Book Title: Rekhaganit Author(s): Atmaram Babu Publisher: Atmaram Babu View full book textPage 9
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रेखागणित पहिला अध्याय परिभाषा यानो किसो चोज़ को खासियतों का ऐसा बयान कि उससे बही चीज़ समझ में भाये (१) विन्द वह है जिसकी कोई जगह मुकररही लेकिन उसके टुकड़े न होसके टिप्पन किताबों में बिन्दु का यह निशान (• ) है यह निशान कितना ही छोटा क्यों न हो तो भी इसके टकड़े हो सक्त हैं इससे यह न समझना चाहिये कि बिन्दु के जिसका बयान रेखागणित में हुअा है टुकड़े होसक्त हैं रेखागणित का बिन्टु एक ऐसे छोटे से टेवयं की जगह को खयान को ज़ाहिर करता है जिसका विस्तार हम गुमान में नहीं ले सक्त है। (२) रेखा वह है जिसकी कोई जगह हो और जिसमें लम्बाई हो लेकिन चौड़ाई या मुटाई न हो टिप्पन बिन्दु के किसी दशा में हपति करने से रेखा पैदा होती है और रेखा के समझने में ल विधि सूचक लम्बाई और निधेध सूचक चौड़ाई का शामिल है रेखा दो तरह की यानी सौधौ और कुटिल होसक्ती है (३) रेखा के सिरे बिन्दु होते हैं टि. रेखा के सिरों से मुराद इस जगह रेखाके आदि ग्रन्त से है जहां एक रेखा दूसरी रेखा को काटती है वहां भी बिन्दु होता है (४) सरल या सीधीरेखा वह है जो अपने दोनों सिरों के वीच हमवार (यानी एकाही दिशा में) हो टि. अगर बिन्दु बगर अपनी रिशा के बदले हुए हरकत करे तो वह सीधी रेखा पैदा करेगा और अगर वह अपनी हरकत लगातार बदलता जाय तो उस हरकत से कुटिल या वक्र रेखा बनेगी इससे यह नतीजा निकलता है कि दो बिन्दुओं के दर्मियाम सिर्फ एक सीधी रेखा खींची जाखतो है For Private and Personal Use OnlyPage Navigation
1 ... 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 ... 220