Book Title: Sammetshikhar Jain Maha Tirth
Author(s): Jayprabhvijay
Publisher: Rajendra Pravachan Karyalay

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Page 21
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ART 8 क्या सम्मेतशिखर अभियान में हम इस ओरबड़ सके? । सफलताका मूलमंत्रःआत्मशक्ति का विकास HTTE Post - पू. जैनाचार्य गुरुदेव श्रीमद् विजय राजेन्द्रसूरीश्वरजी ::::::::::::::::::::::::::::::::::::::: आत्म शक्ति ही विश्व की सबसे बड़ी शक्ति है जो पूरी तरह विकास कर लेता है। वही सफलता की और बढ़ सकता है। किसी भी कार्य को करने से पूर्व इसका विकास सबसे महत्वपूर्ण है। । rta pot स्वतंत्रता और आत्म शक्ति जब तक प्रकट न कर ली जाय, तब तक आत्म विश्वास चाहिये वैसा विकास नहीं हो सकता। शास्त्रों का कथन है कि सहनशिलता के बिना संयम के बिना तप और त्याग के बिना आत्म विश्वास होना असंभव है। आत्मविश्वास से ही नर जीवन सफल होता है। जिस व्यक्ति ने नर जीवन पाकर जितना अधिक आत्म विश्वास कर लिया है वह उतना ही अधिक शांति पूर्वक सन्मार्ग के ऊपर आरूढ़ हो सकता है। अतः संयमी जीवन के लिये सर्व प्रथम मन को वश में करना होगा। मन के वश में होने पर इन्द्रियां स्वयं निर्बल हो जायेगी। और मानव प्रगति के पथ पर चलने लगेगा। ___ सत्तारूढ़ होने के लिये लोग चढ़ा-चढ़ी करते हैं। पारस्परिक लढ़ाई कर वैमनस्य पैदा करने के साथ अपने धन का भी दुरुपयोग करते हैं परन्तु यथा भाग्य किसी ही लोटी या बड़ी सत्ता मिल जाती है। तो सत्तारूढ़ होने के बाद अगर जनता का ला नहीं किया और अभियान किया या लोगों की जेब काटकर अपनी जेबे तर, करली तो यह सत्ता का दुरुपयोग ही है। जिस सत्ता को प्राप्त कर दूसरों का उपकार किया जाय, निस्वार्थता से लांच नहीं ली जाय और नीति पथ को भी न छोड़ा जाय वहीं सत्ता का वास्तविक सदुपयोग है। नहीं तो सत्ता को केवल गर्दभ भार या दुर्गति मात्र समझना चाहिए। For Private And Personal

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