Book Title: Sachitra Jina Pooja Vidhi
Author(s): Ramyadarshanvijay, Pareshkumar J Shah
Publisher: Mokshpath Prakashan Ahmedabad

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Page 28
________________ आलेखन मन्त्रोच्चारपूर्वक करना चाहिए। अक्षत से दर्शन-ज्ञान-चारित्र की प्रतिकृति तथा उसके ऊपर सिद्धशिला का आलेखन करना चाहिए। मन्त्रोच्चार करते हुए सुमधुर मिठाईयों के थाल से स्वस्तिक के ऊपर नैवेद्य चढ़ाना चाहिए। ऋतु के अनुसार उत्तम फलों की थाल में से मन्त्रोच्चार करते हुए सिद्धशिला पर फल चढ़ाना चाहिए। अंगपूजा तथा अग्रपूजा की समाप्ति के रूप में तीसरी बार तीन बार निसीही बोलना चाहिए। एक खमासमण देकरईरियावहियं...से लोगस्स तक उच्चारण कर तीन बार खमासमण देना चाहिए। योगमुद्रा में भाववाही चैत्यवन्दन करते हुए भगवान की तीन अवस्थाओं का स्मरण करना चाहिए। शास्त्रीय रागों के अनुसार प्रभुगुणगान तथा स्वदोष गर्भित बातें स्तवन के द्वारा प्रगट करनी चाहिए। इसके बाद धीरे-धीरे भगवान की ओर अपनी पीठ न हो, इस प्रकार बाहर निकलते हुए घंटानाद करना चाहिए। मंदिर के बरामदे में पहुँचकर प्रभुजी की भक्ति के आनन्द का स्मरण करना चाहिए। प्रभुजी की भक्ति का आनन्द तथा प्रभुजी के विरह का विषाद साथ रखकर जयणापूर्वक घर की ओर प्रस्थान करना चाहिए। पू. साधु-साध्वीजी भगवंत तथा पौषधार्थी स्त्री-पुरुष ही निकलते हुए आवस्सही'का उच्चारण करें। 13

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