Book Title: Sachitra Jina Pooja Vidhi
Author(s): Ramyadarshanvijay, Pareshkumar J Shah
Publisher: Mokshpath Prakashan Ahmedabad

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Page 92
________________ इसकी रचना करते समय मधुर स्वर में बोलना चाहिए : 'सिद्धशिलानी ऊपरे, हो मुज वास स्वीकार...'। सबसे नीचे स्थित ढेरवाले चावल को अनामिका ऊँगली से चौकोर आकार में फैलाना चाहिए । परन्तु ढेर के बीच में गोलाकार कर चूड़ी के समान कभी नहीं बनाना चाहिए। ऐसा करने से भवभ्रमण बढ़ता है। यदि सम्भव हो तो नंदावर्त प्रतिदिन करना चाहिए। क्योंकि यह अत्यन्त लाभदायी तथा मंगलकारी कहलाता है। साथिया (स्वस्तिक) करने की भावना हो तो चावल का चौकोर ढेर करने के बाद चारों दिशाओं में एक-एक रेखा कर साथिया का आकार बनाना चाहिए । उसमें पहली पंखुड़ी दाहिनी ओरऊपर की ओरमनुष्य गति की करनी चाहिए। दूसरी बांई ओर उपर की ओर देवगति की करनी चाहिए । तीसरी बांई ओर नीचे की ओरतिर्यंचगति की और चौथी दाहिनी ओर नीचे की ओर नरकगति की करनी चाहिए। मात्र स्वस्तिक बनाने की भावनावाले महानुभाव साथिया के चारों दिशाओं की पंखुड़ियों को किसी भी प्रकार से मोड़ना नहीं चाहिए।卐 इस प्रकार करना उचित नहीं है। इस प्रकार करना चाहिए। साथियाअथवानंदावर्तकी रचना करते समयदोहे बोलने चाहिए: "अक्षत पूजा करता थकां, सफल करुं अवतार। फल मागूंप्रभुआगळे,तार तार मुज तार। (77)

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