Book Title: Sammetshikhar Jain Maha Tirth
Author(s): Jayprabhvijay
Publisher: Rajendra Pravachan Karyalay

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Page 68
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org यह प्रश्न नहीं संमेतशिखर का है केवल संमेतशिखर के साथ लक्ष्य है जुड़ा हुआ। वह भव्य रम्य तीर्थ स्थल अहो ! हमारा है | उस धर्म - भूमि में हस्तक्षेप करे शासन । वह प्रजातन्त्र का खूनी है, हत्यारा है ॥१॥ है बुनियादी अधिकार धर्म स्वातंत्र्य जहाँ । धार्मिक निरपेक्ष ही है जिसका मूल मंत्र ॥ जब होता हस्तक्षेप धर्म की भूमि मेंबतलाओ कैसा प्रजातन्त्र यह लोकतन्त्र ॥ २ ॥ अन्याय नहीं सह सकते हम सच कहते हैं । अब यहाँ लगेली बाजी जीवन प्राणों की ॥ संघर्ष - - समर है छिड़ा, करेंगे सत्याग्रह | जय हेतु लगेगी लड़ी यहाँ बलिदानों की ॥३॥ अत्याचारी सरकार! कान को खोल सुनो। दो न्याय हमें, अन्यथा नियम से रण होगा ॥ सत्याग्रह होंगे, हड़तालें, अनशन होंगे। जीवन जय होगा, या बलिदान मरण होगा ॥४॥ यह प्रश्न नहीं संमैतशिखर का है केवल । धार्मिक स्वतंत्रता की प्रज्ज्वलित समस्या है ॥ सोचो जनता की समाजवादी सरकारों । इसका सुन्दर सत्, सरल ओ, सही हल क्या है ॥५॥ ६५ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ■ शूलपाणी श्रीमाल For Private And Personal

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