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जिसकी महिमा से विस्मित है, अब भी यह पृथ्वी सारी ॥ आदिकाल से आदिश्वर की, छटा अभी भी वैसी है। शत्रुजय जय आदिनाथ की जय-जय करते नर नारी ॥ जिसने उसको भजा कि उसकी, टुटी जग की कारा है। उस भारत को शत-शत वन्दन, बारम्बार हमारा है॥ ४ ॥ पूरब पश्चिम उत्तर दक्षिण, तीर्थ बने इसके सारे। गुजर, बंग, मनोहर मालव, मोहक मरूधर मतवारे ॥ . इसकी मिट्टी के कण-कण में, उस अखिलेश्वर की छाया । जिसने लाखो और करोड़ो, को भवसागर से तारे ॥ देवी ने भी जिसकी रज को निज मस्तक पर धारा है। उस भारत को शत-शत वन्दन, बारम्बार हमारा है ॥ ५ ॥ भारत मां का हृदय सुहाना, मस्त मालवा मनहारी । मोहनखेड़ा तीर्थ बना है, जिस पर हम सब बलिहारी ॥ दिव्य प्रभा श्री राजेन्द्र सूरि की, जहां आज भी इटलाता। जिसके सातो कोष देखकर, मुग्ध हुई जगती सारी। जो यतीन्द्र बनने का साधन, विद्या धाम हमारा है। उस भारत को शत-शत वन्दन, बारम्बार हमारा है॥ ६ ॥ अब देखो उस ओर कि जिसका, यह इतिहास पुराना है, कोई देखे या ना देखे, जाना पहचाना है। हो सम्मेत शिखर पर जिसके, तीर्थकर निर्वाण गये, वह सम्मेत शिखर सर्वोत्तम, अनुपम तीर्थ सुहाना है। जिसका कण-कण हम सबके, इन प्राणों से प्यारा है। अभिनन्दन उस तीर्थराज को, बारम्बार हमारा है।। ७ ॥
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