Book Title: Sammetshikhar Jain Maha Tirth
Author(s): Jayprabhvijay
Publisher: Rajendra Pravachan Karyalay

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Page 16
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कई महीनों के बाद ग्रामानुग्राम विहार करते-करते पू. आचार्य देव के साथ शिवभूति मुनि रथवीरपुर नगर के दीपक उद्यान में पधारे, ऐसी बात सुनकर राजा स्वयं सपरिवार दर्शन वंदन करने उद्यान में आया एवं राज मंदिर पधारने की आग्रहपूर्ण विनती की। शिवभूति मुनि भी राजा की विनंती ध्यान में लेकर गुरु की आज्ञा से राजा के साथ राज मंदिर गया, राजा ने भी बड़े आदर के साथ स्वागत किया एवं बहुमूल्य रत्नकंबल शिवभूति मुनि को दिया। शिवभूति मुनि नहीं चाहते हुए भी राजा ने अति आग्रह से रत्नकंबल दिया। आखिर शिवभूति मुनि रत्नकंबल लेकर उद्यान की ओर चला, रास्ते में बहुमूल्य रत्नकंबल ने शिवभूति मुनि के चित्तवृत्ति में राग, मोह उत्पन्न किया। रागान्ध शिवभूति मुनि ने रत्नकंबल गुरुदेव के चरणों में रखने के बजाए अपने खुद के पास ही रख लिया और मोहवश कोई ले लेगा या फट जाएगी ऐसा सोचकर शिवभूति मुनि ने उस कंबल को न तो उपयोग में लिया और न ही किसी को देता किन्तु कपड़े में बाँधकर अपने पास ही हमेशा रखता। ___ पू. गुरुदेव श्री ने शिवभूति मुनि की ऐसी चित्तवृत्ति को देखकर एवं शिवभूति मुनि का हित कैसे हो, ऐसा सोचकर जब कोई कार्य से शिवभूति मुनि उपाश्रय से बाहर गए तब पू. आचार्य देव ने एक साधु को कहा कि शिवभूति की वह रत्नकंबल यहाँ लाओ, शिष्य ने ऐसा ही किया, तब पू. आचार्य देव ने उस रत्नकंबल के टुकड़े-टुकड़े करके सभी साधुओं को बैठने के लिए आसन के रूप में दे दिए। __ शिवभूति मुनि जब उपाश्रय आया एवं रत्नकंबल के टुकड़े-टुकड़े देखकर मन में बहुत ही रोष आया, किन्तु पू. गुरुदेव के सामने कुछ बोल न सका। ___कहावत है- जब तबीयत अच्छी नहीं होती, तब अच्छा दूधपाक भी दुःखदायक होता है। इसी तरह मोहांध शिवभूति मुनि को गुरुदेव का यह हितकर कार्य भी बहुत दुःख देनेवाला हुआ। __ जिस तरह बरसात के दिनों शीत से काँपते हुए बन्दर को हित शिक्षा देने वाला सुघरी पक्षी का बन्दर ही दुश्मन होकर उसका माला-घर तोड़-फोड़ डाला। इसी तरह अब शिवभूति मुनि पू. गुरुदेव के प्रति मन में रोष करता हुआ पू. गुरुदेव को पाठ पढ़ाने की सोचने लगा। एक दिन पू. गुरुदेव श्री आर्यकृष्णाचार्यजी म. जिन सिद्धान्त का प्रवचन दे रहें थे, वहाँ जिनकल्प वर्णनाधिकार प्रसंगे कहा कि- स्थविर कल्प में रहकर For Private And Personal

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