Book Title: Sammetshikhar Jain Maha Tirth
Author(s): Jayprabhvijay
Publisher: Rajendra Pravachan Karyalay

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Page 29
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अभिनन्दन उस तीर्थराज को बारम्बार हमारा है . पं. श्री मदनलाल जोशी 'शास्त्री' साहित्यरत्न, मंदसौर पुण्य भूमि यह भारत इसका, कण-कण हमको प्यारा है। इसके चरणों में अभिनन्दन, बारम्बार हमारा है। सागर की यह लहरे जिसका, गौरव गीत सुनाती है। सतरंगी सुरज की किरणे, देख जिसे मुस्काती है ॥ तारों के संग चन्दा राजा, जिस पर अमृत बरसाता है। नई नवेली उषा रानी, देख जिसे हरषाती है॥ सरिता सरवर नदी निर्झर की, कल-कल करती धारा है। उस भारत को शत-शत वन्दन, बारम्बार हमारा है॥ १॥ प्रकृति नटी के पावन मंदिर, की यह पर्वत मालाएं । श्याम सलोना रूप दिखाती, रसवंती घनमालाएं ॥ ये उपजाऊ खेत सांवरे, हरे-भरे औरत नारे । स्नेह दीप की सजा आरती, करती है सुर बालाएं ॥ अखिल विश्व का वरदायक जो केवल एक सहारा है। उस भारत को शत-शत वन्दन, बारम्बार हमारा है ॥ २॥ यह देखो गिरनार तीर्थ की, ध्वजा गगन में लहराती। तीर्थकर श्री नेमीनाथ की, निर्मल गाथाएं गाती॥ महासती राजुल की स्नेहील, स्मृतियां जिसमें जाग रही। संयम व्रत के साथ अहिंसा, की शिक्षाएं सिखलाती॥ पलभर में महलों को तजकर, जिसने नेमी पुकारा है। उस भारत को शत-शत वन्दन, बारम्बार हमारा है ॥ ३ ॥ शत्रुजय, गिरी ने कामादिक, जीते रिपु के दल भारी। For Private And Personal

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