Book Title: Sachitra Jina Pooja Vidhi
Author(s): Ramyadarshanvijay, Pareshkumar J Shah
Publisher: Mokshpath Prakashan Ahmedabad

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Page 111
________________ मेहाए, धिइए, धारणाए, अणुप्पेहाए, वड्ढमाणीए ठामि काउस्सग्गं ॥३॥ अन्नत्थ सूत्र • अन्नत्थ उससिएणं, नीससिएणं खासिएण छीएणं, जंभाईएणं, उड्डुएणं, वायनिसग्गेणं, भमलिए पित्तमुच्छाए ॥१॥ सुहुमेहिं अंग संचालेहिं, सुहुमेहिं-खेल संचालेहिं, सुहुमेहिं दिट्ठि संचालेहिं ॥ २ ॥ एवमाइ एहिं आगारेहिं, अभग्गो, अविराहिओ हुज्ज मे काउस्सग्गो ॥ ३ ॥ जाव अरिहंताणं भगवंताणं नमुक्कारेणं न पारेमि ॥ ४ ॥ ताव कायं मोणेणं, ठाणेणं झाणेणं अप्पाणं वोसिरामि ॥५ ॥ (जिन मुद्रा में नीचे बताई विधि अनुसार एक बार श्री नवकार मंत्र का काउस्सग्ग पूर्ण करके (पुरुष नमोऽर्हत् बोल के ) थोय बोलनी चाहिए।) काउस्सग्ग करने की विधि • काउस्सग्ग १९ दोष रहित तथा शरीर को एकदम स्थिर रखकर, दृष्टि प्रभु के समक्ष अथवा नाक की नोंक की ओर रखनी चाहिए । होठ सहज ही एक दूसरे को स्पर्श करे, इस प्रकार बंद रखना चाहिए। जीभ को बीच में अथवा तालु में स्थिर रखना चाहिए। दांतों की दोनों पंक्तियाँ एक दूसरे को स्पर्श न कर सके, इस प्रकार रखकर काउसग्ग करना चाहिए। 96 24

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