Book Title: Sachitra Jina Pooja Vidhi
Author(s): Ramyadarshanvijay, Pareshkumar J Shah
Publisher: Mokshpath Prakashan Ahmedabad

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Page 122
________________ जमीन पर नहीं गिरना चाहिए। न्हवण जल को दाहिनी तथा बांई आँख को स्पर्श करते समय यह भावना रखनी चाहिए कि "मेरी आँखों में रहनेवाली दोष दृष्टि तथा काम विकार इसके प्रभाव से दूर हो।" उसके बाद दोनों कानों में स्पर्श करते हुए ऐसी भावना रखनी चाहिए कि "मेरे अन्दर रहनेवाली परदोषश्रवण तथा स्वगुणश्रवण के दोष दूर होकर जिनवाणी के श्रवण मे मेरी रुचि जाग्रत हो।" उसके कंठ में स्पर्श करते हुए यह भावना रखनी चाहिए कि "मुझे स्वाद पर विजय प्राप्त हो, परनिन्दा-स्वप्रशंसा के दोष को निर्मूल होने के साथ गुणीजनों के गुण गाने की सदा तत्परता मिले।" उसके बाद हृदय में स्पर्श करते हुए ऐसी भावना रखनी चाहिए कि “मेरे हृदय में सभी जीवों के प्रति मैत्रीभाव उत्पन्न हो तथा हे प्रभुजी ! आपका तथा आपकी आज्ञा का सदैव वास बना रहे।" तथा अन्त में नाभिकमल में स्पर्श कराते हुए यह भावना रखनी चाहिए कि "मेरे कर्ममल मुक्त आठ रुचक प्रदेश की भांति सर्व-आत्मप्रदेश सर्वथा सर्व कर्म मल मुक्त हो।" ऐसी भावना केशर तिलक अपने अंगो मे करते समय भी रखनी चाहिए। न्हवण जल नाभि के नीचे के अंगों में नहीं लगानी चाहिए। (107

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