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बनी हुई हैं, जिनका प्रत्येक जिर्णोद्धार में सदैव संस्कार होता रहा है। सम्मेतशिखर गिरि के सर्वोच्च अंग पर (सुवर्णभद्र कुट) श्री पार्श्वनाथ प्रभु की निर्वाण स्थली है, जहाँ उनकी चरण पादुकाएँ स्थित देहरी पर एक रमणीय विशाल शिखरबद्ध मन्दिर बना हुआ है। बीस तीर्थंकर छत्रियों के उपरान्त शुभ गणधर भगवान की मोक्ष स्थली पर एक चरण पादुकामय छत्री निर्मित है, इनके उपरान्त श्री ऋषभ चन्द्रानन वारिषेण और वर्द्धमान नामक शाश्वत तीर्थंकर चतुष्टय की चार स्थापना तीर्थमय पादका वाली चार छत्रियाँ हैं और श्री ऋषभदेव. श्री वासपज्य, श्री नेमीनाथ और श्री महावीर प्रभु के भी चार स्थापना तीर्थमय चार पादुका युक्त छत्रियाँ विद्यमान है। एक छत्री श्री गौतमस्वामी भगवान की स्थापना तीर्थ रूप है, जिसमें साधु भगवंता की अनेक चरण पादुकाएँ चिह्नित हैं।
ऐसी छत्री संख्या तीस है और जल मन्दिर मिलाकर कुल इकतीस यात्रा स्थल। सभी छत्रियों में जिनेश्वर एवं गणधरों की चरण पादुकाएँ विराजमान हैं, जो तीर्थ की सादगी एवं अर्चना विभेद को सुरक्षित रखे हुए है। सम्मेतशिखर की घाटी में जहाँ विपुल वन सम्पदा है और अपूर्व शांत सुरम्य वातावरण में एक जल मन्दिर निर्मित है, जिसका जीर्णोद्धार श्री सकल सूरि के उपदेश से शेट खुशालचंदजी द्वारा करवाया गया था। मूलनायक श्री पार्श्वनाथ बिंब पर तद्विषयक लेख उत्कीर्ण
__(५) इसी मन्दिर में सहस्रफण पार्श्वनाथ की एक विशाल मूर्ति है, जिस पर भी सं. १८२२ का शिला लेख है। छत्रियाँ, जो समूचे पर्वत पर जगह-जगह स्थित है, उनमें स्थित चरण पादुकाओं पर सं. १८२५ से सं. १९३१ तक के शिला लेख उत्कीर्ण हैं।
(६) स. १८२५ के लगभग जो उद्धार हुआ, उसका श्रेय श्री सकलसृरि के उपदेश से शेठ श्री खुशालचंदजी, सुगालचंदजी इत्यादि को है और १९३१ के लगभग जीर्णोद्धार कार्य मल्लधारी पूर्णिमाविजय गच्छ भट्टारक जिनशांतिसागरसूरि के उपदेश से हुआ था। ___आचार्य विजय धर्मसूरि के शिष्य सराक जाति उद्धारक उपाध्याय श्री मंगल विजयजी के उपदेश से कलकत्ता जैन संघ ने इस तीर्थ का उद्धार करवाया था। अंतिम उद्धार श्री सागरानंद सूरि की शिष्या विदुषी श्री रंजन श्रीजी के उपदेश से संघ द्वारा करवाया गया। इस जीर्णोद्धार में श्री सम्मेतशिखर तीर्थ के समस्त ट्रंकों
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