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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दिगम्बर समाज के नाम श्वेताम्बर और दिगम्बर शरीर दो किन्तु आत्मा एक आँखें दो किन्तु चेहरा एक पहलु दो किन्तु सिक्का एक भिन्न किन्तु एक दूसरे से बिलकुल अभिन्न। एक वीतराग - एक धर्म एक से मूल सिद्धान्तों को मानने वाले उनकी आराधना करने वाले तथा एक ही परमोच्च लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु संरत् - एक पर आपत्ति दूसरे की विपत्ति !..... किन्तु आज कुछ अपवाद ही दिख रहा है। __ जब श्री सम्मेतशिखर तीर्थ पर बिहार सरकार ने कब्जा किया तो श्वेतााबर समाज में भयंकर आक्रोश एवं रोष फैला किन्तु दिगम्बर समाज अधिकत: मौन या अंशत: प्रसन्न हुई एक के घर हाहाकार मच रहा था तो दूसरा घी के दीप संजोने बैठा था। यह अतिशयोक्ति पूर्ण आलोचना नहीं वास्तविक स्थिति का अध्ययन है। यहां तक कि कुछ क्षेत्रों में तो बिहार सरकार के समर्थन में सभाएं की गई तथा प्रस्ताव पास किये गये। यह सब एक क्रूर मजाक ही है - एक भाई की अपने भाई के साथ। दिगम्बर अखबारों ने लिखा मंदिर सुरक्षित है मात्र कुछ जंगलों पर कब्जा हुआ है, जिसका श्वेताम्बरी विरोध कर रहे हैं। यह समीक्षा किस बात की द्योतक ___ यही नहीं भारतवर्षीय दिगम्बर जैन तीर्थ क्षेत्र कमेटी के महामंत्री श्री चंदूलाल कस्तूरचंद जैसे जिम्मेदार व्यक्ति ने वक्तव्य जारी किया है कि सम्मेतशिखरजी का अधिकार दिगम्बर जैनों को भी दिया जाए तथा इस हेतु गांव गांव से प्रस्ताव भेजे जाए। __ श्री सम्मेदशिखर तीर्थ निर्विवाद श्वेताम्बरियों की संपत्ति है तथा आज जब उस पर संकट आया तो इस प्रकार की बातें करना अपनी स्थिति को और कमजोर बनाना है और कमजोर बनाकर लाभ उठाना है जो कि राजनीतिक भ्रष्टाचार से कम नहीं। अभी समझौता नहीं हुआ वार्ता में गतिरोध उत्पन्न हो चुका है, ऐसे समय संघर्षरत् लोगों के कदम मजबूत करना तो दूर रहा, उनकी टांग खींचना विवेक ६६ For Private And Personal
SR No.020622
Book TitleSammetshikhar Jain Maha Tirth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay
PublisherRajendra Pravachan Karyalay
Publication Year1994
Total Pages71
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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