनि निम्नप्रकार के गुण सम्पन्न होते हैं: १- अचल धैर्य वाले २- नव पूरव का सम्यग ज्ञान ३- अतुल सहिष्णुता ४- प्रबल रोगोत्पति में भी अप्रतिकार। ५- शुद्ध निर्दोष आहार जल के अभाव में ६ मास तक उपवास। ६- शुद्ध निर्दोष स्थंडिल भूमि के अभाव में ६ माह तक निहार प्रतिबन्ध। ७- केवल आत्मश्रेय एक ही निर्धार। ८- किसी को भी उपदेश एवं दीक्षा नहीं देते। ९- केवल दिन के तृतीय प्रहर में ही आहार निहार एवं विहार करते। १०- शेष अहोरात्र के सातों प्रहर काउसग्ग ध्यान में रहते हैं। ११- विहार करते-करते जहाँ चतुर्थ प्रहर प्रारंभ हो वहाँ चाहे वह स्थान वन हो या पर्वत गाँव हो या शहर, श्मशान हो या उपवन जहाँ हो वहाँ स्थिर काउसग्ग ध्यान में रहते हैं। इस प्रकारयह जिनकल्प श्री महावीर परमात्मा के शासनकाल में श्री जंबुस्वामी के निर्वाण समय में दस वस्तु के अंतर्गत विच्छेद हुआ है। इसलिए पू. आर्य महागिरिजी म. जिनकल्प न करते हुए केवल जिनकल्प की तुलनाही मात्र करते ___पू. गुरुदेव के मुख से जिनकल्प का अधिकार सुनने के बाद शिवभूति मुनि ने कहा कि है गुरुदेव! मैं सर्वस्व त्याग स्वरूप जिनकल्प करने के लिए समर्थ हूँ और मैं यहीं जिनकल्प को स्वीकार करता हूँ। क्योंकि वास्तविक निर्ग्रन्थता स्वरूप मुनि मार्ग मुझे इसमें ही नजर आ रहा है। ऐसा कहकर पहने हुए वस्त्र आदि उपकरणों १५ For Private And Personal Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir को छोड़कर शिवभूति मुनि नग्न होकर वहाँ से चल पड़ा एवं उद्यान के कोई निर्जन भाग में काउसग्ग ध्यान में रहा। ___शिवभूति मुनि की बहीन उत्तरा ने भी साध्वी दीक्षा ले रखी थी। जब उसने जाना कि बंधु मुनि शिवभूति दिगम्बर बने हैं, तब उत्तरा साध्वी भी अपने वस्त्रों का त्याग कर दिगम्बर साध्वी बन गई। आहार गोचरी के लिए जब उत्तरा साध्वी ने नगर में प्रवेश किया, तब साध्वी का अपूर्व देह सौन्दर्य वाला नग्न शरीर, सभ्य-सज्जनों को लज्जा उत्पन्न करता था, जबकि कामीजनों-दुर्जनों को तो काम विकार का हेतु बनने लगा, साध्वी के नग्न शरीर को कुद्दष्टि से देखने लगे। ___ उस समय अपने प्रासाद के गवाक्ष में बैठी एक वारांगना (वेश्या) ने इस उत्तरा साध्वी को ऐसी स्थिति में होने वाले वातावरण को देखकर सोचने लगी कि यदि तपस्वी साध्वी इस तरह नान गाँव-शहर में भटकेगी, तब तो अपने व्यवसाय में बड़ा अनर्थ होगा। क्योंकि वस्रादि अलंकारों से संवृत ढंका हुआ स्त्री का देह काम उत्पन्न करता है, जबकि वहीं स्त्री की नग्न देह बार-बार देखने से विनता जुगुप्सता उत्पन्न करता है। यदि ऐसा हो तो हमारी वैश्यावृत्ति ही नष्ट हो जाएगी। ऐसा सोचकर उसने एक वस्त्र (साटिका) उस उत्तरा साध्वी के नग्न देह के ऊपर फेंकी और उस वारांगना की एक दासी ने साध्वी के मना करने पर भी नग्न देह वाली उत्तरा साध्वी के शरीर को उस साटिका से लपेट दिया। उत्तरा साध्वी ने भी अनुक्रम से शिवभूति मुनि के पास जाकर सारा वृतान्त निवेदित किया, तब शिवभूति मुनि बोला कि स्त्री लोग नग्न नहीं रह सकते, इसलिए आप यह साटिका पहनो। स्त्री देह नान नहीं रह सकने के कारण वह सम्पूर्ण चारित्र का पालन नहीं कर सकते अतः स्त्री देह में कभी भी मुक्ति नहीं मिल सकती। ऐसा उस समय शिवभूति ने मनो मन निर्णय किया। ___ शिवभूति मुनि में प्रवचन शक्ति अपार थी अतः उनके प्रवचन से प्रभावित होकर कोडिन्य एवं कोट्टवीर नाम के दो शिष्य हुए, जो कोडिन्य, वो ही आज दिगम्बरों के मान्य कुन्द कुन्दाचार्य। इस तरह से उनके उत्तरोत्तर शिष्य बनते गए एवं दिगम्बरों की परम्परा चालू हुई। इस तरह वीर परमात्मा के निर्वाण से ६०९ वर्ष के बाद दिगम्बर मत की उत्पत्ति हुई है। - ज्योतिषाचार्य मुनि जयप्रभविजय श्रमण इस निबन्ध के आधार ग्रंथ उत्तराध्यन सूत्र २- निहनववाद (छपा हुआ व १७७६ वर्षे उत्तराध्ययन सूत्र सम्पूर्ण ३६ अध्ययन स्वाध्याय के लिए हस्त लिखित है, उससे उद्धृत) शिवमस्तु सर्वजगतः - जैनं जयति शासनं गणधरों For Private And Personal Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . : 3000200403808442008 . . . . . . . . ___ कलकत्ता हायकोर्ट का निर्णय पूरा पर्वत सन्मान पूजा के योग्य अब इसमें कोई संदेह नहीं, जैसा कि वादी के साक्षियों ने उनके निरूपण में कहा है कि पारसनाथ पर्वत का प्रत्येक पत्थर पूजा की पवित्र वस्तु है और इसका कारण यह है कि यद्यपि परम्परागत धर्मग्रंथों ने कहा है कि २० तीर्थंकरों तथा अनन्त मुनियों का दल पारसनाथ पर्वत पर मोक्ष गया है। लेकिन इन धर्मग्रंथों में यह नहीं प्रकट किया गया है कि किस स्थान पर उनका निर्वाण हुआ है और उनका पर्वत के किसी भी स्थान पर निर्वाण हो सकता है, अतएव इसका हर भाग पूजन के लिए समान योग्य है। . (कलकत्ता हायकोर्ट के निर्णय से) . . . . . . . . . . - - - - - - . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . । . For Private And Personal Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ART 8 क्या सम्मेतशिखर अभियान में हम इस ओरबड़ सके? । सफलताका मूलमंत्रःआत्मशक्ति का विकास HTTE Post - पू. जैनाचार्य गुरुदेव श्रीमद् विजय राजेन्द्रसूरीश्वरजी ::::::::::::::::::::::::::::::::::::::: आत्म शक्ति ही विश्व की सबसे बड़ी शक्ति है जो पूरी तरह विकास कर लेता है। वही सफलता की और बढ़ सकता है। किसी भी कार्य को करने से पूर्व इसका विकास सबसे महत्वपूर्ण है। । rta pot स्वतंत्रता और आत्म शक्ति जब तक प्रकट न कर ली जाय, तब तक आत्म विश्वास चाहिये वैसा विकास नहीं हो सकता। शास्त्रों का कथन है कि सहनशिलता के बिना संयम के बिना तप और त्याग के बिना आत्म विश्वास होना असंभव है। आत्मविश्वास से ही नर जीवन सफल होता है। जिस व्यक्ति ने नर जीवन पाकर जितना अधिक आत्म विश्वास कर लिया है वह उतना ही अधिक शांति पूर्वक सन्मार्ग के ऊपर आरूढ़ हो सकता है। अतः संयमी जीवन के लिये सर्व प्रथम मन को वश में करना होगा। मन के वश में होने पर इन्द्रियां स्वयं निर्बल हो जायेगी। और मानव प्रगति के पथ पर चलने लगेगा। ___ सत्तारूढ़ होने के लिये लोग चढ़ा-चढ़ी करते हैं। पारस्परिक लढ़ाई कर वैमनस्य पैदा करने के साथ अपने धन का भी दुरुपयोग करते हैं परन्तु यथा भाग्य किसी ही लोटी या बड़ी सत्ता मिल जाती है। तो सत्तारूढ़ होने के बाद अगर जनता का ला नहीं किया और अभियान किया या लोगों की जेब काटकर अपनी जेबे तर, करली तो यह सत्ता का दुरुपयोग ही है। जिस सत्ता को प्राप्त कर दूसरों का उपकार किया जाय, निस्वार्थता से लांच नहीं ली जाय और नीति पथ को भी न छोड़ा जाय वहीं सत्ता का वास्तविक सदुपयोग है। नहीं तो सत्ता को केवल गर्दभ भार या दुर्गति मात्र समझना चाहिए। For Private And Personal Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिस पुरुष में शोर्य, धैर्य, सहनशिलता, सरलता, सुशीलता, सत्याग्रह, गुणानुरागता, कषायदमन, विषदमन न्याय और परमार्थ रुचि इत्यादि गुण निवास करते है, संसार में वहीं पुरुष देवांशी, आदर्श, और पूज्य माना जाता है। ऐसे ही व्यक्ति की सब लोग सराहना करते है। जिस प्रकार आधा भरा हुआ घड़ा छलकता है, पूरा भरा हुआ नहीं, कांशी की थाली रणेकार शब्द करती है सोने का नहीं और गदहा भूकता है घोड़ा नहीं इसी प्रकार दुष्ट स्वभावी दुर्जन लोग थोड़ा भी गुण पाकर ऐंठने लगते हैं और वे अपनी स्वल्प बुद्धि के कारण सारी जनता को मुर्ख समझने लगते हैं। सज्जन पुरुष होते हैं। वे सद्गुणपूर्ण होकर भी ऐंठते नहीं और न अपने गुण को ही अपने मुख से जाहिर करते हैं। जैसे सुगंधी वस्तु की सुवास छिपी नहीं रहती, वैसे ही उनके गुण अपने आप सामने आ जाते है। इसलिये दुर्जन भाव को छोड़कर सज्जनता के गुण अपनाने की कोशिश करना चाहिए, तभी आत्म कल्याण होगा। For Private And Personal Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir RAUNARE दृढ़ संकल्प - पूज्य जैनाचार्य श्रीमद् विजय यतीन्द्रसूरीश्वरजी महाराज जो पुरुष अपने दृढ़ संकल्प से किसी भी कार्य का आरंभ कर देते हैं, उसमें यदि विघ्न बाधाये आ जाने पर भी साहस पूर्वक अंतिम पल तक डटे रहते हैं, उसे मध्य में नहीं छोड़ते, उनको उसमें अवश्य सफलता मिलती है। इस प्रकार के पुरुष कार्य तो आरंभ कर देते है परन्तु उसमें विघ्न खड़े हो जाने पर उसे अधबीच में ही छोड़कर भाग निलकते हैं, उन लोगों के कार्य की रूप रेखा छिन्न भिन्न हो जाती है साथ ही उनको हताश होकर भी बैठना पड़ता है, ऐसे लोगो जघन्य पुरुष कहलाते है और जो लोग विघ्न के कारण कार्य का आरंभ ही नहीं करते उनको अधमपुरुष समझना चाहिए जो अपने किसी भी ध्येय को सफल नहीं बना सकते ___संसारी और त्यागी वर्ग में कुछ लोगों का वाकपटुता दिखाने, कुछ लोगो की व्यर्थ माथापच्ची करना, कुछ लोगों की चिन्ताजनक हल्ला-गुल्ला उढाने कुछ लोगों की अकारण हास्य मस्करी करने, कुछ लोगों की प्रतारण पर स्त्रीमगन और दूसरों को कलंकित करने, कुछ लोगों की एक दूसरे को लढ़ाने, पारस्परिक वैमनाय फैलाने झुठी गवाही देने, झूठे खत पत्र लिखने एवं नामा लेखा बनाने की आदत पड़ जाती है। वे अपने इस प्रकार की आदतों में ही आनन्द प्रमोद मानते हैं। लेकिन ऐसी आदतों में सत्यांश बिल्कुल नहीं होता किंचित सत्य भी होता है तो वह असत्य में परिणित हो जाता है। अपना आत्म विकास एवं स्व-पर का समुत्थान चाहने वालों को ऐसी नीच आदतों को मूलतः छोड़ देनी चाहिए। वास्तविक आदतों को अपनाने वाले व्यक्तियों का ही सर्वत्र समादर होता है। For Private And Personal Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भोगविलास में रोगों का, कुल परिवार में नाश होने का, धन वैभव में राजा चौर, अग्नि आदि का, मौन रहने में दीनता का बल पराक्रम में शत्रुओं का, रूप में जरावस्था आ जाने का, शास्त्रज्ञता में चर्चा का, गुण में खलपुरुषों का और काया में यमराज का इस प्रकार संसार की सभी वस्तुएं भय से युक्त है। सिर्फ ज्ञान गर्भित वैराग्य ही एक ऐसा निर्भय है कि जिस में किसी प्रकार की चिन्ता या भिति नहीं है। जो व्यक्ति अहिंसा तप और संयम की कसौटी पर चढ़कर उत्तीर्ण हो जाता है उसी को निर्भय पद प्राप्त होता है। जो इस कसौटी पर नहीं चढ़ता वह भव सागर में अनन्तकाल तक भ्रमण करता रहता है। For Private And Personal Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org संकल्प हमारा आचार्य प्रवर, कविरत्न विजय विद्याचन्द्र सूरीश्वरजी म.सा. श्री सम्मेतशिखरजी तीर्थ का कण-कण हमारे लिये वंदनीय एवं पूजनीय है । उसे किसी भी किंमत पर अपवित्र कृत्यों का केन्द्र नहीं बनने दिया जा सकता है। तीर्थ रक्षा के पवित्र अभियान में तन-मन और धन सभी महत्वहीन हो जाते हैं। धन्य बनता है उनका जीवन जो तीर्थों की रक्षा के महायज्ञ में अपने आपको अर्पित कर बलिदान की पवित्र परम्परा प्रारम्भ करते हैं। श्री सम्मेतशिखरजी के लिये भी यदि आवश्यकता पड़ी तो ऐसी ही परम्पराओं का शुभारम्भ करना होगा। वह पवित्र स्थल जहां से २० तीर्थकर १२८० गणधर और अनन्त मुनि मोक्ष पधारे, जैनों के प्राणों से प्रिय है। वे उसे पुन: प्राप्त करने के लिये दृढ़ प्रतिज्ञाबद्ध है। आज गांव-गांव से इन्हीं प्रतिज्ञाओं का पुनरुच्चार हो रहा है तथा मुझे प्रसन्नता है कि धानसा में आयोजित यह जैन सम्मेलन भी ठोस कदमों के साथ इसी संकल्प को दुहराने जा रहा है। चाहे कितना ही उत्सर्ग और बलिदान देना पड़े। जैन समाज तैयार रहेगा और सतत् संघर्ष करेगा उस पवित्र भूमि के पुनः पूर्ण अधिकरण को प्राप्त करने के लिये । ■ विजय विद्याचन्द्रसूरि Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धानसा में आयोजित जैन सम्मेलन में दिये गये प्रवचन का अंश २२ For Private And Personal Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - संकल्प ____“यह जैन सम्मेलन संपूर्ण जैन समाज के इस संकल्प को दोहराता है कि पारसनाथ हिल्स (श्री सम्मेतशिखर) के अधिकार पुनः प्राप्त करने हेतु वह दृढ़ कटिबद्ध है। एवं जब तक तीर्थ प्राप्त नहीं होगा वह अपनी अहिंसात्मक तथा संविधान संगत कार्यवाही निरन्तर जारी रखेगा। चाहे इसके लिये कितने ही मूल्य एवं उत्सर्ग हेतु उसे तैयार होना पड़े।" म - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - Kare 58380908 881001290000RRA - धानसा में आयोजित जैन सम्मेलन में पारित प्रस्ताव न जैन समाज को आह्वान “यह जैन सम्मेलन जो पारसनाथ हिल्स (श्री सम्मेतशिखर तीर्थ) के अधिकरण को पुनः प्राप्त करने के लिये अहिंसात्मक तथा वैधानिक संघर्ष | हेतु सम्पूर्ण जैन समाज का आह्वान करता है तथा अपील करता है कि वह बिहार सरकार को अपनी अवैधानिक कार्यवाही निरस्त करने के लिये बाध्य करने हेतु संगठित होकर अपनी कार्यवाही में सतत् संरत रहे। यही नहीं | तन-मन-धन से इस हेतु होने वाले समस्त आंदोलनों में योगदान देते हुए उन्हें| सबल वाणी प्रदान करें। यह प्रश्न हमारी अपनी धार्मिक भावनाओं, वैधानिक अधिकारों तथा धार्मिक स्वतंत्रता का है। जिस पर किसी भी प्रकार का हस्तक्षेप कष्टकारक ही नहीं असल भी है। अतएव वह हर समय समस्त प्रतिरोधों को समर्थन एवं सहकार देने हेतु तैयार रहे।" - धानसा : राज. : में आयोजित जैन सम्मेलन में पारित प्रस्ताव - - २३ For Private And Personal Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शुभ सन्देश (दिनांक २८ सितम्बर १९६४) धर्म बन्धुओं! 'धर्म निरपेक्ष राज्य' की घोषणा के साथ प्रत्येक नागरिक की धार्मिक स्वतंत्रता को अक्षुण्ण रखने के प्रावधान ने प्रजातंत्र को आदर्शजन्य बनाया है । इस देश के कर्णधारों ने हर देशवासी को यह स्वतंत्रता मौलिक अधिकार के रूप में दी किन्तु खेद है जैन समाज के साथ उसकी रीति-नीति ठीक विपरीत रही । आज जहां चैत्यालय डकैतियों के शिकार बन रहे हैं - जैन मूर्तियों की चोरियां साधारण-सी बात हो गई है वहीं शासकीय प्रस्ताव भी धार्मिक संस्कार भूत जीवन को ध्वस्त करने में सतत् संरत् है। भगवान महावीर के जन्म दिवस की एक छुट्टी भी केन्द्रिय सरकार नहीं स्वीकार कर रही है। कुछ राज्यों ने तो बालकों, ग्रामीणों व स्त्रियों को अण्डे वितरण का कार्यक्रम बना कर हमारी संस्कृति पर भयंकर कुठाराघात किया है। मंदिरों में बम विस्फोट तक हुए हैं - किन्तु जैनों के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा करने में यह शासन पूर्ण असफल रहा है। बिहार सरकार द्वारा पवित्र तीर्थ श्री सम्मेतशिखरजी को जिस अनुचित, अवैधानिक तथा अप्रजातांत्रिक ढंग से लेण्ड रिफार्म एक्ट के अन्तर्गत अधिकृत किया गया है, उससे एक नवीन विपत्ति उठ खड़ी हुई है। श्री सम्मेतशिखरजी की महत्व हमारे प्राणो से भी अधिक है, जिसकी पवित्रता को बचाये रखना हमारा पुनित कर्तव्य है । यह तीर्थ २० तीर्थङ्कर देवों तथा १२८० गणधर भगवन्तों को निर्वाण भूमि एवं अनन्त सिद्धों की मोक्षभूमि है - एक-एक कण इसका हमारे लिये वंदनीय, पूजनीय तथा अर्चनीय है। आज भी प्रतिवर्ष लाखों यात्री इसकी यात्रा द्वारा अपने आपको धन्य बनाते हैं तथा इसके आध्यात्मिक वातावरण में लयलीन हो आत्मविभोर हो जाते हैं। यह तीर्थ हमारे आत्मसाधना रूपी लक्ष्य का प्रतीक है - यही नहीं जैन समाज की क्रय की हुई अपनी सम्पत्ति है । इस पर हस्तक्षेप जैन मात्र के अधिकारों पर हस्तक्षेप है जो अत्यन्त असहनीय है। २४ For Private And Personal Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जैन समाज को आज जागृत होना है तथा संघर्ष के लिये बिगुल बजानी है किन्तु यह संघर्ष पूर्णतया अहिंसक तथा औचित्य पूर्ण होगा यह हमारी संस्कृति और शालीनता के अनुरूप ही होना अत्यावश्यक है। यद्यपि बिहार सरकार विभिन्न आश्वासन दे रही है, किन्तु वे मात्र जैन समाज का नैतिक साहस ही कम कर सकते हैं। वह अधिकार नहीं देना चाहती किन्तु चाहती है देना केवल आश्वासन यह प्रश्न जैन समाज के जीवन मरण का प्रश्न है। इस स्थिति में इसका एक मात्र हल यही है कि जैन समाज को सम्मेतशिखरजी का अधिकरण पुनः दे दिया जाए। प्रजातंत्र में संभवतः यह निर्णय सबसे दुर्भाग्यपूर्ण निर्णय है। मुगलसम्राट भी जिस ओर दृष्टि न उठा सके थे, ब्रिटिश शासक भी जिसके विषय में कुछ नहीं सोच सके थे यदि वह अकृत्य लोकतांत्रिक सरकार करती है तो यह सबसे बड़ी दुर्घटना है। इस युग की ! आवश्यकता तो यह है कि नैतिक व धार्मिक आचरणों की जनजीवन में अधिकाधिक प्रभावना की जाए किन्तु आज तो भौतिकवादी ढंग पर हर कार्य सरकार सोचती और निर्णित करती है। इसी कारण देश में भ्रष्टाचार, अनाचार और अनैतिकता दिन-ब-दिन अपने पंजे फैलाते जा रहे हैं। श्री सम्मेतशिखरजी के पवित्र हवामान तथा उत्तमोत्तम वातावरण को बिगाड़ने का प्रयास भी जनता में दुष्प्रभाव ही डालेगा। जैन संस्कृति का भारतीय जनजीवन में स्वर्णिम स्थान है । उत्तुंग शैलशिखरों पर स्थित तीर्थों, कलात्मक वैभव से सम्पन्न जिनालयों, प्राकृतिक सम्पदा से युक्त स्थलियों ने भारतीय जीवन को बनाने में अत्यन्त योगदान दिया है। ये तीर्थ ही ऐसे स्थान हैं कि जहां भौतिकता के इस उकलते वातावरण में मानव आत्मशांति का रस पान कर सकता है। यदि ऐसे स्थानों पर भी अपवित्रता के चक्र चलने लगे तो आत्मसाधना का जीना दूभर हो जाएगा। इसलिये आवश्यकता है कि सम्मेतशिखरजी के एक-एक कण को उनकी गौरव गरिमाओं के अनुरूप ही पवित्र रखा जाए। मुझे प्रसन्नता है कि धानसा की गतिशील संस्था श्री सम्मेतशिखर सुरक्षा परिषद् की ओर से यह विशाल सम्मेलन आयोजित किया गया है तथा मात्र विरोध प्रदर्शन ही नहीं ठोस कार्यवाही भी करने जा रहा है। मैं इसके आयोजकों तथा कार्यकर्ताओं की प्रशंसा किये बिना नहीं रह सकता। (प्रशेष पेज ५० पर) २५ For Private And Personal Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अभिनन्दन उस तीर्थराज को बारम्बार हमारा है . पं. श्री मदनलाल जोशी 'शास्त्री' साहित्यरत्न, मंदसौर पुण्य भूमि यह भारत इसका, कण-कण हमको प्यारा है। इसके चरणों में अभिनन्दन, बारम्बार हमारा है। सागर की यह लहरे जिसका, गौरव गीत सुनाती है। सतरंगी सुरज की किरणे, देख जिसे मुस्काती है ॥ तारों के संग चन्दा राजा, जिस पर अमृत बरसाता है। नई नवेली उषा रानी, देख जिसे हरषाती है॥ सरिता सरवर नदी निर्झर की, कल-कल करती धारा है। उस भारत को शत-शत वन्दन, बारम्बार हमारा है॥ १॥ प्रकृति नटी के पावन मंदिर, की यह पर्वत मालाएं । श्याम सलोना रूप दिखाती, रसवंती घनमालाएं ॥ ये उपजाऊ खेत सांवरे, हरे-भरे औरत नारे । स्नेह दीप की सजा आरती, करती है सुर बालाएं ॥ अखिल विश्व का वरदायक जो केवल एक सहारा है। उस भारत को शत-शत वन्दन, बारम्बार हमारा है ॥ २॥ यह देखो गिरनार तीर्थ की, ध्वजा गगन में लहराती। तीर्थकर श्री नेमीनाथ की, निर्मल गाथाएं गाती॥ महासती राजुल की स्नेहील, स्मृतियां जिसमें जाग रही। संयम व्रत के साथ अहिंसा, की शिक्षाएं सिखलाती॥ पलभर में महलों को तजकर, जिसने नेमी पुकारा है। उस भारत को शत-शत वन्दन, बारम्बार हमारा है ॥ ३ ॥ शत्रुजय, गिरी ने कामादिक, जीते रिपु के दल भारी। For Private And Personal Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिसकी महिमा से विस्मित है, अब भी यह पृथ्वी सारी ॥ आदिकाल से आदिश्वर की, छटा अभी भी वैसी है। शत्रुजय जय आदिनाथ की जय-जय करते नर नारी ॥ जिसने उसको भजा कि उसकी, टुटी जग की कारा है। उस भारत को शत-शत वन्दन, बारम्बार हमारा है॥ ४ ॥ पूरब पश्चिम उत्तर दक्षिण, तीर्थ बने इसके सारे। गुजर, बंग, मनोहर मालव, मोहक मरूधर मतवारे ॥ . इसकी मिट्टी के कण-कण में, उस अखिलेश्वर की छाया । जिसने लाखो और करोड़ो, को भवसागर से तारे ॥ देवी ने भी जिसकी रज को निज मस्तक पर धारा है। उस भारत को शत-शत वन्दन, बारम्बार हमारा है ॥ ५ ॥ भारत मां का हृदय सुहाना, मस्त मालवा मनहारी । मोहनखेड़ा तीर्थ बना है, जिस पर हम सब बलिहारी ॥ दिव्य प्रभा श्री राजेन्द्र सूरि की, जहां आज भी इटलाता। जिसके सातो कोष देखकर, मुग्ध हुई जगती सारी। जो यतीन्द्र बनने का साधन, विद्या धाम हमारा है। उस भारत को शत-शत वन्दन, बारम्बार हमारा है॥ ६ ॥ अब देखो उस ओर कि जिसका, यह इतिहास पुराना है, कोई देखे या ना देखे, जाना पहचाना है। हो सम्मेत शिखर पर जिसके, तीर्थकर निर्वाण गये, वह सम्मेत शिखर सर्वोत्तम, अनुपम तीर्थ सुहाना है। जिसका कण-कण हम सबके, इन प्राणों से प्यारा है। अभिनन्दन उस तीर्थराज को, बारम्बार हमारा है।। ७ ॥ For Private And Personal Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir MARNAAMANANAMMANORAMANANAINMANOMANNe weeRAMMAMECHNAME 2090805888383805 HERअद्वितीय मोक्षधाम तीर्थराज सम्मेतशिखर - - - मानव जीवन की सफलता मानवीय गुणों के सम्पूर्ण विकास में निहित है। जीवन के बाह्य आचारों में व्यस्त मानव, अपनी आत्म ऋद्धि के सामर्थ्य से अक्सर बेखबर होता है। आत्मज्ञान हेतु उसे गुरु उपदेश, देव दर्शन, पूजन, तीर्थ स्पर्शना तप स्वाध्याय आदि सद्प्रवृत्तियाँ का आलंबन परमावश्यक है, जो तीर्थ भूमि में समुपलब्ध होती है। तीर्थ स्थली की यात्रा में सद्भावों का वृक्ष सुविकसित होता है, यह निर्विवाद है। इसलिए तीर्थों को तरिणी स्वरूप कहा गया है। तीर्थ स्थल के अहालादक पवित्र वातावरण में आत्म शुद्धि सहज होती है। तीर्थ दो प्रकार के स्थावर और जंगम बतलाए गए हैं। ज्ञानवंत सद्गुरु जंगम तीर्थ की गणना में है। स्थावर तीर्थ श्री सम्मेतशिखर, चंपापुरी, गिरनार, पावापुरी सिद्धाचल आदि हैं। स्थावर तीर्थों को तीन भागों में विभक्त किया गया है। १. सामान्य जिन चैत्य, २. अतिशय क्षेत्र, ३. सिद्ध क्षेत्र। सामान्य जिन चैत्य वे मंदिर हैं, जिनमें जिनेश्वर मूर्तियाँ प्रतिष्ठित स्थापित हों। अतिशय क्षेत्र वे तीर्थ कहलाते हैं, जो महान् प्रभावक आचार्यों द्वारा प्रतिष्ठित हों अथवा भगवान के च्यवन, जन्म, दीक्षा और केवलज्ञान कल्याणक का जिन क्षेत्रों को सौभाग्य प्राप्त या जहाँ तक्षण एवं स्थापत्य कला का चरम विकास हुआ हो एवं जिन तीर्थों के प्रभाव सम्बन्ध में विभिन्न लोक गाथाएँ प्रचलित हों। जैसे- कोरंटक, ओसिया, नांदिया, दियाणा, नाणा, अयोध्या, हस्तिनापुर, सिंहपुरी, चन्द्रपुरी, बनारस, आबुजी, राणकपुर, नाकोड़ा, जिरावला, महावीरजी, प्रद्मप्रभुजी, शंखेश्वरजी आदि तीर्थ अतिशय क्षेत्र हैं। सिद्धक्षेत्र निर्वाण, कल्याणक भूमि है। अष्टपदजी, सम्मेतशिखरजी, चंपापुरी, गिरनार, पावापुरी आदि हैं। यहाँ तीर्थंकर मोक्ष गए हैं। निर्वाण भूमि की विशेषता तीर्थों में सर्वोपरी इसलिए मानी गई है कि वहाँ जिनेश्वरों की चरम सिद्धि निष्पन्न होती है। तीर्थंकर भगवन् उत्तमोत्तम पुरुष कहलाते हैं। उनके निर्वाण जाते समय उनका परमौदारिक देह यहीं रह जाता है, जिसके पावन परमाणु यहाँ बिखरे रहने से एवं उनके पवित्र देह का अग्नि संस्कार यहीं For Private And Personal Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir होने से तीर्थ स्थल आत्म जागृति हेतु परम प्रेरक होते हैं। वर्तमान चौबीसी के बीस तीर्थंकर श्री सम्मेतशिखर पर निर्वाण होने से इस तीर्थराज की महिमा सर्वोपरी है। अन्य चार निर्वाण क्षेत्रों में प्रत्येक में मात्र एक-एक तीर्थकर ही मोक्ष गए हैं। इस दृष्टि से श्री सम्मेतशिखर तीर्थ की महिमा अतुलनीय है। भारतीय तीर्थों में यह गौरवशाली महातीर्थ है। श्री सिद्धाचल (शत्रुजय) एक भी तीर्थंकर भगवान की निर्वाण भूमि न होते हुए मात्र असंख्य मुनियों की सिद्ध भूमि होने से, अनेकानेक आराधकों का आकर्षण केन्द्र है। किन्तु यह तीर्थ, प्रायः शाश्वत है। अनंतानंत मुनियों का सिद्धि धाम एवं लोकोत्तर महिमा रूप होने से कल्याणक भूमि में अपवाद रूप हैं अन्यथा। जगत् के अनेकानेक तीर्थों में तीर्थंकरों की मोक्ष भूमि वाले क्षेत्र विशेष आकर्षक एवं प्रभावक हो,,यह स्वाभाविक है। क्योंकि वीतराग प्रभु की उपासना के अंतिम फलस्वरूप कर्म निर्जरा के आदर्श ध्येय की परिपूर्णता, मोक्ष स्थिति में ही परिव्यक्त होती है। जीवन की ये धन्य घड़ियाँ, सहस्त्र वर्षों के काल के अनन्तर कभी-कभी उद्भवित होती है और जिन तीर्थ स्थलियों के पावन वक्ष पर परम तारक श्री तीर्थंकर भगवान का निर्वाण मोक्ष गमन होता है, उनकी महिमा जग में अतीव कही जा सकती है। __श्री सम्मेतशिखर तीर्थ पर अर्वाचीन चौवीसी के बीस तीर्थंकरों के निर्वाण तो हुए ही हैं, इनके उपरान्त अनेकानेक गणधर और असंख्य मुनियों को मोक्ष प्राप्त हुआ है। शास्त्रकारों द्वारा श्री सम्मेतशिखरजी तीर्थ को शाश्वत मोक्ष गिरी बतलाया है। क्योंकि इस तीर्थराज पर विगत वर्तमान और आने वाली चौविसियों में तीर्थंकरों का मोक्ष जाना भी बतलाया है। इसलिए यह शाश्वत मोक्ष तीर्थ कहा गया है। श्री सिद्धाचलजी को प्रायः शाश्वत तीर्थ बतलाया है। प्रायः सिद्धगिरि शाश्वतो, रहेशे काल अनन्त। . श्री वीरविजयजी कृत दोहा प्रायः सिद्धगिरि शाश्वतो, महिमानो नहीं पार। प्रथम जिनेश्वर समोसर्या, पूर्व नवाणु वार॥ . (वीर विजयवी कृत नवाणुप्रकारी पूजा) २२ For Private And Personal Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org श्री सम्मेतशिखरजी तीर्थ की महिमा शत्रुंजय से भी बढ़कर बतलाते हुए १८ .वीं शताब्दी के पं. विजयसागरजी ने गाया है: अधिक ए गिरि गिरूअड़ो, शत्रुंजय थी जाणिएजी । वीर जिनेश्वर इम मणे, इन्द्रादिक सुर पास। सम्मेतशिखर तीरथ सिरे वीस प्रभुजी हां वास || ■ कविवर दयारुचि कृत सम्मेतशिखर रास जिन परिकर बीजा केई, पाम्या शिवपुरी वास रे ॥ ७ ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ■ श्री पद्यविजयजी कृत सम्मेतशिखर स्तवन ऐ वीशे जिन एणे गिरि, सिद्धा अणसण लेई रे । पद्मविजय कहे प्रणमिए, पास शामलन चेई रे || भगवान सीमंधर स्वामी ने श्री सम्मेतशिखर शाश्वत तीर्थ की महिमा बतलाकर वहाँ कनकावती नगरी में इसकी स्थापना महाविदेह क्षेत्र में करवाई जाने के शास्त्रों में उल्लेख है, यही इस तीर्थ की सर्वोत्कृष्टता का सबल प्रमाण है । भारतवर्ष की महा जैन नगरी अहमदाबाद में भी श्री सम्मेतशिखर तीर्थ की स्थापना कविवर श्री पद्मविजयजी महाराज के सुदुपदेश से की गई है। जिस मुहल्ले के मन्दिर में इस तीर्थराज की स्थापना है, वह सम्मेतशिखर पोल के नाम से प्रसिद्ध है। यह स्थापना तीर्थ भारतीय काष्ठ शिल्प की उत्तमोत्तम कृति है । सम्पूर्ण शिल्प एक बड़े काष्ठ में से खुदाई कर हूबहू पर्वत वन - श्रृंखला और उन पर बने मन्दिर तथा वनस्पति, पशु-पक्षी, यात्रीगण, नाले-घाटी, ढालु भूमि आदि चमत्कारपूर्ण लक्षित किए गए हैं। श्री सिद्धाचल तीर्थ पर भी श्री सम्मेतशिखर तीर्थ स्थापना का एक स्वतंत्र चैत्य बना हुआ है। प्रभु पगला रायण हेठे, पूजी परमानन्द । अष्टापद चौविस जिनेश्वर सम्मेत वीस जिणंद ॥ संवत् १८४९ के श्री पद्मविजयजी के सिद्धाचल पर स्थित मंदिरावली के परिचयात्मक स्तवन से: ३० For Private And Personal Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूरत के गोपीपुरा की मोटी पोल के श्री पार्श्वनाथ मंदिर में भी ईंट-चूने से श्री सम्मेतशिखर तीर्थ की प्रति कृति निर्मित है, वह भी अपने समय की एक सुन्दर कृति है। स्थापना तीर्थ की इस व्यापकता से स्पष्ट है कि श्री सम्मेतशिखर तीर्थराज की प्रसिद्धि सदैव रही है। वर्तमान में तो तीर्थ पट्टों के निर्माण की एक ऐसी परम्परा व्युत्पन्न हो उठी है कि कुछ ही मन्दिर इस तीर्थ पट्ट की स्थापना से बचे होंगे। एक अरब छिमंतर (चौहत्तर) करोड़ और गुणसाठ लाख उपवास सहित पौषध का लाभ श्री सम्मेतशिखर तीर्थ की यात्रा भाव पूर्वक करने का फल शास्त्रकारों ने बतलाया है। एक तो क्या, अनेक भवों के तप से भी पा सकना असंभव है। महान् तप लाभ, जो युगों एवं भवान्तरों के कर्म कल्मष को भस्मीभूत करने में सक्षम होता है। श्री सम्मेतशिखर तीर्थ की यात्रा कर इस अलभ्य लाभ को प्राप्त करने हेतु सुज्ञ पाठक निरन्तर प्रयत्नशील रहेंगे। मानव जीवन एवं श्रावक भव के कल्याणकारी श्री सम्मेतशिखर यात्रा लाभ प्राप्त कर धन्यता अनुभव करेंगे। वस्तुतः श्री सम्मेतशिखरजी तीर्थ भूमि भारत का सिरमौर एवं मानवीय सभ्यता के परम पुरस्कर्ता जिनेश्वरों की निर्वाण स्थली होने से जगत् मात्र का गौरव है। ___ भगवान ऋषभदेव ने अपने मुख से सम्मेतशिखर शाश्वत तीर्थ की यह विशद् महिमा फरमाते कहा कि वर्तमान चौवीसी के बीस तीर्थंकर इस पुण्य गिरिराज पर निर्वाण प्राप्त करेंगे और असंख्य आत्माएँ मोक्ष प्राप्त करेंगी। ऐसे वचन सुनकर श्री भरतेश्वर ने इस तीर्थ पर मन्दिर बनवाए थे। तदन्तर सभी जिनेश्वरों के शासन में इस तीर्थराज के उद्धार होते रहे, जो निम्न प्रकार से हैं:___ भगवान श्री अजीतनाथ के समय आचार सागर सूरि के उपदेश से चक्रवर्ती सगर के पौत्र राजा भगीरथ ने उद्धार करवाया था। ___ श्री संभवनाथजी के समय में गणधर श्री चारूक के उपदेश से हेमनगर के राजा हेमदत्त ने उद्धार करवाया था। श्री अभिनन्दन भगवान के समय में धातकी खण्ड के पुरणपुर नगर के राजा रत्नशेखर द्वारा उद्धार करवाया गया था। श्री सुमतीनाथ के शासन में पद्मनगर के राजा आनंद सेन ने इस तीर्थराज का उद्धार करवाया था। श्री प्रद्मप्रभु के शासन में बंग देश के प्रभाकर नगर के राजा सुप्रभ द्वारा उद्धार करवाया गया था। For Private And Personal Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री सुपार्श्वप्रभु के शासन में उद्योतन नगर के राजा उद्योतक ने चारण मुनि के उपदेश से उद्धार करवाया था। श्री चन्दाप्रभु के शासन में पुंडरीक के राजा ललित दत्त ने उद्धार करवाया था। श्री सुविधिनाथ के समय में श्रीपुर नगर के हेमप्रभराजा ने इस तीर्थ का उद्धार करवाया था। श्री शीतलनाथ के समय में मालवा के भद्दिलपुर नगर के राजा मेघरथ ने उद्धार करवाया था। श्री श्रेयांस प्रभु के शासन में मालवा के बालनगर के राजा आनंद सेन ने उद्धार करवाया था। श्री विमलनाथजी के शासन में पूर्व महाविदेह की कनकावती नगरी के राजा चन्द्रशेखर ने उद्धार करवाया था। श्री अनन्तनाथ भगवान के समय में कोशांबी नगरी के राजा बालसेन ने भी विद्याचारण मुनि के उपदेश से इस तीर्थ का उद्धार करवाया था। ___ श्री धर्मनाथ प्रभु के समय में मासोपवासी श्री धर्मघोषसूरि के उपदेश से श्रापुः नगर के राजा भवदत्त ने उद्धार करवाया था। श्री शांतिनाथ भगवान के समय में चक्रायुध गणधर के उपदेश से मित्रपा ने राजा सुदर्शन द्वारा इस तीर्थ का उद्धार करवाया गया था। श्री कुंथुनाथजी भगवान के समय में वत्स देशस्थ शालीभद्र नगर क ग । देवधर ने उद्धार करवाया था। __ श्री अरनाथ शासन में भद्रपुर के राजा आनन्दसेन ने गरूड़ यक्ष की प्रेरणा से इस तीर्थ का उद्धार करवाया था। श्री मल्लीनाथ भगवान के शासन में कलिंग देशस्थ श्रीपुर के राजा अमरदेव ने उद्धार करवाया था। श्री मुनिसुव्रतस्वामी के समय में रत्नपुरी नगर के राजा सोमदेव ने इस तीर्थ का उद्धार करवाया था। श्री नमीनाथ के समय में श्रीपुर के राजा मेघदत्त ने इस तीर्थ का उद्धार करवाया था। श्री पार्श्वनाथ प्रभु के समय में आनन्द देश के राजा प्रभसेन ने वीसस्थानक तप करके आचार्य दिनकर सूरि के उपदेश से इस तीर्थ का उद्धार किया था। इसके ३२ For Private And Personal Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पश्चात् भगवान महावीर के सदुपदेश से मगध सम्राट श्रेणिक ने इस तीर्थराज का उद्धार का सौभाग्य प्राप्त किया था। इसके पश्चात् वनवासीगच्छ के आचार्य श्री यशोदवसूरि के पट्टघर श्री प्रद्युम्न सूरि ने इस तीर्थ का उद्धार करवाया था और इसके पश्चात् ही इस तीर्थ का क्रमबद्ध इतिहास व्यक्त होता है। श्री सम्मेतशिखर तीर्थ पर स्थित जल मन्दिर में एक प्राचीन विशाल चौवीसी सर्व धातुमय प्रतिमा पर सं. ११८७ का शिलालेख है। एक और शिलालेख में सम्मेतशिखर के मन्दिरों के जिर्णोद्धार एवं प्रतिष्ठा सं. १३४५ में किए जाने का प्रमाण मिलता है। यह शिलालेख आबू गिरिराज वर्तुल के विख्यात तीर्थ श्री कुंभारियाजी मन्दिर में है। प्राचीनकाल में तीर्थ स्थानों में प्रायः मुख्य उल्लेखों को शिलालेखों में उत्कीर्ण कर लेने की प्रणाली रही थी। श्री अर्बुदाचल प्रदिक्षिणा जैन लेख संदोह आबू भाग ५ में लेख सं. ३० में उल्लेख है कि परमानंद मृरि के सदुपदेश से सम्मेतशिखरजी तीर्थ में मुख्य प्रतिमा की प्रतिष्ठा करवाई.....। तेरहवीं शताब्दी में हुए आचार्य देवेन्द्रसूरि विरचित 'वृन्दारूवृत्ति' में श्री सम्मेतशिखर नीर्थ पर जिन प्रतिमाएँ होने के उल्लेख हैं। (३) लेकिन मध्य युग में अनेक राज्य क्रान्तियाँ हुईं। हिन्दुओं का शासन छिन्न-भिन्न हुआ और साथ ही धर्मों में अनेक उथल-पुथल हुए। शंकराचार्य के उद्भव ने बौद्ध धर्म को भारत से खदेड़ दिया। इतिहास बतलाता है कि शंकराचार्य के पहले पूर्व, भारत में जैन धर्म खूब विकसित था। लेकिन नवमी शताब्दी के आरंभ के साथ ही यहाँ के वातावरण में परिवर्तन हुआ और यहाँ के कई जैन सुदूर मालवा राजस्थान लाट इत्यादि प्रदेशों में चले गए। अपने साथ वे इस तीर्थ वर्तुल के नगरों से मुख्य प्रतिमाएँ भी ले गए। (४) संभव है इस तीर्थ की प्रतिमाएँ भी आपत्तिकाल में अन्यत्र ले जाई गई हो। इस तीर्थराज पर बीस तीर्थंकर भगवान की छत्रियाँ उनके निर्वाण स्थल पर ३. चैत्यान्त विधिवत गत्वा, कृत्वा तिस्त्र (प्रदिक्षणा), स्नपयित्वा जिनानुचैर्रचयामास सादर । ४. श्री जिनप्रभसूरि लिखित विविध तीर्थ कल्प में उल्लेख है कि नवांगी वृत्तिकार श्री अभयदेव सूरि के आचार्य श्री देवेन्द्र सूरि ने अयोध्या से चार विशाल प्रतिमाएं लाकर एक मालधार गांव में तथा तीन प्रतिमा सेरीसा (गुजरात) में स्थापित की - और देखिये जैन परम्परानो इतिहास भाग (२) प्रकरण ७ प्रष्ठ ३०२ प्रकरण ४२ पृष्ठ ७४४ भाग ३ प्रकरण ४५। For Private And Personal Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बनी हुई हैं, जिनका प्रत्येक जिर्णोद्धार में सदैव संस्कार होता रहा है। सम्मेतशिखर गिरि के सर्वोच्च अंग पर (सुवर्णभद्र कुट) श्री पार्श्वनाथ प्रभु की निर्वाण स्थली है, जहाँ उनकी चरण पादुकाएँ स्थित देहरी पर एक रमणीय विशाल शिखरबद्ध मन्दिर बना हुआ है। बीस तीर्थंकर छत्रियों के उपरान्त शुभ गणधर भगवान की मोक्ष स्थली पर एक चरण पादुकामय छत्री निर्मित है, इनके उपरान्त श्री ऋषभ चन्द्रानन वारिषेण और वर्द्धमान नामक शाश्वत तीर्थंकर चतुष्टय की चार स्थापना तीर्थमय पादका वाली चार छत्रियाँ हैं और श्री ऋषभदेव. श्री वासपज्य, श्री नेमीनाथ और श्री महावीर प्रभु के भी चार स्थापना तीर्थमय चार पादुका युक्त छत्रियाँ विद्यमान है। एक छत्री श्री गौतमस्वामी भगवान की स्थापना तीर्थ रूप है, जिसमें साधु भगवंता की अनेक चरण पादुकाएँ चिह्नित हैं। ऐसी छत्री संख्या तीस है और जल मन्दिर मिलाकर कुल इकतीस यात्रा स्थल। सभी छत्रियों में जिनेश्वर एवं गणधरों की चरण पादुकाएँ विराजमान हैं, जो तीर्थ की सादगी एवं अर्चना विभेद को सुरक्षित रखे हुए है। सम्मेतशिखर की घाटी में जहाँ विपुल वन सम्पदा है और अपूर्व शांत सुरम्य वातावरण में एक जल मन्दिर निर्मित है, जिसका जीर्णोद्धार श्री सकल सूरि के उपदेश से शेट खुशालचंदजी द्वारा करवाया गया था। मूलनायक श्री पार्श्वनाथ बिंब पर तद्विषयक लेख उत्कीर्ण __(५) इसी मन्दिर में सहस्रफण पार्श्वनाथ की एक विशाल मूर्ति है, जिस पर भी सं. १८२२ का शिला लेख है। छत्रियाँ, जो समूचे पर्वत पर जगह-जगह स्थित है, उनमें स्थित चरण पादुकाओं पर सं. १८२५ से सं. १९३१ तक के शिला लेख उत्कीर्ण हैं। (६) स. १८२५ के लगभग जो उद्धार हुआ, उसका श्रेय श्री सकलसृरि के उपदेश से शेठ श्री खुशालचंदजी, सुगालचंदजी इत्यादि को है और १९३१ के लगभग जीर्णोद्धार कार्य मल्लधारी पूर्णिमाविजय गच्छ भट्टारक जिनशांतिसागरसूरि के उपदेश से हुआ था। ___आचार्य विजय धर्मसूरि के शिष्य सराक जाति उद्धारक उपाध्याय श्री मंगल विजयजी के उपदेश से कलकत्ता जैन संघ ने इस तीर्थ का उद्धार करवाया था। अंतिम उद्धार श्री सागरानंद सूरि की शिष्या विदुषी श्री रंजन श्रीजी के उपदेश से संघ द्वारा करवाया गया। इस जीर्णोद्धार में श्री सम्मेतशिखर तीर्थ के समस्त ट्रंकों For Private And Personal Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir को नया रूप दिया गया। इस जीर्णोद्धार के पूर्व निर्वाण भूमिका पर खुले चबूतरों पर पगलियाजी विराजमान थे। उनको वन्य बन्दर आदि प्राणियों द्वारा नाना आशातनाएँ हुआ करती थीं, किन्तु इस जीर्णोद्धार में समग्र चबूतरों पर लघु देहरियाँ संगमरमर के पत्थर से निर्मित की गई और उनके पाट लगे होने से वहाँ अशातना की गुंजाईश अब नहीं रही। इसके उपरान्त जल मन्दिर को नए सिरे से शिल्प नियमानुसार अभिनव शैली से निर्मित किया गया है। इस जीर्णोद्धार के पश्चात् महोत्सवपूर्वक सं. २०१७ फागुण वदि ७ बुधवार को माणिक्यसागरसूरिजी द्वारा प्रतिष्ठा करवाई है। इस प्रतिष्ठा में मूलनायक प्राचीन प्रतिमा श्री पार्श्वनाथजी प्रभु की स्थापना कलकत्ता के व्यवसायी सेठ श्री अदरजी मोतीचन्द मेहता ने एक लाख सौलह हजार एक रुपये की बोली देकर की थी। विगत दो शताब्दियों में इतनी बड़ी रकम बोली किसी जैन तीर्थ में हुई, सुनी नहीं गई। ___ तीर्थंकर प्रभुजीने सूत्रों में इस तीर्थ की खूब महिमा बतलाई है। इस महान् तीर्थ की वंदना में पूर्व आचार्यों ने विभिन्न स्तोत्रादि बनाए हैं। स्तवना और वन्दना में इस तीर्थराज को अपने महात्म्य के अनुरूप प्राथमिकता एवं प्रधानता दी है: णमो अरिहंताणं - चवण - जम्म वय णाण णिव्वाणपत्ताणं। अट्ठावय सम्मेतो - ज्जित पावासु तित्थेसु॥ श्री आचारांग सूत्र सु.चू. ३ भावनाध्ययन। णमो लोए सव्व सिद्धाययाणं श्री गौतम गणधर मल्लिणं अरिहा सुहंसुहेणं विहरिता जेणेव सम्मेत पव्वए सम्मेअ सेल सिहरे पाओवगम तेणं कासेणं तेणं समएणं अरहा पुरिसादाणिए... उप्पिं सम्मेअ सेल सिहरंसि अप्प चउतीस इमे मासिएणं भत्तेणं अप्पाणएणं श्री दशाश्नुत स्कन्ध छेद सूत्र अ. ८ विगत मोहोय अरो तित्थयरो? सम्मेतशिखर वंदु जिन वीश, अष्टापद वंदु चौवीस For Private And Personal Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विमलाचल ने गढ़ गिरनार, आबु उपर ऋषभ जुहार - सकल तीर्थ सूत्र - श्री जीवविजयजी ख्यातोअष्टापद पर्वतो गजपदः सम्मेत शैलामिधः। श्रीमान् रैवतकः प्रसिद्ध महिमा शत्रुजयो मण्डपः। - श्री हेमचन्द्राचार्य विरचित सकलार्हत सूत्र सम्मेताचल शत्रुजय तोलई, सीमंधर जिनवर एम बोलई एह वयण नवि डोलई - पं. जयविजय गणी विरचित तीर्थमाल अधिको ए गिरि गिरूअड़ो, शत्रुजयथी जाणियेजी । . श्री विजयसागरजी सम्मेतशिखर पुण्डरिक - आबु - अष्टापद - प्रमुख पंच तीरथ - श्री जिनहर्ष सूरि कृत वीस स्थानक पूजा भवन - व्यंतर - ज्योतिषिक - वैमानिक - नन्दीश्वर मन्दर कुलाचलाष्टापद सम्मेत शैल शिखर शत्रुजयोज्जयंतादि सर्वलोक स्थित श्री सिद्धसेनसूरि विरचित प्रवचन सारोद्धार सम्मेतशिखर सोहाभणो, शत्रुजय भणी रे। गिरनारे नेमीनाथ ॥नमो भवी तीर्थ ने रे॥ - श्री राजेन्द्र सूरि विरचित सर्व तीर्थ स्तवन ऋषभ थया अष्टापद सिद्धि, चंपा वासुपूज्य परमानंदी। उज्जित पावा नेमी वीरजी, सिद्धा सुम्मेत शिखर वीश सिद्धानंदी॥ पाँच क्रोड सुं पुण्डरीक गणधर शत्रुजय सिद्धानंदी - आचार्य धनचन्द्रसूरि विरचित सिद्ध पद पूजा इसके उपरान्त षडदर्शन समुच्चय, संबोध सत्तरी सिरिवाल कहा- दिनशुद्धि दीपिका आदि उत्कृष्ट ग्रंथों के प्रणेता एवम् बादशाह फिरोजशाह तुगलक प्रतिबोधक चौदहवीं शताब्दी के परम गीतार्थ महान् आचार्य श्री रत्नशेखर सूरि ने इस तीर्थराज की स्तवना में सोलह हजार श्लोक प्रमाण संस्कृत श्री सम्मेतशिखर महारास का निर्माण किया है। श्री जसकीर्ति महाराज ने भी एक सम्मेतशिखर रास चार खण्डों ३६ For Private And Personal Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir में तैयार किया। पंडित दयारूचि गणि द्वारा श्री सम्मेतशिखरजी का एक रास सं. १८३५ में लिखा गया था, जो भाषा में लिखा हुआ है और अहमदाबाद से निकली एक महान् संघयात्रा का कविवर मुनि श्री वीर विजयजी के शिष्य दासमुनि द्वारा एक रास श्री सम्मेतशिखर तीर्थ की अहमदाबाद से निकली अभूतपूर्व संघयात्रा के वर्णन को लेकर लिखा गया है, जो अत्यन्त रोचक है। श्री बालचंदजी उपाध्याय आदि अनेक मुनिवरों ने इस तीर्थराज सम्बन्ध में खूब लिखा। अभी हाल ही में मुनि श्री जयंतविजयजी मधुकर ने एक विस्तृत सम्मेतशिखर स्तवन की रचना की है, जो रोचक और पठनीय है। (१) तीर्थराज की स्तवना में जिन पुण्य पुरुषों ने श्रम लिया है, वह धन्य हैं। नवमी शताब्दी के पश्चात् जब पूर्व भारत से जैन प्रभाव छिन्न-भिन्न हो गया और उसके पश्चात् क्षेत्रीय अराजकता के कारण इस तीर्थराज की यात्रा में अनेक कठिनाइयाँ व्युत्पन्न हो उठी, तब गुजरात, राजस्थान, सिंध, पंजाब आदि प्रदेशों से यात्रियों का सुदूर श्री सम्मेतशिखर यात्रार्थ जाना अत्यन्त कष्टकर एवं श्रमसाध्य या। ___ शुद्ध मेयजल अभाव में गिरि शैल के निर्झरों के वनस्पति मिश्रित जल के सेवन से अनेक यात्री बीमार पड़ जाते, दारूण, जठर रोग ग्रस्त हो जाने के भय से भी इस तीर्थ यात्रा के लाभ को प्राप्त करने का साहस कुछेक ही करते हैं। संघ यात्रा के बगैर इस तीर्थ की यात्रा का लाभ प्राप्त करना, असाध्य-सा था। तथापि अनेक महान् आचार्यों द्वारा इस तीर्थराज की यात्रा की गई थी। बहुत पूर्वकाल में श्री जंधाचारण मुनि एवं श्री विधाचरण, श्री पादलिप्तसूरि आदि ने यहाँ यात्राएँ की थीं। श्री रत्नशेखर सूरि, शी बप्पभट्टसूरि, श्री श्री उद्योतनसूरि, कवि दयारुचि, श्री देवसूरि, मासोपवासी श्री धर्मघोषसूरि, चक्रायुध गणधर सूरि, दिनकरसूरि, श्री प्रद्युम्न सूरि (सात बार), विमचंद्रसूरि (१० बार), श्री वादीदेवसूरि, श्री जयविजय गणी, श्री हंससोमगणी-विजयसागर, श्री हीर विजय सूरि, पं. श्री रूपविजयजी, श्री वीरविजयजी, श्री विमलचंद्रसूरि, प्रभृति अनेकानेक महान् आत्माओं ने अत्यन्त कष्ट सहन कर भी इस तीर्थ की यात्रा की थी। लेकिन निरन्तर यात्रिकों के प्रवाह के अभाव में इस सघन आच्छादित शैल स्थित तीर्थ का विकास अन्यान्य जैन तीर्थों-सा नहीं हो पाया, अंग्रेजी शासनकाल में जब आवागमन के मार्गों का सुप्रबंध For Private And Personal Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हुआ, निरापद यात्राएँ संभव हुईं, तब इस तीर्थराज की जाहाजलाली खूब बड़ी व आज यहाँ यात्रियों को किसी भी प्रकार की तकलीफ नहीं होती है। Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सम्मेतशिखर पारसनाथ पहाड़ नामकरण से भारतीय नक्शे में दर्शाता है। भगवान पारसनाथ के इस तीर्थ पर निर्वाण प्राप्त करने के पश्चात् से इस पर्वतमाला को पारसनाथ पहाड़ कहा जाता है। जिनेश्वर भगवनों के समाधि स्थलों के शिखरों की सम्मिलित इस पर्वत श्रेणी का सम्मेतशिखर नाम खूब सार्थक है और जैन सूत्रों एवं प्राचीन ग्रंथों में इसे इसी नाम से उल्लेखित किया गया है। बिहार प्रदेश के हजारीबाग जिले में रेलवे लाइन एवं कलकत्ता से दिल्ली जाने वाली मुख्य सड़क पर यह तीर्थ आया हुआ है। रेल यात्रियों को पारसनाथ अथवा गिरडिह स्टेशन पर उतरना चाहिए। आवागमन की इस सुगमताओं ने यात्रियों की यहाँ की यात्रा के लिए खूब खूब आकृष्ट किया है। इन दिनों प्रतिवर्ष अनेक संघ यात्राएँ मोटर एवं रेल द्वारा होती हैं, जिनमें हजारों यात्री भाग लेते हैं। तीर्थराज पर यात्रियों के रहने, भोजन आदि की अति उत्तम व्यवस्था है। तीर्थ क्षेत्र की यात्रा महापुण्य प्रदात्री होती है। ऐसी हर आत्माओं की मान्यता है। लेकिन सिद्धक्षेत्र तीर्थों की यात्राएँ अत्यन्त प्रभावशालिनी होने से युगों और भवान्तरों के कर्मभल का प्रक्षालन कर देती है । यात्रा कुगति अर्गला, पुण्य सरोवर पाल । शिवगतिनी साहेलडी, आपे मंगल माल ।. टाले दाह तृष्णा, हरे गाले ममता पंक। तीन गुण तीरथ लहे, ताकी भजो निःशंक ॥ अन्य स्थले कृतं पापं, तीर्थ स्थले विनश्यति । सिद्ध क्षेत्रीय तीर्थों की यात्रा का फल देखिए: दस कोटि अणुव्रत धरा, भक्ते जमाड़े सार । १ सिद्ध क्षेत्र यात्रा करें, लाभ तणो नहीं पार ॥ २ सम्मेतशिखर तीर्थ महिमा में अनेकानेक कवियों ने भावपूर्ण पद गाये हैं:नन्दीश्वर जे फल होवे, तेथी बमणेह फल कुण्डल गिरि होवे ॥ ३ त्रिगुण रुचिक गिरी चउगणु गजदंता तेथी बमणेह फल जंबु महेता ॥ भ. ग. घट गणु फल धातकी चैत्य जुहारे, छत्रीस गणेरु फल पुक्खल विहारे ॥ भ.पु. ३८ For Private And Personal Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तेथी शतगुणफल मेरु चैत्य जुहारे, सहस गणेरू फल सम्मेतशिखरे॥ भ.स. ४- सिद्ध तणा थानिक भवी फरसित, सिद्ध वधु वरमाला नंदी अन्य तीरथ यात्रा फल होवे, सहस गुणी सिद्ध यात्रा नंदी। अन्य तीर्थों कोडि वर्ष जो कीजे, दान दया-तप-जप आनंदी॥ एक मुहूर्त सिद्ध क्षेत्र करंता, पुण्य लहे भवि पुण्यानन्दी भव कोडिना पाप खपावे पग - पग पावे ऋद्धि अमंदी॥ अन्य तीर्थों में करोड़ों वर्षों तक किए गए दान-तप-जप-दया आदि सदाचरणों से जो लाभ प्राप्त होता है, उसी लाभ की प्राप्ति, सिद्ध क्षेत्रिय तीर्थों की यात्रा के महत्व की गरिमा है। सहु तीरथ माहे, सरस सम्मेतशिखर गिरिराय। ' सिद्ध भयाज्यां वीस प्रभु साधु अनंत शिवपाय॥ तीर्थंकर मोक्षे गया, मोक्ष गिरि तिण नाम। कारण कारज निपजे, आलंबन विश्राम॥ महिमा जाकि महियले, कह न सके कवि कोय। मुक्ति महले निसरणिका, इण तीरथ जग जोय॥ छरी पाले जेह नर भावे, भेटे शिखर गिरिन्द। ते नर मन वांछित फल पावे, सुर तरू नो कंद॥ तन, मन सुत वल्लभा, स्वर्गादिक सुख भोग। जे वंछे ते संपजे शिव रमणी संयोग। तीर्थराज के दर्श से, होय विपत्ति सब दूर। अष्ट सिद्धि ओ नव निधि रहे सदा भरपूर॥ नरपति सुरपति संपदा, मिले न कछु संदेह। प्रगटे आतम ज्योति रवि, सर्वज्ञान सुख गेह। यात्रा भविजन कीजिए, त्रिविध भक्ति विशेष। दर्श स्पर्श नित कीजिए, लहिये पुण्य अशेष॥ एक तीरथ वन्दन कर्या, सहु सिद्ध वंदाय। सिद्धालंबी चेतना, गुण साधकता थाय॥ - पं. देवचन्द्रजी महाराज For Private And Personal Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पश्चिम दिशि शत्रुजय तीरथ। पूर्व सम्मेतशिखर गिरि॥ मोक्ष नगर ना दोय दरवाजा। भविक जीव रह्या संचरी॥ तुं ही नमुं, तु ही नमुं, नमुं सम्मेतशिखर गिरि... . श्री जिन हर्ष कृत स्तवन गिरिराज सम्मेतशिखर की तलहटी मधुवन कहलाती है। मधुवन नाम में जितनी मधुरता है, वैसी ही वहाँ शांत, सुरभिमय स्निग्धता सदैव व्याप्त रहती है। वन में उपवन और वातावरण की पवित्रता इस कलियुग में भी मधुवन में तपोवन की स्मृति उभार देती है। जिनेश्वर भगवान के लगभग २५ विशाल जिनालय इस छोटी-सी बस्ती को स्वर्णकलश और शुभ्र केतु मंडित देवपुरी को प्रतीत कराती है। आज की युद्ध पीड़ित मानवता दानवीर बर्बरता में पिसती है। सभ्यता एवं आचार विभ्रष्ट शिक्षा की बदौलत जो कल्मषः जागतिक वातावरण में प्रसारित है। मधुवन उससे सर्वथा अछूता है। वहाँ परम शांति तृप्ति एवं सभ्यता का साम्राज्य है। मर्त्यलोक का स्वर्ग है जीवन की मधुरिमा के परम स्त्रोत जिनवाणी की आधारशिला रूप तीर्थ सम्मेतशिखर की पदस्थली में विस्तीर्ण इस पूण्य बस्ती में आज भी लोग संत्रस्त जीवन से विलग होकर सहस्रों यात्री परिवार यहाँ आकर जीवन में सदिचत्त आनंद का आत्मानुभव करके स्वयं को धन्य मानते हैं। __ श्री सम्मेतशिखर के पहाड़ प्रचुर वनराशि से युक्त है। इसके सघन ढालों में अनेक प्रकार के वन्य पशु; शेर-चिते आदि हैं। प्राचीनकाल में इसके वनों में हाथी होने के उल्लेख शास्त्रों में मिलते हैं। विविध बहुमूल्य जड़ी-बूटियों एवं अलभ्य भेषज्य वनस्पतियों यह गिरिराज भण्डार कहा जाए तो अत्युक्ति नहीं सघन झाड़ियाँ और वन समृद्धि से परिपूर्ण होने के कारण राज्य शासन की कुटिल आँख सदैव इस तीर्थ भूमि पर रही है। वन्य उपज के उपरान्त शासक इस तीर्थ के यात्रियों से यात्रा कर भी लेते हैं। इसके बदले जैनों को उनसे यात्रा सुरक्षा का यात्किंचित लाभ मिलता रहा। लेकिन अंग्रेजी शासन में जब आवागमन के मार्ग सुरक्षित हो गए। क्षेत्रिय राजाओं की उनके अधिकार की रियासतों की सीमाएँ निर्धारित हो गई हैं और वे उसका उपयोग निजी आय के रूप में करने को समर्थ हुए। तब इस तीर्थ क्षेत्र के शासक पालगंज राजा द्वारा जैनों को विभिन्न भाँति की हरकतों से सामना ४० For Private And Personal Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir करना पड़ता था। तीर्थ भूमि की यात्रा में इन हरकतों को सदैव के लिए समाप्त करने हेतु पालगंज राजा से यह पहाड़ किमतन खरीद लिया। उसके पश्चात् इस तीर्थ का खूब विकास हुआ। मुगलकाल में भी इस तीर्थ को शासकीय पंजों से मुक्त करने का श्रेय अनेक शासन प्रभावकों को रहा। सम्राट अकबर द्वारा यह तीर्थ क्षेत्र जगद्गरु श्री हीरसूरि को सन् १५८२ में भेंट दिया गया। इसके पश्चात् बादशाह अहमदशाह द्वारा यह तीर्थ पुनः जगत सेठ श्री मेहताबसिंहजी को सन् १९४८ में भेंट किया गया था और साथ ही मधुवन के विस्तृत मैदान पारसनाथ की तलहटी आदि क्षेत्र भेंट दिए गए थे। बादशाह जहाँगिर के द्वितीय पुत्र आलमगिर द्वारा सन् १७५५ में इस तीर्थ भूमि को कर मुक्त घोषित किया था। इस तीर्थ के आराध्य स्थल यद्यपि सनातन अपरिवर्तनीय रहे तथापि उन पर भिन्न युगों में अनेकानेक सुधार संस्करण होते रहे; फिर भी इस तीर्थराज की यह मुख्य विशेषता रही कि तीर्थंकर निर्वाण स्थली की बीस देव कुलिका एवं स्थापना तीर्थ की कुलिकाओं अर्थात् सम्मेतशिखर तीर्थ भूमि में जल मन्दिर के अतिरिक्त कहीं भी जिन प्रतिमाएं स्थापित नहीं हैं। ऐसा होना एक प्रकार से दिगम्बर-श्वेताम्बर दोनों आमनाय की अर्चना विधि में अड़चन पैदा नहीं करता अतः इस तीर्थ की अर्चना यात्रा में भी सभी जैन समान रूप से श्रद्धान्वित हो पुण्य यात्रा का लाभ अध्यावधि प्राप्त करते रहे हैं। क्या ही अच्छा हो यदि दोनों समाज अन्य तीर्थ स्थलियों में भी जहाँ जिन प्रतिमाएँ विराजमान हैं, वहाँ पारस्परिक अर्चन विधि की विषमताओं और उनसे व्युत्पन्न आचारभेद की गुत्थियों को दूर कर एक ऐसी सर्वमान्य विधि को अपनाते, जिससे दिगम्बर-श्वेताम्बर आदि जैनों की अर्चन पूजन में किसी भाँति का व्यवधान पैदा न हो। समय की यह माँग है और इसके प्रति दुर्लक्ष्य करना, अब शोभनीय नहीं। बिहार सरकार ने इस तीर्थ भूमि पर ता. २.४.९४ को कब्जा कर हमारे सामने एक समस्या पैदा कर दी है। यदि हम तीर्थ के प्रति कुछ करने को उत्सुक हैं और तीर्थ पर आई हुई शासकीय विपत्ति से तीर्थ को मुक्त करने की हममें भावना है, तो हमें पारस्परिक भेदों को भुलाकर तीर्थ समस्या को सुलझाने के लिए कटिबद्ध हो जाना चाहिए। पारस्परिक कलह ने हमको श्री घुलेवा (केसरियाजी) जैसे तीर्थ के प्रति अपना दायित्व निभाने से वंचित रखा। आज कोई भी श्रद्धालू, श्री केशरियाजी को भेंटकर उस तीर्थराज की पूर्व जाहोजलाली का लेश भी वहाँ न For Private And Personal Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री सम्मेतशिखर तीर्थ पर श्री तीर्थंकर क्रम टोंक संख्या का नाम मोक्ष जाने वाले मोक्ष गमन की तिथि तीर्थंकर के नाम गणधर मोक्ष वालों के नाम १. सिद्धवर टोंक २. धवल दत्त ३. आणंद टोंक श्री अजीतनायजी चैत्र सुदि ५ श्री संभवनाथजी चैत्र सुदि ५ श्री अभिनन्दनजी वैशाख सुदि ८ श्री सिंहसेन आदि श्री चरूगणघरादि श्री वज्रनाम आदि ४. अचलगिरी श्री सुमतिनायजी चैत्र सुदि ९ श्री चरमादि ५. मोहनगिरी ६. प्रभासगिरि ७. ललितघट्ट ८. सुप्रभ ९. विद्युत १०. संकलगिरि ११. विमलगिरि १२. विमगिरि १३. दत्तवर १४. प्रभासगिरि १५. ज्ञानधर १६. नाटिकागिरि १७. सबलगिरि १८. निर्जरगिरि १९. मित्रधर २०. स्वर्ण भद्र श्री पद्मप्रभुजी मगसर वद ११ श्री सुपार्शनाथजी फागुन विदि ११ श्री चन्द्रप्रभुजी भाद्रवा वद ७ श्री सुविधिनायजी भाद्रवा सुद ९ श्री शितलनाथजी वैशाख सुद २ श्री श्रेयांसनाथजी श्रावणवद १० श्री विमलनाथजी आषाढ़ वद ७ श्री अनन्तनाथजी चैत्र सुद ५ श्री धर्मनाथजी जेठ सुद ५ श्री शांतिनाथजी जेठ वदि १३ श्री कुंथुनाथजी वैशाख वद १ श्री अरनाथजी श्री कुंभ आदि श्री मल्लीनाथजी फागुणसुद १२ श्री मुनसुवृत स्वामी जेठ वद ९ श्री नमीनाथजी वैशाख वद १० श्री पार्श्वनाथजी श्रावण सुद ८ श्री प्रद्योतन आदि विदर्भ आदि श्री दिन श्री वराहक श्री श्री नन्द आदि श्री कच्छपादि श्री मन्दर आदि श्री जस आदि श्री अरिष्ठ आदि श्री चक्रायुध श्री शाम्ब आदि मगसर सुद १० श्री प्रभिक्ष आदि श्री मल्ली आदि श्री शुभ आदि श्री आर्यदिन्न शुभ गणधर आदि टोंक- २० तीर्थंकर- २० For Private And Personal Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उनके गणधर एवं मुनिवर के मोक्ष गमन मोक्षगामी घरों की संख्या समर्थकों के साथ मोक्ष जाने वाले मुनियों की संख्या टोंक पर अन्य मुनि मोक्ष , गए उनकी संख्या . टोंक का यात्राफल उपवास सहित पोषध संख्या में १००० १०२ १००० ११६ १००० १०० १००० 70७ ३०८ ५०० ६५ १००० ८१ नव कोड़ाकोड़ी बहत्तर लाख बयालीस हजार पाँच सौ बत्तीस करोड़ नव कोड़ा कोड़ी बहत्तर लाख बयालीस हजार पाँच सौ बयालीस लाख बोहत्तर कोड़ाकोड़ी ७० करोड ७० लाख ४२ हजार १ लाख सात सौ एक कोड़ाकोड़ी ८४ करोड ७२ लाख ८१ हजार सात १ करोड़ सौ इक्यासी ९९ करोड ८७ लाख ४३ हजार ७२७ १ करोड़ ४६ कोड़ाकोड़ी ८४ करोड ७२ लाख ७ हजार ७४२ ३२ करोड़ ९८४ अरब ७२ करोड ८० लाख ८४ हजार ५६५ १६ लाख एक कोड़ाकोड़ी ९९ लाख ७ हजार ४८० १ करोड़ १८ कोड़ाकोड़ी ४२ करोड ३२ लाख ४२ हजार ९०५ १ करोड़ ९६ कोड़ाकोड़ी ९६ करोड ९६ लाख ९ हजार ५४२ १ करोड़ ७० कोड़ाकोड़ी १७ करोड ६० लाख ६ हजार ७४२ १ करोड़ ९६ कोड़ाकोड़ी १७ करोड ७० लाख ७० हजार ७०० १ करोड़ २९ कोड़ाकोड़ी १९ करोड़ ९ लाख ९ हजार ७९५ १ करोड़ ९ कोड़ाकोड़ी ९ लाख ९ हजार ९९९ ९६ कोड़ाकोड़ी ९६ करोड ३२ लाख ९६ हजार ७४२ १ करोड़ ९९ करोड़ ९९ लाख ९९ हजार ९९९ ९६ करोड़ १ करोड़ ९६ कोड़ाकोड़ी ९७ करोड़ ९ लाख ९९९ १ करोड़ १ अरब ४५ लाख ७ हजार ९४२ १ करोड़ ८२ करोड ८४ लाख ४५ हजार ७४२ ।। १ करोड़ १००० १००० १००० ६००० ७००० १०८ ९०० ५७ ५० ३६ ३ १००० १००० ५०० १००० १००० ३३ १० गणधर १२८० मुनि २७३४९ अन्य मुनि असंख्य ४3 For Private And Personal Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org देखकर दिल में एक विवादपूर्ण कसक लेकर लौटता है। हम पुनः उसी भूल का परावर्तन तो नहीं कर रहे हैं। इस विषय पर हमें चोकन्ने होकर सोच लेना चाहिए। आज की जनतंत्रिय सरकार में हम अपनी पूर्वकाल में की गई भूलों का भी परिसंस्कार कर उनका सुधार कर सकने में समर्थ हो सकते हैं। यदि हममें एक्य हो। श्री पार्श्वनाथ भगवान, जिन्होंने श्री सम्मेतशिखर तीर्थ पर अपना मुक्ति पथ प्रशस्त करते हुए इस तीर्थराज को गौरवान्वित किया। वे परम आराध्य भगवान हम सबको सद्वद्धि दै, जिससे इस तीर्थ पर व्युत्पन्न अप्रत्याशित राज्य संकट के निवारण कर सकने में हम समर्थ हो सके। Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इस लेख को तैयार करने में श्री शांतिलालजी पदमाजी द्वारा संकलित साहित्य का उपयोग किया गया है अतः उन्हें धन्यवाद देना आवश्यक समझता हूँ। शांतिलालजी ने श्री सम्मेतशिखर की पैदल यात्रा दो बार की है। आपकी धार्मिक अभिरुचि एवं ज्ञान पिपासा अनुमोदनीय है। ■ इन्द्रमल, भगवानजी बागरा विशेष :- क्षत्रिय कुण्ड की जीवन्त स्वामी की प्रतिमा नांदिया (राजस्थान) में स्थापित की गई है। । ब्रह्माणकुण्ड की प्रतिमा ब्राह्मणवाड़ा में और ऋजुवालिका की प्रतिमा नाणा में पावापुरीजी की प्रतिमा दियाणा में स्थापित की गई। ये सब क्षेत्र आबु के निकट में हैं। लोक गीतों में कहा जाता है कि नाणा - दियाणा, नांदिया - जीवत स्वामी वांदिया ॥ ५. सं. १८२२ वर्षे वैशाख सुदि १३ गुरौ सा खुशालचन्देन श्री पार्श्व बिम्बं करापितं प्र. सकल सूरिभिः ॥ ६. देखिये श्री नथमल चंडालिया जयपुर कृत श्री सम्मेतशिखर चित्रावली १- उत्तम श्रावक २- जहाँ पुण्य पुरुषों ने सिद्धपद प्राप्त किये हों, ऐसे तीर्थ सिद्धक्षेत्र कहलाते हैं। ३- श्री ज्ञानविमल सूरि कृत सिद्धगिरि स्तवन ४- श्री राजेन्द्र सूरि पट्टघर आचार्य धनचन्द्रसूरि कृत वीस स्थानक पद पूजान्तर्गत सिद्ध पद पूजा। १- ता. ९.३.१९१८ में यह पहाड़ तीन लाख रुपये में श्री आनन्दजी कल्याणजी पेढ़ी ने खरीदा था । ४४ For Private And Personal ■ सम्मेतशिखर रक्षा ■ विशेषांक १९६४ शाश्वत धर्म से उद्घृत Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir "यदिसरकारबिना किसीको फाँसी पर चढ़ाए सम्मैतशिखरदेनाचाहती है तो मैं तैयार हूँ, मुझे फाँसी के फंदेपरचढ़ा दिया जाए।" पटना की जेल भरने, जैन समाज तैयार है। . पू. मुनिराज श्री देवेन्द्रविजयजी महाराज महानुभवों! बिहार सरकार ने श्री सम्मैतशिखर तीर्थ । पर कब्जा कर लिया है। सरकार ने उसे जागीरदारी मानी और कहा- जब जागीरदारी प्रथा समाप्त हो गई है तो फिर जैनियों की जागीर क्यों बची रहे? कितनी खेद की बात है कि राजघाट जागीर नहीं है और पारसनाथ हिल्स, जागीर माने गए हैं। अरे भाई, जब यह कहते हो कि राजघाट राष्ट्र पूज्य बापू का समाधिस्थल है, तो यह क्यों भूलते हो कि श्री सम्मैतशिखर २० तिर्थंकरों की निर्वाण भूमि है, १२८० गणधरों का मोक्षस्थल है और अनन्त मुनियों की सिद्धि का केन्द्र है। लेकिन खेद है कि सत्ता की मदान्धता एवं जंगल विकास की ओर से जारीगदारी उन्मूलन की बात कहकर सरकार, नादान बनी हुई है। श्री सम्मैतशिखर पर अधिकार कर यदि बिहार सरकार यह मानती है कि जैन समाज कमजोर है, तो वह उसकी मूर्खता है। मैं डंके की चोट पर कहता हूँ कि यदि पटना की जेलें खाली हों तो वह दुराग्रह पर डटी रहें। चाहे प्राण चले जाएँगे, पर याद रहे, श्री सम्मैतशिखर नहीं जा सकेंगे। श्रावक-श्राविकाएँ तो क्या, साधु और साध्वी सत्याग्रह के लिए कदम बढ़ाएँगे और आन्दोलन को गतिशील करेंगे। . (जयघोष) हम उन वीर जैनाचार्य कालिकाचार्य की सन्तान हैं, जिन्होंने अन्याय और आत्याचार को मिटाने के लिए स्वयं सेनापति का पार्ट अदा दिया और रणभूमि में जो सदल-बदल उतरे थे। हम भी पीछे नहीं हटने वाले हैं। हमारा इतिहास गौरवमय है- भामाशाह का उदाहरण सामने है, जिसने स्वतंत्रता की रक्षा और मातृभूमि की इज्जत के लिए अपना सर्वस्व महाराणा के चरणों में अर्पित किया। For Private And Personal Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यह वह राजस्थान है, जिसने अन्यायों को मिटाने का सदा से ही नेतृत्व किया है तथा आज भी धानसा में इस सम्मेलन के द्वारा आप नेतृत्व का भार स्वीकार कर रहे हैं। धानसा सम्मेलन तभी सफल हो सकता है, जबकि जिस उद्देश्य को लेकर यह बुलाया गया है, वह पूरा हो। __ आज, सरकार यह चाहती हैं कि बिना आन्दोलन या बिना किसी को फाँसी पर चढ़ाये हम श्री सम्मैतशिखरज़ी नहीं देंगे, तो मैं तैयार हूँ, मुझे फाँसी के फंदे पर चढ़ा दिया जाए और जैन समाज को शिखरजी सुपुर्द कर दिया जाए। . (बार-बार जयघोष) मुझे जय-जयकार नहीं चाहिए। मैं चाहता हूँ, अपना तीर्थ, उसकी पूर्ण पवित्रता। यदि उसके लिए मेरा जीवन आहुत होता है, तो यह बड़े सौभाग्य की बात होगी। बन्धुओं! यह प्रश्न समाज के जीवन-मरण का प्रश्न है, जिसे इसी रूप में जानना है। धर्म व तीर्थों की रक्षा करना है वे हर किस्म के अत्याचारों-अनाचारों को भी सहन करने में कभी पीछे कदम नहीं रखेंगे। जिस प्रकार कि मुगल साम्राज्य के जमाने में हिन्दुओं को जोर-जुल्म से मुसलमान बनाया जा रहा था और जो हिन्दू, मुसलमान बनना नहीं चाहते थे, उनके ऊपर उस समय के साम्राज्यवादियों ने जजिया टैक्स लगाया था और उस समय के हिन्दुओं ने अपने धर्म की रक्षा के लिए खुश होकर तीर्थ के नाम पर जजिया टैक्स भी दिया था। उसी प्रकार यह बिहार सरकार, श्वेताम्बर जैनियों से तीर्थ के नाम पर जजिया टैक्स लेना चाहेगी, तो श्वेताम्बर समाज सहर्ष इसको भी अदा कर सके। बिहार सरकार दीर्घ दृष्टि से पुनः इस तीर्थ के सम्बन्ध में गंभीरता से सोचे, समझे, अध्ययन करे व मनन कर परिशिलन करे। किसी भी कार्य में जल्दी करना या लाखों व्यक्तियों की आवाज को ठुकराना, एक प्रकार से अपने आप का बहुत बड़ा नुकसान होने वाला होगा। वह तो होगा या नहीं, यह परमात्मा ही जानता है। किन्तु सरकार को बहुत बड़ा नुकसान उठाना पड़ेगा। श्रीधाणसा नगर में आयोजित, श्री सम्मैतशिखर रक्षा समिति के द्वारा, विशेष सम्मेलन (उद्बोधन) For Private And Personal Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir F르르르르르르트들들들들들르르르르트 जनअदालत में प्रस्ततवादपत्र । जैन श्वेताम्बर समाज.....वादी । विरुद्ध बिहार राज्य सरकार द्वारा मुख्यमंत्री श्री लालूप्रसाद यादव...प्रतिवादी भारतीय संविधान द्वारा अधिकृत सर्वोच्च शक्तिसम्पन्न भारतीय जनता की अदालत में निम्न वाद प्रस्तुत है: १- यह कि वादी भारतवर्ष की जनता का एक प्रमुख अंग है, जिसके सदस्यों को भारतीय संविधान द्वारा प्रदत्त समस्त धार्मिक स्वतंत्रताएँ, मौलिक अधिकार के रूप में प्राप्त हैं। २- यह कि बिहार, राजस्थान ने वादी के पावन-पवित्र तीर्थ पारसनाथ हिल्स (श्री सम्मैतशिखरजी) का अवैधानिक अधिकरण कर लिया है। __ ३- यह कि पारसनाथ हिल्स, हजारी बाग जिले के बिहार राज्यान्तर्गत स्थित है, जिसका क्षेत्रफल १६ हजार एकड़ है। इसे श्री सम्मैतशिखर के नाम से जैन साहित्य में सम्बोधित किया गया है। ४- यह कि पारसनाथ हिल्स पर जैनियों की वर्तमान चौवीसी के २० तीर्थंकर, १२८० गणधर तथा अनन्त मुनि मोक्ष में गए हैं तथा यहाँ उनकी निर्वाण भूमि है। अतएव यह पूरा पर्वत जैन धर्मावलम्बियों के लिए श्रद्धा का केन्द्र है एवं इसकी इंच-इंच भूमि को हम वंदनीय मानते हैं। ___५- यह कि पूरा जैन समाज इस पर्वत को मानता व पूजता है। यहाँ तक कि इस पर जैन धर्मावलम्बी, नंगे पैर चढ़ाई करते हैं तथा ऊपर कुछ खाते-पीते नहीं हैं। यही नहीं, पर्वत पर चढ़ने से पूर्व, वे इसकी आरती एवं वन्दना भी करते हैं। पर्वत की परिक्रमा कर वे अपने आप को धन्य मानते हैं तथा इसकी यात्रा के द्वारा अनुपम एवं अद्वितीय आत्मशांति अनुभूत करते हैं। ६- यह कि पर्वत अनन्तकाल से ही जैन समाज की निजी सम्पत्ति रहा है। मुगल बादशाह अकबर ने भी जैनाचार्य श्रीमद् विजय हीरविजय सूरिजी के समय For Private And Personal Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir में जैन समाज के नाम इसका पट्टा मान्य किया था तथा सन् १५९३ में उसने इस सम्बन्धी फरमान भी जारी कर दिया था। ७- यह कि सन् १७६० में राजा अहमदशाह बहादुर ने भी एक अन्य फरमान द्वारा मुर्शीदाबाद के जैन निवासी श्री जगत सेठ को पारसनाथ हिल्स पर जैन श्वेताम्बर समाज के आधिपत्य की स्वीकृति दी थी। ८- यह कि ब्रिटिशकाल में भी इसे जैनों का पवित्र स्थान मान्य किया गया एवं इसका पूर्ण सम्मान रखा गया। ९- यह कि १८३८ के लगभग यूरोपियन अधिकारी इसका त्रिकोणमिती के अन्वेषणों हेतु उपयोग करना चाहते थे तथा उनने तंबू भी तान दिए थे, किन्तु जैन समाज के विरोध पर ब्रिटिश शासन ने भी जैनों को इसकी पवित्रता की पूर्ण गारंटी देते हुए तंबू हटवा दिए थे। १०- यह कि १८९३ में ब्रिटिश सेना के सेनापति ने भी यहाँ सैनिकों के प्रशिक्षण का केन्द्र स्थापित करना चाहता था, किन्तु वह योजना भी जैन समाज की आपत्तियों पर रद्द कर दी गई। ११- यह कि सन् १८७८ में जैन समाज तथा पालनगंज राजा के बीच एक विवाद उत्पन्न हो गया था, जो कि कलकत्ता हायकोर्ट में प्रस्तुत हुआ था। कलकत्ता हायकोर्ट के न्यायाधीशों ने भी इसकी पवित्रता को मान्य करते हुए निर्णय दिया कि इसका एक-एक इंच पवित्र एवं समान पूजा अधिकार है। १२- यह कि अन्त में सभी आपत्तियाँ हटाने के लिए जैन श्वेताम्बर समाज के प्रतिनिधि, पेढ़ी श्री आनन्दजी कल्याणजी की पेढ़ी ने इसे पालनगंज राजा से खरीद लिया। १३- यह कि क्रय के बाद यह पेढ़ी के अन्तर्गत ही रही है एवं वही इसकी व्यवस्था करती रही है। १४- यह कि सन् १९४६ में बिहार सरकार ने बिहार प्रायवेट फारेस्ट एक्ट १९४६ के अन्तर्गत पर्वत पर स्थित जंगलों का अधिकार लेने हेतु दिनांक १५.२.१९४७ को सूचना-पत्र प्रसारित किया, जिस पर पेढ़ी की ओर से आपत्ति उठाते हुए दिनांक २३.१०.१९४७ को एक स्मरण-पत्र बिहार शासन को प्रस्तुत किया गया। For Private And Personal Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५- यह कि एक लम्बे पत्र व्यवहार एवं साक्षात्कारों के बाद एक पंजीयन अनुबंध द्वारा दिनांक १७.११.१९५२ को सरकार और पेढ़ी के बीच समझौता हुआ, जिसमें सरकार ने पर्वत की पवित्रता को मान्य किया तथा पेढ़ी ने रक्षित जंगल विकास की बात मानकर विभिन्न मुद्दे तय किए। १६- यह कि समझौते का बिहार सरकार की ओर से कोई परिपालन नहीं किया गया। १७- यह कि २ मई १९५३ को सरकार ने जंगलों के अधिकरण का सूचना-पत्र प्रसारित कर दिया, जो कि समझौते का उल्लंघन तथा जैनों को भारतीय संविधान द्वारा दिए गए मौलिक अधिकारों का एकदम हनन थे। १८- यह कि दिनांक २.५.१९५३ को जारी किया गया नया सूचना-पत्र बिहार लैण्ड रिफार्म एक्ट के सेक्षन १ के तहत् था। पेढ़ी के द्वारा इसके विरोध में बिहार सरकार के सन्मुख दिनांक ८.८.१९५३ के दिन याचिका प्रस्तुत की गई, जिसमें कहा गया कि पारसनाथ हिल्स एक पवित्र संस्था है, जो कि कानून भी अधिकृत नहीं किया जा सकता। १९- यह कि बिहार भूमि विकास अधिनियम के अन्तर्गत वही जंगल व भूमि शासन अधिकृत कर सकती है, जिससे आमदनी होती हो। लेकिन पारसनाथ पर्वतमाला से कोई आमदनी नहीं हो रही थी, किन्तु फिर भी राज्य शासन ने जबर्दस्ती कानून लागू कर जैन समाज के अधिकारों पर कुठाराघात किया। २०- यह कि याचिका के उधर में सरकार एक अनुबंध पर विचार करने हेतु राजी हो गई, जो शासकीय वकील द्वारा तैयार किया गया था। __२१- यह कि दिनांक ३० अक्टूबर १९४९ को पूर्ण साक्षात्कार में पेढ़ी की ओर से निवेदन किया गया कि सरकार, स्वयं १७.११.१९५२ के अनुबंध में इसे पवित्र मान चुकी है। अतएव यह सूचना वापस ली जाए। २२- यह कि इसके बाद सेठ आनन्दजी कल्याणजी की पेढ़ी व्यक्तिगत संचार व्यवहार करती रही। २३- यह कि बिहार सरकार ने एक सूचना-पत्र द्वारा पूरा पारसनाथ हिल्स अपने अधिकार में भूमि विकास अधिनियम के अन्तर्गत दिनांक २.४.६४ को ले लिया तथा जंगल विभाग को विकास हेतु सुपुर्द कर दिया। For Private And Personal Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४- यह कि बिहार सरकार की यह कार्यवाही बिल्कुल अनुचित एवं अवैधानिक २५- यह कि उक्त कार्यवाही से जैनों की धार्मिक स्वतंत्रता का अपहरण हुआ है। उनकी धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंची है एवं उनके धार्मिक अधिकारों को निर्दयतापूर्वक दबोच दिया गया है। २६- यह कि इससे भारतीय संविधान में मौलिक अधिकारों के रूप में दी गई धार्मिक स्वतंत्रता का अपहरण हुआ है। २७- यह कि बिहार सरकार की उक्त कार्यवाही का तीव्र विरोध हुआ है। जैनों ने अपने हस्ताक्षरों से कई तार पत्र भेजते हुए बिहार सरकार से अधिकार पुनः देने की माँग की है, किन्तु बिहार सरकार अपने हठाग्रह एवं दुराग्रह पर डटी हुई हैं। २८- यह कि बिहार सरकार ने जहाँ एक ओर हमारे अधिकारों से हमें वंचित किया है, वहीं तीव्र जनमत की माँगों को भी सम्मान देने के लिए उसने कोई त्वरितता नहीं बतलाई। २९- यह कि इस वाद पत्र द्वारा जैन श्वेताम्बर संघ भारतीय जनता से निवेदन करता है कि उसे न्याय दे एवं उसकी निजी सम्पत्ति पारसनाथ हिल्स उसके अधिकार में पुनः देने हेतु बाध्य करे तथा वह नहीं सुनती है तो आगामी आम चुनाव में उसके विरुद्ध एवं उससे सम्बन्धित सम्पूर्ण दल के विरुद्ध वह अपना फैसला सुना दे। - संमैतशिखर रक्षा - विशेषांक - शाश्वत धर्म से १९६४ (पष्ठका आशा है यह सम्मेलन जैनों के अधिकारों की सुरक्षा में सबल सिद्ध होगा एवं श्री सम्मेतशिखर तीर्थ पुनः प्राप्त करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण मंच तैयार कर सकेगा। यही नहीं जब तक तीर्थ पुन: प्राप्त न हो जाए तब तक जनगण को जागृत एवं प्रेरित करता रहेगा। जय पार्श्वनाथ! जय महावीर!! . - विजय विद्याचन्द्रसूरि दि. २८ सितम्बर ६४ For Private And Personal Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नहीं हटेंगे नहीं डिगेंगे ■ जैनरत्न श्री राजमल लोढ़ा इतिहास का संबंध ऐसे बिते हुए युग से है जिसमें ऐसे साधनों का आश्रय लेना पड़ता है जो उस काल के अवशेषों के रूप में हमें उस युग का परिचय कराने में सहायक होते है। ऐसे ही स्थानों पर ऐतिहासिक स्मारक दिखाई देते हैं। ऐसे ही स्मारक इतिहास को जीवित रखते हैं। जो हमारे देश की सांस्कृति निधियों में से है जिन समाज के सन्निकट ऐसी एक बहुत बड़ी निधि है, जिसकी यदि खोज की जाए तो भारत के इतिहास में अलग से एक बहुत बड़ा विभाग तैयार हो सकता है। वैसे जैन समाज के पास कई प्राचीन तीर्थ रूप में स्मृतियां विद्यमान है। किन्तु उनमें भी ऐसे प्राचीन व ऐतिहासिक स्थान है जिके कण-कण की धूल को मस्तक पर लगाकार अपने आपको धन्य समझा जाता है। बीस तीर्थंकर, १२८० गणघरों एवं अनन्त मुनियों की मोक्ष भूमि जैसे परम पुनित स्थान की रक्षा व पवित्रता को बनाये रखने का भार श्वेताम्बर जैन समाज ने हमेशा अपने ऊपर ले रखा है। और अभी इसी सम्पूर्ण समाज की आनन्दजी कल्याणजी की पेढ़ी इस तीर्थ की वर्षों से देखभाल व संपूर्ण व्यवस्था करती है। यह भूमि प्रत्येक व्यक्ति के लिये दार्शनिक, वंदनीय एवं पूजनीय है। इसका हर तरह सत्कार, सम्मान करने के लिये प्रत्येक जन हर समय कटिबद्ध रहता है। इस तपोभूमि पर तीर्थकरों के निर्वाण को हजारों वर्ष ही नहीं बल्कि लाखों वर्ष व्यतीत हो गये किन्तु किसी ने भी आज तक इस तीर्थ पर आंख उठाकर नहीं देखा, क्योंकि यह भूमि किसी की आजीविका चलाने का मौज मजा उड़ाने का, सुख सुविधा प्राप्त करने का साधन नहीं है । यह स्थान तो उन तपो मूर्तियों का पथ प्रदर्शन करता है । जिन्होंने इस संसार को असार समझकर हमेशा के लिये अपनी आत्मा को सम्यग ज्ञान, दर्शन, चारित्र मय बना लिया और आत्मा को परमात्मा के रूप में परिणित कर दिया। ५१ For Private And Personal Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भला ऐसे पवित्र स्थान पर किस मनुष्य की कटु निगाह हो सकती है, क्योंकि वहां पापी से पापी मनुष्य भी जाता है तो एक समय तो अवश्य उसका ध्यान परमात्मा की ओर आकर्षित हो ही जाता है। वह अपने आपको एक दूसरे रूप में देखने लगता है। उसको अपने जीवन में नवीनता के दर्शन होते हैं। पुराने किये हुए पापों का प्रायश्चित करने की स्वभाविक भावना उत्पन्न होती है। यह केवल मात्र उस पुण्य भूमि का ही प्रभाव है। आज भी हजारों ही नहीं लाखों मनुष्यों की भक्ति का केन्द्र बना हुआ है। ___ आज यह तीर्थ बिहार राज्य के अन्तर्गत आया हुआ है और इस तीर्थ के आसपास १६ हजार एकड़ जंगल है। इस जंगल में भी जैन मुनियों ने दीर्ख तपश्चर्या करके निर्वाण को प्राप्त किया। आज यह बताने के लिये हमारे पास ऐसा कोई साधन नहीं है कि अमुक स्थान ही निर्वाण का स्थान है। बाकी केवल मात्र जंगल है। यह सब भूमि निर्वाण भूमि होने के कारण वंदनीय पूजनीय है। हो सकता है कि जो इस धर्म के अनुयायी नहीं है वे इस भूमि को इतने पवित्र रूप में नहीं देखते हो किन्तु उनकी आत्मा में इस भूमि के प्रति अगाध भक्ति व प्रेम है। उनके हृदय को जरा टटोलकर देखो तो पता चलेगा कि भक्ति का क्या रूप होता है। बिहार राज्य ने थोड़े दिनों से इस तीर्थ को हथियागलेने की दृष्टता की है। यह प्रजातन्त्र के लिये एक बहुत बड़ा कलंक है। सरकार को जरा दीर्घ दृष्टि से सोचना चाहिए कि सबसे पहले इस तीर्थ को आस-पास के तमाम जंगल की भूमि श्वेताम्बर जैन समाज की अपनी एक निजी सम्पत्ति है। इस तमाम भूमि को एक समय जैन समाज ने क्रय किया है। उस पर किसी भी अन्य व्यक्ति या समाज का कोई अधिकार नहीं है। न इस जंगल से कोई व्यक्ति विशेष अपना नीजि फायदा उठा रहा है। उस जंगल की एक इंच हरी लकड़ी कतई नहीं काटी जाती है। वृक्षों को मनुष्य की तरह जीने और पनपने का पूर्ण अधिकार दे रखा है। इस जंगल में किसी तरह की हिंसा, अनाचार, अत्याचार आदि कोई दुष्कर्म नहीं होता है। जंगली जानवर स्वतंत्रता से घूमते फिरते हैं। उनकी हिंसा तो दूर रही उनकी तरफ आंख उठाकर भी कोई नहीं देखता है। ___ धानसा में ऐसी उत्पन्न संकट पर विचार करने के लिये पूज्य जैनाचार्य श्रीमद्विजय विद्याचन्दसुरीश्वरजी महाराज की निश्रा में एक सम्मेलन सम्पन्न हुआ जिसमें भारी जोश एवं सम्मेतशिखर प्राप्त करने की उमंग परिलक्षित होती थी। ५२ For Private And Personal Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org क्योंकि हो सकता है कि सरकार को इस जंगल से प्रतिवर्ष ५-५० हजार रु. का लाभ मिल जाए किन्तु ऐसा करने से लाखों मनुष्यों की अन्तरात्मा से इस पुण्य भूमि पर नाजायज फायदा उठाने से जो वेदना होगी उसके सामने इस आमदानी की कोई किमत नहीं है। भारत हमेशा से धर्म भूमि रहा है और पुराना इतिहास बतला रहा है कि जिन-जिन व्यक्तियों ने धर्म या धार्मिक स्थानों को नष्ट करने का प्रयत्न किया वे खुद मिट गये और धर्म आज भी वैसा का वैसा उसी स्थान पर अटल है। Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यदि सरकार को इस तीर्थ से आर्थिक लाभ ही लेना हो तो इस तीर्थ के नाम पर भारत में बसे हुए तमाम श्वेताम्बर जैनियों पर प्रतिवर्ष कोई टेक्स कायम् कर | श्वेताम्बर समाज का बच्चा-बच्चा इस तीर्थ के नाम पर हर तरह का टेक्स देने को तैयार है। टेक्स ही क्या समय आने पर तीर्थ रक्षा के लिये प्राण भी न्यौछावर कर सकता है। यह तीर्थ जैनियों के लिये प्राणों से भी अधिक प्रिय है। धानसा सम्मेलन की यही ललकार थी कि जिन व्यक्तियों को संसार में जीवित रहकर अपने धर्म व तीर्थ की रक्षा करना है। हर किस्म के अत्याचारों व अनाचारों को भी सहन करने में भी कभी पीछे कदम नहीं रखेंगे। जिस प्रकार की मुगल साम्राज्य के जम्नाने में हिन्दुओं को जोर जुल्म से मुसलमान बनाया जा रहा था और जो हिन्दू से मुसलमान बनना नहीं चाहते थे उनके ऊपर उस समय के साम्राज्यवादियों ने जजिया टेक्स लगाया था और उस समय के हिन्दुओं ने अपने धर्म की रक्षा के लिये खुश होकर जजीया टेक्स भी दिया था। उसी प्रकार यह बिहार सरकार श्वेताम्बर जैनियों से तीर्थ कर के नाम पर जजीया टैक्स लेना चाहेगी तो श्वेताम्बर समाज सहर्ष इसको भी अदा कर सकेगी। बिहार सरकार दीर्घ दृष्टि से पुन: इस तीर्थ के सम्बन्ध में गंभीरता से सोचे समझे, अध्ययन करें और मनन कर परिशीलन करें। किसी भी कार्य में जल्दी करना या लाखों व्यक्तियों की आवाज को 'ठुकराना एक प्रकार से अपने आपको बहुत बड़ा नुकसान करना है। सामने वाले का नुकसान होने वाला होगा वह तो होगा या नहीं यह परमात्मा ही जानता है, किन्तु सरकार को बहुत बड़े नुकसान में उतरना पड़ेगा। ५३ For Private And Personal Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कुंभकर्णकीनींद नींद आती है तो मानव अचेत हो जाता है उसकी चेतना मिट जाती है। तथा वह दूसरी दुनिया की सफर करने लगता है। साधारण मनुष्य प्रतिदिन ६ से ८ घंटे तब सोता है किन्तु कुंभकर्ण ६ माह तक सोता था। वैदिक रामायण के आख्यानों के अनुसार जब उसके सोने का समय था तब राम-रावण का युद्ध प्रारम्भ हुआ। एक तरफ दानवों और मानवों का भयंकर संघर्ष चल रहा था रक्त सरिताएं उबल रही थी। मारो काटो के निषाद लग रहे थे तब इन सबसे बेखबर निखट कुंभकर्ण सोया हुआ ही था। रावण ने युद्ध के लिये जब उसे खुब उठाया तब भी वह न जागा तथा अन्त में जब उसकी नाक में तीर छोड़ा गया तो वह हड़बड़ा कर उठा। खैर कहने का तात्पर्य यह है कि कुंभकर्ण की नींद जगत प्रसिद्ध है किन्तु अब उसी गणना में हमारी बिहार सरकार का नाम इस लोकतंत्र से जुड़ रहा है। बिहार की सरकार जनतांत्रिक है, किन्तु आज जैनों के प्रचण्ड विरोध में सम्मुख जो हां हूं हो कर रही हैं जो इस बात का द्योतक है कि कुंभकर्ण की नींद को भी इसने चुनौती दे डाली है। ___ आज पारसनाथ हिल्स (सम्मेतशिखरजी तीर्थ) पर जो अवैध कब्जा बिहार सरकार ने लिया इसके विरुद्ध सारा जनतग जाग्रत हो चुका है। स्थान-स्थान पर सभाएं हो रही है। सम्मेलन हो रहे हैं। विरोध प्रस्ताव किये जा रहे हैं। विरोध पत्र डाले जा रहे हैं। हस्ताक्षर आंदोलन चला रहे है। सत्याग्रह की तैयारियां चल रही है। सम्पूर्ण समाज में रोष व असंतोष व्याप्त है, लेकिन बिहार सरकार को तो नींद आ रही है और ऐसी नींद की कुंभकर्ण को भी मात कर दिया उसने। कुंभकर्ण को जगाया गया तो उसने हूं हां किया और बिहार सरकार को झकझोरते हैं तो वह भी ऊं आं ही कर रही है। प्रवक्ताओं से आश्वासन घोषित करवा रही है। देने की बात नहीं करती बात करती है मात्र उपर नीचे की ही। किन्तु इससे काम चलने वाला नहीं काम तो चलेगा सम्मेतशिखर देने से ही। __वह देगी तो संतोष होगा नहीं तो सीधी सी बात है हर प्रयत्न होगा। उसके प्रतिरोध हेतु। समय तो आया है कि जैन समाज को कमर कसना होगा। कमर ही ५४ For Private And Personal Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नहीं कसना है बिहार सरकार की नींद उड़ाने के लिये उनकी नाक में तीर छोड़ना होगा तभी तो वह जागेगी। और देने की बात करेगी। भूत बातों से नहीं मानते उनके लिये तो वैसा ही स्वागत करना होगा। अतएव अब कुंभकर्ण की नींद उड़ानी है तो पूरी शक्ति लगाना है। तन मन और धन कुछ मूल्य नहीं रखते अपने पवित्र तीर्थ के सामने। यह जंगलों के अधिकार का प्रश्न नहीं हमारी धार्मिक भावनाओं, हमारी धार्मिक संस्कृति का प्रश्न है। सम्मेतशिखरजी लेना है तो ग्राम-ग्राम, नगर-नगर और डगर-डगर से संघर्ष के बिगुल बजाना होगी। . अंगारा For Private And Personal Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 1889860RRORRENganted R0 बिहार सरकारको पाँचीदुलीला D जगीरदारी उन्मुखन 0 जंगल का विकास D राज्य की आमदानी अनीतियों का पर्दाफाश हमारा गौरवमय इतिहास ज्योतिषाचार्य शासन दीपक मुनिराज श्री जयप्रभविजयजी महाराज "श्रमण" गर्दभ भील्ल के विरुद्ध कालिकाचार्य मुगलों के विरुद्ध भामाशाह चण्डप्रद्योत के विरुद्ध उदयन कुमारपाल/समरसिंह/भरतचक्रवर्ती आदि सभी के गौरवमय उदाहरण आज इतिहास के पृष्ठों से अपनी वीरता-शौर्यता और जवामर्दी के आदर्शों से अमरत्व प्राप्त कर चुके हैं। युगों-युगों से.... न्याय का अन्याय, सत्य का असत्य, वैधता का अवैधता, विवेक का अविवेक, अहिंसा का हिंसा, अपरिग्रह का परिग्रह के विरुद्ध संघर्ष चलता रहा है और न्याय का पक्ष सदा विजयी रहा सिद्ध हुआ है। अत्याचारियों को जुझना पड़ा है, हटना पड़ा है, शर्मीदा होकर नीचा देखना पड़ा है या कि पराजित होकर दया की भीख माँगनी पड़ी है। ___ तैमुरलंग का कत्लेआम, नादिरशाह की नृशंसता, ओरंगजेब की बर्बरता, हिटलर की दानवता या मूसोलिनी का गर्व टीक नहीं सके। सिकन्दर विश्व विजय का स्वप्न अपार सेना के सौजन्य से भी साकार नहीं कर सका। अशोक कलिंग विजय को प्राप्त कर भी पराजित रहा। श्वेत हुणों की साम्राज्यवादी नीति भी दम ५६ For Private And Personal Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नहीं खा सकी, फिरंगियों का शासन भी एक दिन चकनाचुर हुआ और कभी सूर्य न डुबने वाले देश ब्रिटेन की हुकूमत भी शनैः-शनैः इंग्लिश चैनल की ओर सिमटती गई। इतिहास इस बात का साक्षी है, जिसने धर्मको दबाया, मूर्तियाँ खण्डित की, मन्दिर तुड़वाये या धर्मस्थानों को गिरवा दिया। उनका शासन जहाँ अग्नि की तरह फैला, वहीं उनका अस्तित्व उसी तरह बुझ भी गया तथा बाद में निकली उनके जीवन से सड़ांध, जिससे विश्व में दुर्गंध फैल गई। सम्मैतशिखर सूर्य की तरफ धूल फेंकने वाला, सूर्य का कुछ नहीं बिगाड़ सकता। धूल तो फेंकने वाले की आँख में ही जाकर गिरती है। इसी तरह धर्म की स्वतंत्रता को अपहत करने वाले शासक, यदि यह माने कि वे धर्म को दबाएँगे। धर्म का कौन क्या बिगाड़ सका, वह तो अपनी पावन पताका वैसे ही फहराता रहा है, चाहे कनिष्क आया हो या मुगल, गुप्तकाल रहा हो या ब्रिटिश सत्ता। आज... जैनों के पावन-पवित्र तीर्थ श्री सम्मैतशिखरजी पर बिहार सरकार ने जागीरदारी उन्मूलन के नाम पर कब्जा कर लिया है। भूमि विकास कानून के अन्तर्गत वहाँ वह जंगलों का विकास करना चाहती है। इस पहलू में ३ बाते हैं:१- जागीरदारी उन्मूलन। २- जंगल का विकास॥ ३- राज्य की आमदानी॥ __ जहाँ तक जागीरदारी उन्मूलन का प्रश्न है, यह कितनी हास्यास्पद स्थिति है कि २० तीर्थंकर देवों तथा अनन्त मुनियों की मोक्ष भूमि राज्य परिभाषा में जागीर मानी जा रही है। यदि राजघाट और शांतिघाट जागीर नहीं तो यह पावन-पवित्र तीर्थ जागीर कैसे? ___ जंगल का विकास यह तो एक ओट है, पारसनाथ हिल्स को हथियाने की। मात्र १६००० एकड़ भूमि और वह भी पर्वतीय, जिसमें जैनियों के अधिकार तो वह सुरक्षित रखने की बात कहती है यानी १/४ भाग तो मन्दिर सड़कों आदि में चला जाता है। शेष भाग इतना उर्वर तो नहीं, जो सोना उगल दे। वहाँ विकास होगा- देश पैसा लगाएगा और देखेगा कि क्या आमद हो सकती है। सम्पदा की इतनी बाहुल्यता में नहीं कि राज्य को करोड़ों का मुनाफा हो सके। जंगल-विकास For Private And Personal Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir क्या करना है? अधिकारियों को अपनी सेहत सुधारने के अड्डे बनाना है। दूसरा, जिस पर्वत पर हम जूते पहनकर भी नहीं जाते, उस पर इस बात की क्या गारंटी कि वे खाएँगे-पीएंगे नहीं, मलमूत्र निष्कमण नहीं करेंगे और नंगे पैर ऊपर चढ़ेंगे? जैनों के अधिकार सुरक्षण की बात तो मात्र एक सांत्वना है तथा जंगल का विकास एक ओट। ___ राज्य की आमदनी क्या बढ़ेगी, संभवतः समुद्र में एक बुंद जितनी। वहाँ सोने-चाँदी की खदानें तो हैं नहीं, जो खोदते ही धन का पहाड़ खड़ा हो जाएगा। वहाँ जंगल अधकारी रहेंगे, पी.ए., प्यून रहेंगे, ऑफिस और कैम्प लगेंगे, ५-१५ कर्मचारियों की अर्दली तो यूँ ही बन जाएगी; फिर आजकल देश के ईमानदार अधिकारी योजनाओं से आमदनी ही कहाँ देते हैं? घाटा ही घाटा है और यदि बिहार सरकार अड़ी रही तो यहाँ पर भी घाटे का सौदा ही हाथ लगेगा। खैर! कुल मिलाकर पारसनाथ हिल्स पर अधिकार मात्र एक हटाग्रह तथा दुराग्रह ही है। जैन समाज किसी मूल्य व किसी भी स्थिति में स्वीकार नहीं कर सकती कि अनन्त आत्माओं की सिद्ध भूमि का अंग्रेजी, वैज्ञानिक उपकरणों से इस प्रकार छेदन-भेदन हो। इतिहासों से हम अजेय रहे हैं। जैनों का धर्म, कायरों का धर्म नहीं, बल्कि राजा, महाराजा, सम्राट, सेनापतियों का धर्म रहा है। आज, लोकतांत्रिक सरकार है तो उसे जनमानस की आवाज का सम्मान करना होगा। नहीं तो सत्याग्रह की पंक्तियाँ खड़ी होंगी और श्रावक को ठीक, साधु-मुनियों का नेतृत्व आगे होगा....! ५८ For Private And Personal Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra खुला खत www.kobatirth.org ..... बिहार मुख्यमंत्री के नाम.... अभी तो पत्र से ही आपको सम्बोधित कर रहे हैं फिर शायद पटना आकर आपको सम्बोधित करना पड़े और यह सम्बोधन न जाने चुनौतिका हो या चेतावनी का संघर्ष का हो या सत्याग्रह का....! Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री कृष्णवल्लभजी सहाय, मुख्यमंत्री, पटना कामराज योजना आई और श्रीयुत् विनोवानन्दजी झा को मुख्यमंत्री पद से विदा लेनी पड़ी। कांग्रेस विधानसभाई दल में झा साहब के उम्मीदवार को औंधा कर आप सत्तासीन हुए तो राष्ट्रीय स्तर के अखबारों तक ने आपकी तस्वीर छापते हुए आपको 'लौह पुरुष' का खिताब दिया । मुझे आज तक समझ में नहीं आया - आप कैसे लौह पुरुष हैं? एक ओर स्वतंत्र पार्टी के विधायकों का अपहरण कर आप अपनी स्थिति मजबूत करना चाहते थे और दूसरी ओर सारी स्वतंत्र पार्टी आपके गले पड़ गई तो आप बिदक गये। हाईकमान को खरीते लिखने लगे, कामख्यानारायणसिंह को कांग्रेस में मत लो। शायद आप सिंहों से डरते हैं और सियारों की पार्टी में अगुआ बनते हैं। सियारों में सिंह सा दम भरते हैं और सिंह देखकर ......! खैरे! यह सब राजनीतिक दन्द फन्द हैं आप लौह पुरुष हैं या मौम पुरुष हमें मतलब नहीं किन्तु हां! जैन समाज तो आपका लोहा मान चुकी है। आप जो बिहार के मुख्यमंत्री हो, यशोदा के कृष्ण हो, महात्मागांधी के अनुयायी हो, जवाहरलाल के सिपाही हो, कांग्रेस के नेता हो, लोकतंत्र के कर्णधार हो और जनता को उमंगों के प्रतीक! आप जो भारत मां के लाल हो, देश के महत्वपूर्ण व्यक्तित्व हो, बिहार नभ मण्डप के चमकते सितारे हो या वर्तमान राजनीति के जाज्वल्यमान नक्षत्र हो हमें आपसे ही कुछ कहना है। आप प्रजातंत्र की शालीनता की रक्षा करते हैं, मौलिक अधिकारों का रक्षण करते हैं, संविधान को संरक्षण देते हैं, लेकिन हमें तो दिखता है कि जनता अन्तर रात और दिन में है उतना ही अंतर ५९ For Private And Personal Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आपकी कथनी तथा करनी में हैं। श्वेत वस्त्रों में आपका व्यक्तित्व शुभ्रता गृहण करता है किन्तु हमारा अनुमान है कि आपकी कलम की स्याही और आपके कार्यों के रंग ने समझौता कर रखा है। -६० आज आपके पवित्र उपकारों का ही फल है कि जैन समाज के लगभग ५०लाख रु. व्यर्थ में होम हो गये हैं। हां! आप कह सकते हैं कि हुआ क्या डाक और तार विभाग की आमदनी हुई, रेल्वे को मुनाफा मिला, कागज मीलों का माल बिका और अनेकानेक लोग लाभान्वित हुए। मान गये । हम आपको कि आपके सफल नेतृत्व ने हमें आज ब्रिटीशकाल को याद करने का मौका दिया और आपने उसके प्रति श्रद्धांजलि अर्पित करने हेतु सोचने का विषय दिया । जो कार्य बर्बर मुगलों के युग में नहीं हुआ, नृशंस फिरंगियों के राज्य में नहीं हुआ, आतंकवादी अंग्रेजों की सत्ता में नहीं हुआ, गद्दार राजाओं व रजवाड़ों में नहीं किया वह महत्तर कार्य आप जैसे लौहपुरुष के सद्प्रयत्नों से सम्पन्न हुआ। वास्तव में यदि आप भारत के सर्वोच्च पद पर आसीन हो गये तो अवश्य आपकी इस जवांमर्दी का भारत की हर कौम, हर धर्म, हर प्रान्त को स्वाद मिल जाए। हो सकता है पूर्वाभ्यास प्रारम्भ हो गया हो । खैर! आप तो ऊंचे ऊंचे बंगलों में मुलायम मुलायम गद्दों पर आराम करने वाले लोग हैं और हम आपके दरवाजों पर दस्तकें देने वाले, आप तो ठीक आपके सन्तरी के भी हाथ जोड़ने वाले, आपके सेक्रेटरी को साष्टांग प्रणाम करने वाले साधारण नागरिक हैं, लेकिन आज प्रजातंत्र है, इसलिए हमें आशा है कि हमारी पूकार आपके लौह कर्णों को छेदती हुई आपके मन और मस्तिष्क में उतर सकेगी। हम जो पूर्णत: भारत के नागरिक हैं, राष्ट्रीय विचार के लोगों में हमारी गणना है, देशभक्तों की पंक्ति में हमारा योगदान है आपसे यही निवेदन करना चाहते हैं कि यदि आप हमारे पावन पवित्र तीर्थ पारसनाथ हिल्स (श्री सम्मेतशिखर तीर्थ ) पर से अपना अवैधानिक तथा अनुचित अधिकरण हटा कर पुनः हमें सुपुर्द करेंगे तो हम अत्यंत कृपावंत होंगे, क्योंकि व्यर्थ के आंदोलनों तथा सत्याग्रहों के चक्र से आप हमें मुक्त कर सकेंगे। वैसे पारसनाथ हिल्स प्राप्त करना हमारा अधिकार है, कृपा और दया अथवा दान-धर्म के रूप में हम नहीं मांगते किन्तु यह निश्चित है कि यदि आपने उपरोक्त अनुगृह नहीं किया तो अभी पत्र से ही हम सम्बोधित कर रहे हैं, फिर पटना आकर ६० For Private And Personal Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हमें आपको सम्बोधित करना पड़े तथा यह सम्बोधन न जाने चुनौती का हो या चेतावनी का संघर्ष का हो या सत्याग्रह का। __ माननीय मुख्यमंत्री! शायद आपने जैन समाज को एक कमजोर कौम माना है तथा निर्बल व निस्सहाय समाज के रूप में ग्रहण किया किन्तु हम आपसे निवेदन करते हैं कि आप अपने विचारों में संशोधन करें ठीक है। सागर शांत व मर्यादित होता है किन्तु जब ज्वार उठता है, तूफान आता है, लहरें टकराती हैं तो बड़े-बड़े जहाज भी डगमगा जाते हैं - कहीं आपके राजनीतिक भविष्य की किश्ती भी डगमगा न जाए बस यही चिंता है। वैसे आप साक्षात् देखना चाहें तो जैन समाज भी तैय्यार है। कल तक हमने अपने हृदयों में आपकी मूर्ति प्रतिष्ठित कर रखी थी, जिसका प्रतिदिन श्रद्धा से हम प्रक्षालन करते थे, क्योंकि हमारा सम्मेतशिखर तीर्थ आपके राज्य में पावन पताका फहराता रहा था, लेकिन न जाने आज क्यों वह मूर्ति खण्डित हो गई है और वह स्तम्भ भी ध्वस्त हो गया। आज आपके प्रति जैन समाज हृदय में श्रद्धा के नाम पर शुन्य भी न है बल्कि आज जैन कवियों के गीत आपको भर्त्सना करते हैं, लेखकों के लेख आपको प्रताड़ते हैं, वक्ताओं के वक्तव्य नाराजगी का इजहार करते हैं। यह सब आपके अपने आदेशों का ही परिणाम है। आज तक जैन समाज का आंदोलन अत्यंत शांति पूर्वक चलता रहा, लेकिन कृपया ध्यान रखिये कहीं यह शांति तूफान की पूर्व सूचना नहीं हो - ऐसे तूफान की कि जिसमें आपकी किश्ती सागरस्थ हो जाए। बस अधिक क्या लिखू। आपका ही . शुभचिन्तकों For Private And Personal Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir RUTOKA Clara RE दुनिया क्या है? एक मुसाफिर खाना है। हर मुसाफिर आता है यहाँ अपना सामान लिए और अटरम-सटरम किया करता है, जब तक कि गाड़ी आती नहीं। गाड़ी ने सीटी दी और सब कुछ छोड़कर नये स्टेशन पर पहुँचने की तैयारी करना पड़ती है, चाहे इच्छा हो या न हो। लेकिन..... जब तक इच्छित गाड़ी नहीं आती, उसे अपना सामान संभाल कर रखना पड़ता है। जेब के पीछे जेबकट, सामान के उठाईगिरे और चोर, मक्खियों की तरह भिन-भिनाते हैं तथा कुछ देखी नहीं कि समान गायब। __ रंगे हाथों गिरफ्तार कर लिया तो आपको चारों ओर से तारीफ के पुलंदे भेंट में मिलेंगे और ध्यान नहीं रहा तो नौ-दो ग्याहर हो गए तो उपदेशों के बाण आपकी ओर हर कोई दागने लग जाता है- ध्यान रखना चाहिए भाई साहब! सामान का सामान गया और इज्जत का पंचनामा बना, सो अलग। 'घर हान जगत हँसी।' बस! यही हुआ, बिहार सरकार भी १८ सालों से मक्खी की तरह भिन-भिना रही थी- सम्मैतशिखरजी के चारों ओर। चन्दन के पेड़ पर जैसे कोई नाग लिपटने की कोशिश करते हैं। सरकार का लालफिताशाही भी पारसनाथ हिल्स को फाइलों में बन्द करने की कोशिश कर रहा था। अजगर ने एक श्वास में राम और लक्ष्मण को उदरस्थ कर लिया था और बिहार सरकार ने एक आदेश में सारे पर्वत को निगल लिया। चोर, सामान उठाकर रसीद भी नहीं देता। बिहार सरकार भी पर्वत हड़पकर टस-से-मस नहीं होना चाहती। जैन समाज, एक भोलीभाली, जिसे न किसी से कुछ लेना और न किसी का कुछ देना, न दंगा मचाना आता है न हुड़तंग करना आता है। यदि उसके हृदय में कुछ किसी के प्रति तो, वह मात्र करुणा, दया, प्रेम और सद्भाव ही है। यही उसका अपराध माना गया, यही उसकी कमजोरी मानी गई और यही उसका तकु कसुर जाना गया। बस क्या था। For Private And Personal Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पारसनाथ हिल्स एक वायर कर लिया गया और एक वायर कर डकार भी नहीं ली। फॉरेस्ट मेंसन को सुपुर्द भी कर दिया। हर कोई ख्वाब कसना चाहता है। पहले अधिकारयों से माथाफोड़ हुई-समझौते के आठ मुद्दे तय हुए हैं। बोले- भई! दस्तखत को मंत्रिमंडल ही करेगा। आप जाइए, हम एग्रीमेंट पत्र आपको भेज देंगे। मंत्रिमंडल के सामने बात जाए और वह फेरबदल न करे, यह कभी हो सकता है। चाहे मंत्रीजी को हस्ताक्षर करना न आए, हस्तक्षेप करना तो आता है। समझौता पत्र क्या, जैन समाज का समर्पण-पत्र तैयार कर दिया और भेज दिया पेढ़ी को। आखिर यह सब जैन समाज के साथ ज्यादती, अन्याय, अत्याचार, लूट-खसोट और जुल्म ही तो है। जिससे टक्कर लेकर आज उसे जीना है। पटना की जेलें खाली हैं, जो उसे इस अनैतिकता, अप्रजातांत्रिकता और अनुचितता को समाप्त करने के लिए उन्हें भी भरना होगी। श्री कृष्णवल्लभ सहाय, जिसने हमें असहाय करने का प्रयास किया है, उनके बंगले पर धरना देना होगा। दिल्ली का तख सुनता नहीं है तो उसको भी हिलाना होगा। सुल्तान सोया हुआ है तो चेतावनी देकर जगाना पड़ेगा। हम अराजकता नहीं फैलाएँगे। अपने अधिकार माँगेंगे। आज राष्ट्रीय संकट है, लेकिन हमें दग्ध कर आज उत्तेजित और आन्दोलित किया जा रहा है। आज हमें बे-आबरू और बेइज्जतदार बनाने का प्रयास चल रहा है, हमारी अपनी संपत्ति लूटी जा रही है। कानूनन हमारे भगवान की प्रतिष्ठाएँ रुक सकती हैं, हमारी सुरक्षा की कोई व्यवस्था नहीं। उपाश्रयों और साधुओं पर हमले किए जाते हैं, अर्द्धदग्ध मुनि शरीर को जलती हुई चीता से खींचकर सड़कों पर घसीटा जाता है, जिनालयों में बम विस्फोट होते हैं। फलतः श्रावकों को शहीद होना पड़ता है, खुलेआम जैनों के नाश हेतु नारे लगते हैं; फिर भी कोई सुरक्षा और कोई व्यवस्था नहीं। टैक्स का भार सभी से ज्यादा, किन्तु सुविधाएँ सभी से कम। ___ आज, जैन समाज को जागना है। बहुत सोये, अब तो उठो। बहुत खोया, अब तो चलो। जागो और कर्तव्य पथ पर डट जाओ। सभी प्रान्तों से यही आवाज है- सभी दिशाओं की यही पुकार है, सभी ओर से यही चेतावनी है। संभलो For Private And Personal Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वरना....समर्पण नहीं सीखा है हमने, हमने सीखा है संघर्ष और ऐसा जमकर, डटकर संघर्ष कि पीछे नहीं हटे कभी, नीचे नहीं झुके कभी। आज स्थिति यही उत्पन्न हुई है कि..... 'तेरी गठरी में लगा चोर - मुसाफिर जाग जरा।' मौसम आया है तो इसे त्याग और बलिदान से सजाओ, जीवन को धर्म पर जलाओ नहीं तो भावी इतिहास हमें निकम्मी संतान ठहराएँगे और भावी पीढ़ियाँ हमारे नाम को कौसेंगी, भविष्य हमारे नाम को स्मरण करते शर्माएगा। वंशजों के सिर धरती में गढ़ जाएँगे। हमको धरती में गढ़ना नहीं है, जरूरत पड़ी तो धरती को उठा लेना है। . शाश्वत धर्म से ६४ For Private And Personal Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org यह प्रश्न नहीं संमेतशिखर का है केवल संमेतशिखर के साथ लक्ष्य है जुड़ा हुआ। वह भव्य रम्य तीर्थ स्थल अहो ! हमारा है | उस धर्म - भूमि में हस्तक्षेप करे शासन । वह प्रजातन्त्र का खूनी है, हत्यारा है ॥१॥ है बुनियादी अधिकार धर्म स्वातंत्र्य जहाँ । धार्मिक निरपेक्ष ही है जिसका मूल मंत्र ॥ जब होता हस्तक्षेप धर्म की भूमि मेंबतलाओ कैसा प्रजातन्त्र यह लोकतन्त्र ॥ २ ॥ अन्याय नहीं सह सकते हम सच कहते हैं । अब यहाँ लगेली बाजी जीवन प्राणों की ॥ संघर्ष - - समर है छिड़ा, करेंगे सत्याग्रह | जय हेतु लगेगी लड़ी यहाँ बलिदानों की ॥३॥ अत्याचारी सरकार! कान को खोल सुनो। दो न्याय हमें, अन्यथा नियम से रण होगा ॥ सत्याग्रह होंगे, हड़तालें, अनशन होंगे। जीवन जय होगा, या बलिदान मरण होगा ॥४॥ यह प्रश्न नहीं संमैतशिखर का है केवल । धार्मिक स्वतंत्रता की प्रज्ज्वलित समस्या है ॥ सोचो जनता की समाजवादी सरकारों । इसका सुन्दर सत्, सरल ओ, सही हल क्या है ॥५॥ ६५ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ■ शूलपाणी श्रीमाल For Private And Personal Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दिगम्बर समाज के नाम श्वेताम्बर और दिगम्बर शरीर दो किन्तु आत्मा एक आँखें दो किन्तु चेहरा एक पहलु दो किन्तु सिक्का एक भिन्न किन्तु एक दूसरे से बिलकुल अभिन्न। एक वीतराग - एक धर्म एक से मूल सिद्धान्तों को मानने वाले उनकी आराधना करने वाले तथा एक ही परमोच्च लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु संरत् - एक पर आपत्ति दूसरे की विपत्ति !..... किन्तु आज कुछ अपवाद ही दिख रहा है। __ जब श्री सम्मेतशिखर तीर्थ पर बिहार सरकार ने कब्जा किया तो श्वेतााबर समाज में भयंकर आक्रोश एवं रोष फैला किन्तु दिगम्बर समाज अधिकत: मौन या अंशत: प्रसन्न हुई एक के घर हाहाकार मच रहा था तो दूसरा घी के दीप संजोने बैठा था। यह अतिशयोक्ति पूर्ण आलोचना नहीं वास्तविक स्थिति का अध्ययन है। यहां तक कि कुछ क्षेत्रों में तो बिहार सरकार के समर्थन में सभाएं की गई तथा प्रस्ताव पास किये गये। यह सब एक क्रूर मजाक ही है - एक भाई की अपने भाई के साथ। दिगम्बर अखबारों ने लिखा मंदिर सुरक्षित है मात्र कुछ जंगलों पर कब्जा हुआ है, जिसका श्वेताम्बरी विरोध कर रहे हैं। यह समीक्षा किस बात की द्योतक ___ यही नहीं भारतवर्षीय दिगम्बर जैन तीर्थ क्षेत्र कमेटी के महामंत्री श्री चंदूलाल कस्तूरचंद जैसे जिम्मेदार व्यक्ति ने वक्तव्य जारी किया है कि सम्मेतशिखरजी का अधिकार दिगम्बर जैनों को भी दिया जाए तथा इस हेतु गांव गांव से प्रस्ताव भेजे जाए। __ श्री सम्मेदशिखर तीर्थ निर्विवाद श्वेताम्बरियों की संपत्ति है तथा आज जब उस पर संकट आया तो इस प्रकार की बातें करना अपनी स्थिति को और कमजोर बनाना है और कमजोर बनाकर लाभ उठाना है जो कि राजनीतिक भ्रष्टाचार से कम नहीं। अभी समझौता नहीं हुआ वार्ता में गतिरोध उत्पन्न हो चुका है, ऐसे समय संघर्षरत् लोगों के कदम मजबूत करना तो दूर रहा, उनकी टांग खींचना विवेक ६६ For Private And Personal Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir एवं बुद्धिमत्तापूर्ण कार्य नहीं कहा जा सकता। दिगम्बर बन्धुओं को चाहिए कि वे विवेक से काम ले। स्थिति ऐसी उत्पन्न हुई है कि श्वेताम्बर समाज पर दो तरफा आक्रण हुआ है। बिहार सरकार कब्जा कर चुकी है तथा दिगम्बर भाई अधिकार का दावा करते हैं। यदि कहीं लड़ाई दिगम्बर श्वेताम्बर के बीच प्रारम्भ हो गई तो श्री सम्मेतशिखर तो सदैव के लिये हमारे हाथ से निकलेगा ही हम इतने उलझ जाएंगे कि लोकतंत्र में हमारा अस्तित्व भी खतरे में पड़ जाएगा। बिहार सरकार तो यह चाहती भी कि दाने डाल दिये जाए किन्तु दिगम्बर भाई यदि संतुलित रहे तो सम्मेदशिखरजी के संघर्ष में हम विजय ही रहेंगे। बिहार सरकार को पछाड़ भी खिला सकेंगे। ___ आशा है दिगम्बर समाज सोच, समझकर विवेकपूर्ण कदम उठायेगी। आज कई उदाहरण है कि इस प्रकार दिगम्बर समाज द्वारा श्वेताम्बर तीर्थों पर किये अनाधिकार दावों से तीर्थों की दुर्दशा हुई वहीं आशातना बढ़ी एवं दोनों ही हाथ मलते रह गये। - शाश्वत धर्म से उधृत अक्टूबर १९६४ For Private And Personal Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir a mand Serving JinShasan 044093 gyanmandir@kobatirth.org | चित्र : 1. आर्य कृष्णाचार्य द्वारा राजकुँवर को उपदेश :2. रथ्वीपुर नगर के बाहर राजकुँवर को दीक्षा देकर श्री शिवभूति नाम घोषितः 3. दीक्षा के समय रत्नकंबल रथ्वी पर राजा द्वारा देना। : 4. कंबल को लेकर आर्य कृष्णाचार्य से विवाद: 5. भाई-बहन शिवभूति एवं उत्तरा निःवस्त्र:६. नगर वधु द्वारा साध्वी उत्तराजी को वस्त्र दान यहां से स्त्री मुक्ति के द्वार बंद का निर्णय घोषित / किन्तु दिगंबर मुनियों की साधना स्त्री सहयोग के बिना अधुरी, मुनि साधनों में आवश्यकता और स्त्री मुक्ति निषेध। :7. श्रमण भगवान महावीर के निर्वाण के 609 वर्ष बाद दिगंबर पंथ का उद्गम, आद्यमुनि श्री शिवभूतिजी। For Private And Personal