SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 28
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जैन समाज को आज जागृत होना है तथा संघर्ष के लिये बिगुल बजानी है किन्तु यह संघर्ष पूर्णतया अहिंसक तथा औचित्य पूर्ण होगा यह हमारी संस्कृति और शालीनता के अनुरूप ही होना अत्यावश्यक है। यद्यपि बिहार सरकार विभिन्न आश्वासन दे रही है, किन्तु वे मात्र जैन समाज का नैतिक साहस ही कम कर सकते हैं। वह अधिकार नहीं देना चाहती किन्तु चाहती है देना केवल आश्वासन यह प्रश्न जैन समाज के जीवन मरण का प्रश्न है। इस स्थिति में इसका एक मात्र हल यही है कि जैन समाज को सम्मेतशिखरजी का अधिकरण पुनः दे दिया जाए। प्रजातंत्र में संभवतः यह निर्णय सबसे दुर्भाग्यपूर्ण निर्णय है। मुगलसम्राट भी जिस ओर दृष्टि न उठा सके थे, ब्रिटिश शासक भी जिसके विषय में कुछ नहीं सोच सके थे यदि वह अकृत्य लोकतांत्रिक सरकार करती है तो यह सबसे बड़ी दुर्घटना है। इस युग की ! आवश्यकता तो यह है कि नैतिक व धार्मिक आचरणों की जनजीवन में अधिकाधिक प्रभावना की जाए किन्तु आज तो भौतिकवादी ढंग पर हर कार्य सरकार सोचती और निर्णित करती है। इसी कारण देश में भ्रष्टाचार, अनाचार और अनैतिकता दिन-ब-दिन अपने पंजे फैलाते जा रहे हैं। श्री सम्मेतशिखरजी के पवित्र हवामान तथा उत्तमोत्तम वातावरण को बिगाड़ने का प्रयास भी जनता में दुष्प्रभाव ही डालेगा। जैन संस्कृति का भारतीय जनजीवन में स्वर्णिम स्थान है । उत्तुंग शैलशिखरों पर स्थित तीर्थों, कलात्मक वैभव से सम्पन्न जिनालयों, प्राकृतिक सम्पदा से युक्त स्थलियों ने भारतीय जीवन को बनाने में अत्यन्त योगदान दिया है। ये तीर्थ ही ऐसे स्थान हैं कि जहां भौतिकता के इस उकलते वातावरण में मानव आत्मशांति का रस पान कर सकता है। यदि ऐसे स्थानों पर भी अपवित्रता के चक्र चलने लगे तो आत्मसाधना का जीना दूभर हो जाएगा। इसलिये आवश्यकता है कि सम्मेतशिखरजी के एक-एक कण को उनकी गौरव गरिमाओं के अनुरूप ही पवित्र रखा जाए। मुझे प्रसन्नता है कि धानसा की गतिशील संस्था श्री सम्मेतशिखर सुरक्षा परिषद् की ओर से यह विशाल सम्मेलन आयोजित किया गया है तथा मात्र विरोध प्रदर्शन ही नहीं ठोस कार्यवाही भी करने जा रहा है। मैं इसके आयोजकों तथा कार्यकर्ताओं की प्रशंसा किये बिना नहीं रह सकता। (प्रशेष पेज ५० पर) २५ For Private And Personal
SR No.020622
Book TitleSammetshikhar Jain Maha Tirth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay
PublisherRajendra Pravachan Karyalay
Publication Year1994
Total Pages71
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy