SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 11
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विद्याभूषण श्रीमद् विजय भूपेन्द्रसूरीश्वजी महाराज परम पूज्य व्याख्यान वाचस्पति साहित्य शिरोमणी श्रीमद् विजय यतीन्द्रसूरीश्वरजी महाराज, संस्कृत साहित्य विशारद उपाध्याय श्री गुलाब विजयजी महाराज कविरत्न शासन प्रभावक आचार्यदेव श्रीमद् विजय विद्याचंद्रसुरीश्वरजी महाराज, साहित्य प्रेमी पूज्य मुनिप्रवर श्री देवेन्द्र विजयजी महाराज आदि ने साहित्य क्षेत्र, शिक्षा क्षेत्र जीवदया क्षेत्र, आदि विद्यादान के लिये गुरुकुल स्थापित करवाये सभी क्षेत्रों में कार्य करके इतिहास में अपने नामों को स्वर्णाक्षरों में अंकित करवाया है। पूज्य कविरत्न आचार्य प्रवर श्रीमद् विजय विद्याचंद्रसूरीश्वरजी महाराज ने हिन्दी में पद्यों की रचना कर महान श्रम किया है। श्री आदिनाथ, श्री शांतिनाथ, श्री नेमीनाथ, श्री पार्श्वनाथ श्री महावीरस्वामी आदि पंच तीर्थंकरों के जीवन की पद्यबद्ध रचना की। आज तक कवि जगत में किसी भी महापुरुष ने ऐसा श्रम नहीं किया है। इसके साथ ही साहित्य जगत में कविताबद्ध पद्यों की रचना कर प्रकाशित करवाया है। जैसे आदर्श महापुरुष आचार्य प्रवर श्रीमद् विजय राजेन्द्रसूरीश्वरजी, श्री भूपेन्द्रसूरीश्वरजी, श्री यतीन्द्रसुरीश्वरजी आदि महान जैनाचार्यों के जीवन को कविता में पद्य रचनाकर प्रकाशित किया है। नारी जगत के उज्जवल चारित्र को पद्यों में गंथकर मानश्रीजी प्रेमश्रीजी आदि गुरुणियों का जीवन पद्य रचनाओं में कर प्रकाशित करवाया है। __ सर्वजन के उपयोग के लिये पथिक, महाकाव्य, चिन्तन की रश्मियां पथिकमणी माला और १२५ दोहों का प्रकाशन करवाकर अनुठा कार्य किया है। इस प्रकार श्वेताम्बर जैन समाज अपने आचार्यों के मार्गदर्शन में चलकर अपनी लक्ष्मी का सद्उपयोग करने का लक्ष्य सीखा है। इस जगह श्वेताम्बर जैनियों के प्रत्येक कार्य को लिखा जाय तो बहुत बड़ा ग्रंथ होगा। हमें उन श्वेताम्बर जैन समाज के गौरवान्वित कार्यों से गौरव अनुभव करते हैं। हमे यह लिखने में संकोच नहीं होता है कि ऐसा कार्य आज विश्व में सात वस्तुए ऐसी है जिन्हें देखने के लिये प्रत्येक मानव लालायित रहता है। उन सात वस्तुओं में से चार वस्तुए भारत में हैं। १ आबु देलवाड़ा, राणकपुर जैन मंदिर ३- दिल्ली में कुतुबमिनार ४- आगरा में ताजमहल इन में से दो वस्तुए श्वेताम्बर जैन समाज के नरवीर दानवीर ने वनवाई है। जिसमें देश के नागरिक व श्वेताम्बर जैन समाज गौरव का अनुभव करते है। क्योंकि उन्होंने ही भाइयों ने ऐसे आदर्श कार्य किये है। आज भी प्रवासी राजस्थानी जैन श्वेताम्बर १० करोड़ मनुष्यों को अपने उद्योगों में कार्य देकर उनका पालन For Private And Personal
SR No.020622
Book TitleSammetshikhar Jain Maha Tirth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay
PublisherRajendra Pravachan Karyalay
Publication Year1994
Total Pages71
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy