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१५- यह कि एक लम्बे पत्र व्यवहार एवं साक्षात्कारों के बाद एक पंजीयन अनुबंध द्वारा दिनांक १७.११.१९५२ को सरकार और पेढ़ी के बीच समझौता हुआ, जिसमें सरकार ने पर्वत की पवित्रता को मान्य किया तथा पेढ़ी ने रक्षित जंगल विकास की बात मानकर विभिन्न मुद्दे तय किए।
१६- यह कि समझौते का बिहार सरकार की ओर से कोई परिपालन नहीं किया गया।
१७- यह कि २ मई १९५३ को सरकार ने जंगलों के अधिकरण का सूचना-पत्र प्रसारित कर दिया, जो कि समझौते का उल्लंघन तथा जैनों को भारतीय संविधान द्वारा दिए गए मौलिक अधिकारों का एकदम हनन थे।
१८- यह कि दिनांक २.५.१९५३ को जारी किया गया नया सूचना-पत्र बिहार लैण्ड रिफार्म एक्ट के सेक्षन १ के तहत् था। पेढ़ी के द्वारा इसके विरोध में बिहार सरकार के सन्मुख दिनांक ८.८.१९५३ के दिन याचिका प्रस्तुत की गई, जिसमें कहा गया कि पारसनाथ हिल्स एक पवित्र संस्था है, जो कि कानून भी अधिकृत नहीं किया जा सकता।
१९- यह कि बिहार भूमि विकास अधिनियम के अन्तर्गत वही जंगल व भूमि शासन अधिकृत कर सकती है, जिससे आमदनी होती हो। लेकिन पारसनाथ पर्वतमाला से कोई आमदनी नहीं हो रही थी, किन्तु फिर भी राज्य शासन ने जबर्दस्ती कानून लागू कर जैन समाज के अधिकारों पर कुठाराघात किया।
२०- यह कि याचिका के उधर में सरकार एक अनुबंध पर विचार करने हेतु राजी हो गई, जो शासकीय वकील द्वारा तैयार किया गया था। __२१- यह कि दिनांक ३० अक्टूबर १९४९ को पूर्ण साक्षात्कार में पेढ़ी की
ओर से निवेदन किया गया कि सरकार, स्वयं १७.११.१९५२ के अनुबंध में इसे पवित्र मान चुकी है। अतएव यह सूचना वापस ली जाए।
२२- यह कि इसके बाद सेठ आनन्दजी कल्याणजी की पेढ़ी व्यक्तिगत संचार व्यवहार करती रही।
२३- यह कि बिहार सरकार ने एक सूचना-पत्र द्वारा पूरा पारसनाथ हिल्स अपने अधिकार में भूमि विकास अधिनियम के अन्तर्गत दिनांक २.४.६४ को ले लिया तथा जंगल विभाग को विकास हेतु सुपुर्द कर दिया।
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