Book Title: Sammetshikhar Jain Maha Tirth
Author(s): Jayprabhvijay
Publisher: Rajendra Pravachan Karyalay

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Page 47
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org देखकर दिल में एक विवादपूर्ण कसक लेकर लौटता है। हम पुनः उसी भूल का परावर्तन तो नहीं कर रहे हैं। इस विषय पर हमें चोकन्ने होकर सोच लेना चाहिए। आज की जनतंत्रिय सरकार में हम अपनी पूर्वकाल में की गई भूलों का भी परिसंस्कार कर उनका सुधार कर सकने में समर्थ हो सकते हैं। यदि हममें एक्य हो। श्री पार्श्वनाथ भगवान, जिन्होंने श्री सम्मेतशिखर तीर्थ पर अपना मुक्ति पथ प्रशस्त करते हुए इस तीर्थराज को गौरवान्वित किया। वे परम आराध्य भगवान हम सबको सद्वद्धि दै, जिससे इस तीर्थ पर व्युत्पन्न अप्रत्याशित राज्य संकट के निवारण कर सकने में हम समर्थ हो सके। Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इस लेख को तैयार करने में श्री शांतिलालजी पदमाजी द्वारा संकलित साहित्य का उपयोग किया गया है अतः उन्हें धन्यवाद देना आवश्यक समझता हूँ। शांतिलालजी ने श्री सम्मेतशिखर की पैदल यात्रा दो बार की है। आपकी धार्मिक अभिरुचि एवं ज्ञान पिपासा अनुमोदनीय है। ■ इन्द्रमल, भगवानजी बागरा विशेष :- क्षत्रिय कुण्ड की जीवन्त स्वामी की प्रतिमा नांदिया (राजस्थान) में स्थापित की गई है। । ब्रह्माणकुण्ड की प्रतिमा ब्राह्मणवाड़ा में और ऋजुवालिका की प्रतिमा नाणा में पावापुरीजी की प्रतिमा दियाणा में स्थापित की गई। ये सब क्षेत्र आबु के निकट में हैं। लोक गीतों में कहा जाता है कि नाणा - दियाणा, नांदिया - जीवत स्वामी वांदिया ॥ ५. सं. १८२२ वर्षे वैशाख सुदि १३ गुरौ सा खुशालचन्देन श्री पार्श्व बिम्बं करापितं प्र. सकल सूरिभिः ॥ ६. देखिये श्री नथमल चंडालिया जयपुर कृत श्री सम्मेतशिखर चित्रावली १- उत्तम श्रावक २- जहाँ पुण्य पुरुषों ने सिद्धपद प्राप्त किये हों, ऐसे तीर्थ सिद्धक्षेत्र कहलाते हैं। ३- श्री ज्ञानविमल सूरि कृत सिद्धगिरि स्तवन ४- श्री राजेन्द्र सूरि पट्टघर आचार्य धनचन्द्रसूरि कृत वीस स्थानक पद पूजान्तर्गत सिद्ध पद पूजा। १- ता. ९.३.१९१८ में यह पहाड़ तीन लाख रुपये में श्री आनन्दजी कल्याणजी पेढ़ी ने खरीदा था । ४४ For Private And Personal ■ सम्मेतशिखर रक्षा ■ विशेषांक १९६४ शाश्वत धर्म से उद्घृत

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