Book Title: Sachitra Jina Pooja Vidhi
Author(s): Ramyadarshanvijay, Pareshkumar J Shah
Publisher: Mokshpath Prakashan Ahmedabad

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Page 19
________________ चाहिए । • ईरियावहियं सहित चैत्यवंदन करके पच्चक्खाण लेकर एक खमासमण देकर 'जिन - भक्ति करते समय मुझसें जो कुछ भी अविधि- आशातना हुइ हो, तो वह सभी ही मन-वचन काया से मिच्छामि दुक्कडं' मुठ्ठी लगाकर बोलना चाहिए । • जिनमंदिर से बाहर निकलते समय प्रभुजी को अपनी पीठ न दिखे, वैसे बाहर निकलते हुए घंट के पास आना चाहिए । बाए हाथ को हृदय के मध्यस्थान पर स्थापन कर दाहिने हाथ से तीन बार घंटनाद करना चाहिए । • जिनमंदिर के चबूतरे के पास आकर, वहाँ बैठकर प्रभुजी की भक्ति से उत्पन्न हुए आनंद को बार-बार याद करना और प्रभुजी का अब विरह होगा, ऐसी हृदय द्रावक अपरंपार वेदना का अनुभव करते हुए, उपाश्रय की ओर निर्गमन करना चाहिए । उपाश्रय में पूज्य गुरुभगवंतों को गुरुवंदन करके यथाशक्ति पच्चक्खाण लेना चाहिए। (विशेष सूचना :- सुबह से दोपहर तक प्रभुजी के दर्शन करने वाले महानुभावों को उपर्युक्त सभी क्रियाएँ करनी चाहिए । शाम को या सूर्यास्त के बाद दर्शन करने जाने वाले महानुभावों को केशर तिलक, तीन प्रदक्षिणा, घंटनाद, दर्पण-अक्षतनैवेध-फल पूजा को छोडकर सभी क्रियाएँ करनी चाहिए।) 4

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