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आपकी कथनी तथा करनी में हैं। श्वेत वस्त्रों में आपका व्यक्तित्व शुभ्रता गृहण करता है किन्तु हमारा अनुमान है कि आपकी कलम की स्याही और आपके कार्यों के रंग ने समझौता कर रखा है।
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आज आपके पवित्र उपकारों का ही फल है कि जैन समाज के लगभग ५०लाख रु. व्यर्थ में होम हो गये हैं। हां! आप कह सकते हैं कि हुआ क्या डाक और तार विभाग की आमदनी हुई, रेल्वे को मुनाफा मिला, कागज मीलों का माल बिका और अनेकानेक लोग लाभान्वित हुए। मान गये । हम आपको कि आपके सफल नेतृत्व ने हमें आज ब्रिटीशकाल को याद करने का मौका दिया और आपने उसके प्रति श्रद्धांजलि अर्पित करने हेतु सोचने का विषय दिया ।
जो कार्य बर्बर मुगलों के युग में नहीं हुआ, नृशंस फिरंगियों के राज्य में नहीं हुआ, आतंकवादी अंग्रेजों की सत्ता में नहीं हुआ, गद्दार राजाओं व रजवाड़ों में नहीं किया वह महत्तर कार्य आप जैसे लौहपुरुष के सद्प्रयत्नों से सम्पन्न हुआ। वास्तव में यदि आप भारत के सर्वोच्च पद पर आसीन हो गये तो अवश्य आपकी इस जवांमर्दी का भारत की हर कौम, हर धर्म, हर प्रान्त को स्वाद मिल जाए। हो सकता है पूर्वाभ्यास प्रारम्भ हो गया हो ।
खैर! आप तो ऊंचे ऊंचे बंगलों में मुलायम मुलायम गद्दों पर आराम करने वाले लोग हैं और हम आपके दरवाजों पर दस्तकें देने वाले, आप तो ठीक आपके सन्तरी के भी हाथ जोड़ने वाले, आपके सेक्रेटरी को साष्टांग प्रणाम करने वाले साधारण नागरिक हैं, लेकिन आज प्रजातंत्र है, इसलिए हमें आशा है कि हमारी पूकार आपके लौह कर्णों को छेदती हुई आपके मन और मस्तिष्क में उतर सकेगी।
हम जो पूर्णत: भारत के नागरिक हैं, राष्ट्रीय विचार के लोगों में हमारी गणना है, देशभक्तों की पंक्ति में हमारा योगदान है आपसे यही निवेदन करना चाहते हैं कि यदि आप हमारे पावन पवित्र तीर्थ पारसनाथ हिल्स (श्री सम्मेतशिखर तीर्थ ) पर से अपना अवैधानिक तथा अनुचित अधिकरण हटा कर पुनः हमें सुपुर्द करेंगे तो हम अत्यंत कृपावंत होंगे, क्योंकि व्यर्थ के आंदोलनों तथा सत्याग्रहों के चक्र से आप हमें मुक्त कर सकेंगे।
वैसे पारसनाथ हिल्स प्राप्त करना हमारा अधिकार है, कृपा और दया अथवा दान-धर्म के रूप में हम नहीं मांगते किन्तु यह निश्चित है कि यदि आपने उपरोक्त अनुगृह नहीं किया तो अभी पत्र से ही हम सम्बोधित कर रहे हैं, फिर पटना आकर
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For Private And Personal