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में जैन समाज के नाम इसका पट्टा मान्य किया था तथा सन् १५९३ में उसने इस सम्बन्धी फरमान भी जारी कर दिया था।
७- यह कि सन् १७६० में राजा अहमदशाह बहादुर ने भी एक अन्य फरमान द्वारा मुर्शीदाबाद के जैन निवासी श्री जगत सेठ को पारसनाथ हिल्स पर जैन श्वेताम्बर समाज के आधिपत्य की स्वीकृति दी थी।
८- यह कि ब्रिटिशकाल में भी इसे जैनों का पवित्र स्थान मान्य किया गया एवं इसका पूर्ण सम्मान रखा गया।
९- यह कि १८३८ के लगभग यूरोपियन अधिकारी इसका त्रिकोणमिती के अन्वेषणों हेतु उपयोग करना चाहते थे तथा उनने तंबू भी तान दिए थे, किन्तु जैन समाज के विरोध पर ब्रिटिश शासन ने भी जैनों को इसकी पवित्रता की पूर्ण गारंटी देते हुए तंबू हटवा दिए थे।
१०- यह कि १८९३ में ब्रिटिश सेना के सेनापति ने भी यहाँ सैनिकों के प्रशिक्षण का केन्द्र स्थापित करना चाहता था, किन्तु वह योजना भी जैन समाज की आपत्तियों पर रद्द कर दी गई।
११- यह कि सन् १८७८ में जैन समाज तथा पालनगंज राजा के बीच एक विवाद उत्पन्न हो गया था, जो कि कलकत्ता हायकोर्ट में प्रस्तुत हुआ था। कलकत्ता हायकोर्ट के न्यायाधीशों ने भी इसकी पवित्रता को मान्य करते हुए निर्णय दिया कि इसका एक-एक इंच पवित्र एवं समान पूजा अधिकार है।
१२- यह कि अन्त में सभी आपत्तियाँ हटाने के लिए जैन श्वेताम्बर समाज के प्रतिनिधि, पेढ़ी श्री आनन्दजी कल्याणजी की पेढ़ी ने इसे पालनगंज राजा से खरीद
लिया।
१३- यह कि क्रय के बाद यह पेढ़ी के अन्तर्गत ही रही है एवं वही इसकी व्यवस्था करती रही है।
१४- यह कि सन् १९४६ में बिहार सरकार ने बिहार प्रायवेट फारेस्ट एक्ट १९४६ के अन्तर्गत पर्वत पर स्थित जंगलों का अधिकार लेने हेतु दिनांक १५.२.१९४७ को सूचना-पत्र प्रसारित किया, जिस पर पेढ़ी की ओर से आपत्ति उठाते हुए दिनांक २३.१०.१९४७ को एक स्मरण-पत्र बिहार शासन को प्रस्तुत किया गया।
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