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पूजा की सामग्री साथ में रखकर ध्यान पूर्वक जयणा का पालन करते हुए प्रदक्षिणा देनी चाहिए। प्रदक्षिणा नहीं देनी, एक ही प्रदक्षिणा देनी, अधूरी प्रदक्षिणा देनी अथवा पूजा करने के बाद प्रदक्षिणा देनी, यह अविधि कहलाती है।
प्रदक्षिणा का दोहा काल अनादि अनंतथी, भव भ्रमण नो नहि पार, ते भव भ्रमण निवारवा, प्रदक्षिणा दऊंत्रण वार . १ भमती मां भमता थकां, भव भावठ दूर पलाय, दर्शन ज्ञान चारित्र रूप, प्रदक्षिणा त्रण देवाय .२ जन्म मरणादि सवि भय टळे, सीझे जो दर्शन काज, रत्नत्रयी प्राप्ति भणी, दर्शन करो जिनराज .३ ज्ञान वडुं संसारमा, ज्ञान परमसुख हेत, ज्ञान विना जग जीवडा, न लहे तत्त्व संकेत . ४ चय ते संचय कर्मनो, रिक्त करे वळी जेह, चारित्र नियुक्तिए कह्यु, वंदो ते गुण गेह .५ दर्शन ज्ञान चारित्र ए, रत्नत्रयी शिवद्वार, त्रण प्रदक्षिणा ते कारणे, भवदुःख भंजनहार .६
प्रदक्षिणा देने के बाद प्रभुजी सन्मुख मंदस्वर में भाववाही स्तुति बोलनी चाहिए।
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