Book Title: Sabhashya Vyavahar Sutra Ashtamoddeshak
Author(s): Vakil Keshavlal Premchand Modi
Publisher: Vakil Keshavlal Premchand Modi
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भष्टम
श्री व्यव- हारपत्रस्य पीठिकानंतरः।
॥२८॥
पातयिष्यामि यदि न स्थास्यसि एतच्च पर्यन्ते उच्यते । अन्यथा पूर्वमेव ज्ञातिभिर्मित्रैर्वा प्रभुणा तं गमयन्ति तथाप्यतिष्ठत्य-* नन्तरोदितं क्रियते;
विभागः। सूत्र-निग्गंथस्सणं गाहावति कुलं पिंडवाय पडियाए अणुपविठ्ठस्स अहालहुसए उवगरणजाए भ० उ. परिभट्टे सिया, तं च केइ साहम्मिए पासेज्जा कप्पइ से सागारकडं गहाय जत्थेव अन्नमन्नंपासेजा तत्थेव एवं वएज्जा इमे भे अजोकि परिन्नाए ? सेयवएजा, परिन्नाए तस्सेवपडिणिज्जाएव्वे सिया सेयवएजा नो परिन्नाए तं नो अप्पणा परिभुजेज्जा नो अन्नमन्नस्सदावए एगन्ते बहुफासुए थंडिले परिठवे. यव्वे सिया :. १२ ॥ निग्गंथस्सणं बहिया वियारभूमि वा विहारभूमिंवा निक्खंतस्स प्रहालहुसए (जहा १२) परिवेयव्वे सिया ॥१३॥ निग्गंथस्सणं गामाणुगाम दइजमाणस्स अन्नयरे उवगरणजाए | परिभटे सिया तं च केइसाहम्मिए पासेज्जा कप्पइ से सागारकडं गहाय दूरमेवयद्धाणं परिवहित्तए
जस्थेव अन्नमन्नं पासेजा तत्थेव (जहा १२) परिठवेयवे सिया ॥१४॥ इति सूत्रत्रयं ॥ अस्य संबधमाह ।। | गहियन्नरक्खणठा वइ सुत्तमिणं समासतो भणियं। उवहिसुत्ताउ इमे साहम्मिय तेण रक्खणट्ठा ॥१५३॥
अन्यकर्पटकादिरचणार्थ गृहीतेऽवग्रहे वाक्स्त्रमिदमनन्तरं समासतो भणितमिमानि च पुनरुपधिपत्राणि साधर्मिका
॥२८॥
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