Book Title: Sachitra Jina Pooja Vidhi
Author(s): Ramyadarshanvijay, Pareshkumar J Shah
Publisher: Mokshpath Prakashan Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 93
________________ सांसारिक फल मांगीने, रडवडीयो बहु संसार । अष्टकर्म निवारवा, मांगू मोक्ष-फळ सार ॥ चिहुं गति भ्रमण संसारमां, जन्म-मरण - जंजाल । पंचमी गति विण जीवने, सुख नहि तिहुं काल ॥ देव गति 17 मनुष्य गति तिर्यंच गति नरक गति ४ नोट : साथिया दर्शन-ज्ञान- चारित्र के तीन ढेर के ऊपर कितने भी संख्या में करनी हो, तो भी नहीं करना चाहिए। विशेष विधि के लिए साथिया करने वाले नित्यक्रम के अनुसार एक साथिया अतिरिक्त करें । अष्टमंगल : १. स्वस्तिक, २. दर्पण, ३. कुंभ, ४. भद्रासन, ५. श्रीवत्स, ६. नंदावर्त, ७. वर्धमान तथा ८. मीनयुगल । • मूलविधि के अनुसार प्रभुजी के समक्ष अष्टमंगल का आलेखन प्रतिदिन करना चाहिए। यदि यह सम्भव न हो तो अक्षत पूजा के समय अष्टमंगल की पाटली प्रभुजी के समक्ष रखकर अष्टमंगल के आलेखन का संतोष मानना चाहिए । पाटली की केसर-चंदन पूजा नहीं की जा सकती है । अक्षतपूजा के दरम्यान अन्य कोई भी क्रिया अथवा अन्यत्र दृष्टि भी नहीं करनी चाहिए । मंदिर में अनिवार्य कारण के बिना कटासणा बिछाकर अथवा बिना कटासणा के पालथी मारकर बैठना, यह आशातना है । 78

Loading...

Page Navigation
1 ... 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123