Book Title: Sachitra Jina Pooja Vidhi
Author(s): Ramyadarshanvijay, Pareshkumar J Shah
Publisher: Mokshpath Prakashan Ahmedabad

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Page 81
________________ उर्ध्वगति की ओर जाती देखनी चाहिए। धूपकाठी हाथ में न रखकर ठीक तरह से धूपदानी में रखकर पूजा करनी चाहिए। धूपपूजा करते समय बोलने योग्य दुहा : (पुरुष पहले नमोऽर्हत्... बोले) अमे धूपनी पूजा करीएरे,ओमनमान्या मोहनजी। अमे धूपघटा अनुसरीएरे,ओमनमान्या मोहनजी। प्रभु नहि कोई तमारी तोले रे,ओ मनमान्या मोहनजी। प्रभु अंते छेशरण तमाकैरे,ओमनमान्या मोहनजी। "ध्यान घटा प्रगटावीए, वाम नयन जिन धूप। मिच्छत्त दुर्गन्ध दूर टले, प्रगटेआत्म स्वरूप॥" "ॐ ह्रीँ श्री परम पुरुषाय परमेश्वराय जन्म-जरा-मृत्यु-निवारणाय श्रीमते जिनेन्द्राय धूपं यजामहे स्वाहा"(२७ डंका बजाएँ) अर्थ : प्रभुजी की बांई आँख की ओर धूप को रखकर उस धूप में से निकलनेवाले धुएँ की घटा के समान हम सब ध्यान की घटा प्रगट करें, जिससे ध्यान घटा के प्रभाव से मिथ्यात्व रूपी दुर्गन्ध नष्ट हो तथा आत्मा का शुद्ध स्वरूप प्रगट हो।(धूपपूजा करते समय नवकार-स्तुति-स्तोत्र आदिकुछ भी नहीं बोलना चाहिए।) धूपपूजा करने के बादधूपदानी को प्रभुजी से उचित दूरी पर रखे। 66)

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