________________
रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम्
{ सम्बंध
को माननेवाले अनेक ऐसे प्रवीणवादी जोकि ग्रंथ और अर्थके निरूपण करनेमें अत्यंत कुशल हैं, वे मिलकर प्रयत्न करनेपर भी इस अरहंत प्ररूपित मोक्षमार्गको अथवा उसके बोधक श्रुतको अभिभूत-पराजित-तिरस्कृत-बाधित नहीं कर सकते ।
भावार्थ-तीर्थकर केवली भगवान्का उपदिष्ट आगम प्रशस्त अनंत विषयोंका युक्तिपूर्ण प्रतिपादन करनेवाला और सुखका साधक तथा दुःखका बाधक है। यही कारण है, कि एकान्तवादियोंके द्वारा चाहे वे कैसे भी ग्रंथोंकी रचना करनेवाले और अर्थका व्याख्यान करनेवाले अथवा दोनों ही विषयोंमें कुशल क्यों न हों, यह श्रुत विजित नहीं हो सकता । सबके सब वादी मिलकर भी इसको जीत नहीं सकते । क्या सर्यको कोई भी प्रकाश अभिमत (पराजित) कर सकता है।
इस प्रकार अंतिम तीर्थकर भगवान् महावीर और उनकी देशनाका महत्त्व उद्घोषित करके उनको नमस्कार करते हुए वक्ष्यमाण विषयकी प्रतिज्ञा करते हैं--
कृत्वा त्रिकरणशुद्धं तस्मै परमर्षये नमस्कारम् । पूज्यतमाय भगवते वीराय विलीनमोहाय ॥ २१ ॥ तत्त्वार्थाधिगमाख्यं बह्वथं संग्रहं लघुग्रंथम् ।।
वक्ष्यामि शिष्यहितमिममर्हद्वचनैकदेशस्य ॥ २२ ॥ अर्थ--मोह शत्रुको सर्वथा नष्ट करनेवाले और सर्वोत्कृष्ट पूज्य उक्त परम ऋषिश्री वीरभगवान्को मैं--ग्रन्थकार अपने मन वचन और काय इन तीन करणोंको शुद्ध करके नमस्कार कर तत्त्वार्थाधिगम नामक ग्रंथका निरूपण करूँगा। यह ग्रंथ शब्द-संख्याके प्रमाणकी अपेक्षा अति अल्प परन्तु अर्थकी अपेक्षा विपुल-बड़ा होगा । इसमें महान और प्रचुर विषयोंका संग्रह किया गया है । इसकी रचना केवल शिष्योंका हित सिद्ध करनेके लिये ही है । इसमें अरहंत भगवान्के वचनोंके एकदेशका संग्रह किया गया है।
भावार्थ--ग्रंथकारको अपने वचनोंकी प्रामाणिकता प्रकट करनेके लिये, यह बताना अवश्यक है, कि हम जो कुछ लिखेंगे, वह सर्वज्ञके उपदेशानुसार ही लिखेंगे, अतएव उन्होंने यहाँपर यह बात दिखलाई है, कि अरहंत भगवान्के उपदेशके एकदेशका ही इसमें संग्रह किया गया है। तथा इस ग्रंथकी बह्वर्थ और लघुग्रंथ इन दो विशेषणोंके द्वारा आचार्यने सूत्ररूपता प्रकट की है, और इस ग्रंथमें जिस विषयका वर्णन करेंगे, वह उसके नामसे ही प्रकट है, कि इसमें तत्त्वार्थोंका
१--जो क्लेश-राशिको नष्ट करते हैं, उन्हें ऋषि कहते हैं- “रेषणात् क्लेशराशीनामृषिः प्रोक्तः "यशस्तिलकचम्पू-सोमदेवसूरी।
२-कारिकामें “ अहंद्वचनैकदेशस्य " यह जो पद आया है, उसका अर्थ इसी कारिकाके अर्थके साथ यहाँ पर लिखा है। परन्तु इस पदका अर्थ आगेकी कारिकाके साथ भी जुड़ता है, इसलिये वह भी अर्थ दिखानेके लिये आगेकी कारिकाका अर्थ लिखते हुए भी इस पदका अर्थ लिखा है।
३-सूत्रका लक्षण इस प्रकार है--अल्पाक्षरं बह्वर्थ सूत्रम् ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org