Book Title: Sachitra Jina Pooja Vidhi
Author(s): Ramyadarshanvijay, Pareshkumar J Shah
Publisher: Mokshpath Prakashan Ahmedabad

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Page 115
________________ वत्तियागारेणं, पाणहार, पोरिसिं, साढपोरिसिं, सूरे उग्गए पुरिमड्डुं, अवड्डुं मुट्ठिसहिअं, पच्चक् खाइ ( पच्चक् खामि ), अन्नत्थणाभोगेणं, सहसागारेणं, पच्छन्नकालेणं, दिसामोहेणं, साहू - वयणेणं, महत्तरागारेणं, सव्वसमाहि-वत्तियागारेणं, पाणस्स लेवेण वा, अलेवण वा, अच्छेण वा, बहुलेवेण वा, ससित्थेण वा, असित्थेण वा वोसिरइ ( वोसिरामि ) । धारणा अभिग्रह धारणा अभिग्गहं पच्चक्खाइ ( पच्चक्खामि ) अरिहंतसक्खियं, सिद्ध-सक्खियं साहु-सक्खियं, देव-सक्खियं, अप्प - सक्खियं, अन्नत्थणाभोगेणं, सहसागारेणं, महत्तरागारेणं, सव्वसमाहि-वत्तियागारेणं वोसिरइ ( वोसिरामि ) । देशावगासिक देसावगासियं, उवभोगं परिभोगं, पच्चखाइ ( पच्चक्खामि ) अन्नत्थणाभोगेणं, सहसागारेणं, महत्तरागारेणं, सव्वसमाहिवत्तियागारेणं, वोसिरइ ( वोसिरामि ) । मुट्ठिसहिअं मुट्ठिसहिअं पच्चक्खाइ ( पच्चक्खामि ) अन्नत्थणा - भोगेणं, सहसागारेणं, महत्तरागारेणं, सव्वसमाहि-वत्तियागारेणं, वोसिरइ (वोसिरामि) । 100 142

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