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हमें आपको सम्बोधित करना पड़े तथा यह सम्बोधन न जाने चुनौती का हो या चेतावनी का संघर्ष का हो या सत्याग्रह का। __ माननीय मुख्यमंत्री! शायद आपने जैन समाज को एक कमजोर कौम माना है तथा निर्बल व निस्सहाय समाज के रूप में ग्रहण किया किन्तु हम आपसे निवेदन करते हैं कि आप अपने विचारों में संशोधन करें ठीक है। सागर शांत व मर्यादित होता है किन्तु जब ज्वार उठता है, तूफान आता है, लहरें टकराती हैं तो बड़े-बड़े जहाज भी डगमगा जाते हैं - कहीं आपके राजनीतिक भविष्य की किश्ती भी डगमगा न जाए बस यही चिंता है। वैसे आप साक्षात् देखना चाहें तो जैन समाज भी तैय्यार है।
कल तक हमने अपने हृदयों में आपकी मूर्ति प्रतिष्ठित कर रखी थी, जिसका प्रतिदिन श्रद्धा से हम प्रक्षालन करते थे, क्योंकि हमारा सम्मेतशिखर तीर्थ आपके राज्य में पावन पताका फहराता रहा था, लेकिन न जाने आज क्यों वह मूर्ति खण्डित हो गई है और वह स्तम्भ भी ध्वस्त हो गया। आज आपके प्रति जैन समाज हृदय में श्रद्धा के नाम पर शुन्य भी न है बल्कि आज जैन कवियों के गीत आपको भर्त्सना करते हैं, लेखकों के लेख आपको प्रताड़ते हैं, वक्ताओं के वक्तव्य नाराजगी का इजहार करते हैं। यह सब आपके अपने आदेशों का ही परिणाम है।
आज तक जैन समाज का आंदोलन अत्यंत शांति पूर्वक चलता रहा, लेकिन कृपया ध्यान रखिये कहीं यह शांति तूफान की पूर्व सूचना नहीं हो - ऐसे तूफान की कि जिसमें आपकी किश्ती सागरस्थ हो जाए। बस अधिक क्या लिखू।
आपका ही . शुभचिन्तकों
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