Book Title: Ratnakarsuri Krut Panchvisi Jinprabhsuri Krut Aatmnindashtak Hemchandracharya Krut Aatmgarhastava
Author(s): Ratnakarsuri, Jinprabhsuri, Hemchandracharya
Publisher: Balabhai Kakalbhai

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Page 60
________________ (यह) शब्दार्थ :- हे नाथ ! तमारा मतरुत्री अमृत पानथकी उत्पन्न यता तरंगो ते छाहींथी मने परमानंदनी संपत्ति पाने बे ॥ १ ॥ ॥ गाथा २ जीना बुध शब्दांना अर्थ. ॥ = इतः हीं थी; आ | पामेला ठेकाणेथी च = वली अनादि संसार मूर्ति तः = अनादि संसारनी वासना वृद्धि | विष= फेर इतश्चानादि संसार, मूचितो मूर्त्तय त्यलम्; रागो रंग विष वेगो, हताशः करवाणि किम् ॥ २ ॥ शब्दार्थः - वली अहीं अनादि संसारनी वासनाए वृद्धि पामेला रागरुपी सर्वना विषनी बेचेनी मने अत्यंत मूर्छा पमाने बे माटे श्राशानंग थएलो डुं शुं करूं ? ॥ २ ॥ मूर्तयति = मूर्छा पाडेडे अलम= प्रत्यंत राग= राग; विषय नरग - साप आवेगः = बेचेनी हत = हणाएन । आशः आशा करवाणि= हूँ करूँ किम् =शुं

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