Book Title: Sachitra Jina Pooja Vidhi
Author(s): Ramyadarshanvijay, Pareshkumar J Shah
Publisher: Mokshpath Prakashan Ahmedabad

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Page 47
________________ भाववाही - स्तुतियाँ १. दर्शनं देव-देवस्य, दर्शनं पाप-नाशनम् । दर्शनं स्वर्ग-सोपानं, दर्शनं मोक्ष-साधनम् ॥ २. जेना गुणोना सिंधुना, बे बिंदु पण जाणुं नही, पण एक श्रद्धा दिल महि, के नाथ सम को छे नही; जेना सहारे क्रोडो तरीया, मुक्ति मुज निश्चय सही, एवा प्रभु अरिहंतने, पंचांग भावे हुं नमुं .... ३. संसार घोर अपार छे, तेमां डूबेला भव्यने, हे तारनारा नाथ ! शुं भूली गया निजभक्तने ; मारे शरण छे आपर्नु, नवि चाहतो हुं अन्य ने, तो पण प्रभु मने तारवामां, ढील करो शा कारणे ? ४. जे द्रष्टि प्रभ दरिसण करे, ते द्रष्टिने पण धन्य छे, जे जीभ जिनवरने स्तवे, ते जीभने पण धन्य छे ; पीवे मुदा वाणी सुधा, ते कर्ण युगने धन्य छे, तुज नाम मंत्र विशद धरे, ते हृदय ने पण धन्य छे. ५. सुण्या हशे, पूज्या हशे, निरख्या हशे पण को क क्षणे, हे जगत बंधु ! चित्तमां, धार्या नहि भक्ति पणे; जनम्यो प्रभु ते कारणे, दुःखपात्र आ संसारमां, आ भक्ति ते फलती नथी, जे भाव शून्य आचारमां. (32)

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