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शुद्ध पानी की बाल्टी में से कलश भरके उससे चन्दन आदिको गीला कर दूर करना चाहिए। विशेष शुद्धि के लिए तथा बासी चन्दन को दूर करने के लिए यदि को आवश्यक हो तो कोमलता पूर्वक वाला-कूची का प्रयोग करना चाहिए। सादा पानी आदि के द्वारा एकत्रित निर्माल्य को पबासन पर हाथ फिराकर छेद की तरफ ले जाना चाहिए। गर्भद्वारके बाहरजाकर अस्वच्छहाथों को जयणा पूर्वक स्वच्छ करधूप से सुगन्धित करना चाहिए। पंचामृत को सुगन्धित कर कलश में भरकर मौन पूर्वक मस्तक से प्रक्षाल करना चाहिए। शुद्ध पानी को भी सुगन्धित कर कलश में भरकर मौनपूर्वक मस्तकसे प्रक्षाल करना चाहिए। प्रभु के अंग पोंछने वाले महानुभाव को शुद्ध जल से प्रक्षाल करते समय प्रभुजी के सर्वांग को कोमलता से स्पर्श करना चाहिए। शरीर-वस्त्र-पबासन-नाखून-पसीना आदि के स्पर्श के दोष से बचते हुए कोमलता पूर्वक प्रभुजी के अंगों को अंग-लुंछन से पौंछना चाहिए। अंग-लुंछन करने से पहले पबासन को साफ करने के लिए 'पाटपौंछना' का प्रयोग, इस प्रकार करना चाहिए कि भगवान को स्पर्श न करे।
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