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त्रिकाल पूजा-विधि
(१) प्रातः काल की पूजा :- रात्रि-संबंधित पापो का नाश करती है । स्वच्छ सूती वस्त्र (सामायिक, पौषध, प्रतिक्रमण में उपयोग किये जाने वाले वस्त्रो के अतिरिक) धारण करना चाहिए । दो हाथ + दो पैर + मुख = ५ अंगो की सचित निर्मल जल से शुद्धि करनी चाहिए। स्वच्छ थाली मे धूप के साथ धूपदानी, फानूस युक्त दीपक, अखंड चावल, रसवंती मिठाई, ऋतु के मुताबिक उत्तम फल, वास (क्षेप) चूर्ण को रखने के लिए सोना-चांदी या तांबेपीतल की डिब्बी, सुगंधित द्रव्यों से सुवासित वास (क्षेप) चूर्ण और वासचूर्ण को पूजा के समय संग्रहित करने के लिए एक चांदी की कटोरी ग्रहण करें।
जिनमंदिर के परिसर मे प्रवेश करने के पूर्व अल्प जल से पाँवों के तलवों की शुद्धि करें। परिसर में प्रवेश करते ही 'प्रथम निसीहि ' बोलें । प्रभुजी का मुख दर्शन होते ही अर्ध- अवनत होकर 'नमो जिणाणं' बोले । प्रभुजी को अति बारीकाई से निरीक्षण करके अपने हृदय में स्थापित करके जयणा पूर्वक तीन प्रदक्षिणा देनी चाहिए। मूलनायक प्रभुजी के सन्मुख आते ही भाववाही स्तुतियाँ बोलनी चाहिए।
प्रभुजी के दर्शन न हों, ऐसे स्थल पर जाकर आठ पडवाला मुख-कोश बांधकर वासपूर्ण डिब्बी में से चांदी की कटोरी में वासचूर्ण जरुरमुताबिक ग्रहण करें। अपने वस्त्र के स्पर्श से अशुद्ध हुए हाथों को शुद्ध जल से स्वच्छ कर गर्भगृह के पास आना चाहिए ।
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