Book Title: Ratnakarsuri Krut Panchvisi Jinprabhsuri Krut Aatmnindashtak Hemchandracharya Krut Aatmgarhastava
Author(s): Ratnakarsuri, Jinprabhsuri, Hemchandracharya
Publisher: Balabhai Kakalbhai

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Page 7
________________ नथी बोलतो ? अर्थात् न बोलवानुं पण ते सर्व बोले डे, तेम हे नाथ केण्हे कल्याणकारक, सानुशयः केण्बहु पातक संपादन करू ए माटे पश्चातापे युक्त एवो हूं, तवाग्रे के तारा अग्रनागने विषे, निजाशयं के० पोताना अनिमायने, यथार्थ कथयामि के यथार्थपणे कथन करुं छ. अर्थात् ९ मारो अभिप्राय तारी पासे प्रगट करुंछ ॥३॥ ॥ गाथा ४ थीना बुटा शब्दोना अर्थ. ॥ दत्तं आप्युं दी, न नहि दानं दानपरिशीलितं पाल्यु च-वली अने शालि सुंदर; मनोहर शीलं-शील तपः तप अनितप्तः तप्यो शुनसारो जाव: नाव अपि पण अनवत्-थयो नव-नवमां अस्मिन् आ (मां) विनो-हे प्रभु ! मया मारावडे ब्रांतम्-लमायु अहो अहो अरे मुधा फोकट एवज

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