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शुभ सन्देश
(दिनांक २८ सितम्बर १९६४)
धर्म बन्धुओं! 'धर्म निरपेक्ष राज्य' की घोषणा के साथ प्रत्येक नागरिक की धार्मिक स्वतंत्रता को अक्षुण्ण रखने के प्रावधान ने प्रजातंत्र को आदर्शजन्य बनाया है । इस देश के कर्णधारों ने हर देशवासी को यह स्वतंत्रता मौलिक अधिकार के रूप में दी किन्तु खेद है जैन समाज के साथ उसकी रीति-नीति ठीक विपरीत रही ।
आज जहां चैत्यालय डकैतियों के शिकार बन रहे हैं - जैन मूर्तियों की चोरियां साधारण-सी बात हो गई है वहीं शासकीय प्रस्ताव भी धार्मिक संस्कार भूत जीवन को ध्वस्त करने में सतत् संरत् है। भगवान महावीर के जन्म दिवस की एक छुट्टी भी केन्द्रिय सरकार नहीं स्वीकार कर रही है। कुछ राज्यों ने तो बालकों, ग्रामीणों व स्त्रियों को अण्डे वितरण का कार्यक्रम बना कर हमारी संस्कृति पर भयंकर कुठाराघात किया है। मंदिरों में बम विस्फोट तक हुए हैं - किन्तु जैनों के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा करने में यह शासन पूर्ण असफल रहा है।
बिहार सरकार द्वारा पवित्र तीर्थ श्री सम्मेतशिखरजी को जिस अनुचित, अवैधानिक तथा अप्रजातांत्रिक ढंग से लेण्ड रिफार्म एक्ट के अन्तर्गत अधिकृत किया गया है, उससे एक नवीन विपत्ति उठ खड़ी हुई है। श्री सम्मेतशिखरजी की महत्व हमारे प्राणो से भी अधिक है, जिसकी पवित्रता को बचाये रखना हमारा पुनित कर्तव्य है । यह तीर्थ २० तीर्थङ्कर देवों तथा १२८० गणधर भगवन्तों को निर्वाण भूमि एवं अनन्त सिद्धों की मोक्षभूमि है - एक-एक कण इसका हमारे लिये वंदनीय, पूजनीय तथा अर्चनीय है। आज भी प्रतिवर्ष लाखों यात्री इसकी यात्रा द्वारा अपने आपको धन्य बनाते हैं तथा इसके आध्यात्मिक वातावरण में लयलीन हो आत्मविभोर हो जाते हैं।
यह तीर्थ हमारे आत्मसाधना रूपी लक्ष्य का प्रतीक है - यही नहीं जैन समाज की क्रय की हुई अपनी सम्पत्ति है । इस पर हस्तक्षेप जैन मात्र के अधिकारों पर हस्तक्षेप है जो अत्यन्त असहनीय है।
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