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जिस पुरुष में शोर्य, धैर्य, सहनशिलता, सरलता, सुशीलता, सत्याग्रह, गुणानुरागता, कषायदमन, विषदमन न्याय और परमार्थ रुचि इत्यादि गुण निवास करते है, संसार में वहीं पुरुष देवांशी, आदर्श, और पूज्य माना जाता है। ऐसे ही व्यक्ति की सब लोग सराहना करते है।
जिस प्रकार आधा भरा हुआ घड़ा छलकता है, पूरा भरा हुआ नहीं, कांशी की थाली रणेकार शब्द करती है सोने का नहीं और गदहा भूकता है घोड़ा नहीं इसी प्रकार दुष्ट स्वभावी दुर्जन लोग थोड़ा भी गुण पाकर ऐंठने लगते हैं और वे अपनी स्वल्प बुद्धि के कारण सारी जनता को मुर्ख समझने लगते हैं। सज्जन पुरुष होते हैं। वे सद्गुणपूर्ण होकर भी ऐंठते नहीं और न अपने गुण को ही अपने मुख से जाहिर करते हैं। जैसे सुगंधी वस्तु की सुवास छिपी नहीं रहती, वैसे ही उनके गुण अपने आप सामने आ जाते है। इसलिये दुर्जन भाव को छोड़कर सज्जनता के गुण अपनाने की कोशिश करना चाहिए, तभी आत्म कल्याण होगा।
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