Book Title: Ratnakarsuri Krut Panchvisi Jinprabhsuri Krut Aatmnindashtak Hemchandracharya Krut Aatmgarhastava
Author(s): Ratnakarsuri, Jinprabhsuri, Hemchandracharya
Publisher: Balabhai Kakalbhai

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Page 30
________________ __( ए) पण, मया के हुँ जे-तेणे विटानां के नास्तिकादि विटपुरुषोनी, आत्मा न पुण्यं न नवो न पापं न के जीव नथी; पुण्य नथी, अवतार नथी, उष्कृत नथी; इयंकटुगीरपि के एवी कर्कश वाणीज कणे अधारि के कणेने विवे धारण करी. एटले श्रवण करी. ए माटे हे देव के हे केवलिपते ! मां धिक के गुण अने अवगुण एउनो विवेक न करनारो एवोजे हुं-तेने धिक्कार हो. १७॥ ॥ गाथा १७ मीना बुटा शब्दना अर्थ ॥ न-नहीं लब्ध्वा-पामीन. देवपूजा-प्रभुपूजा अपि-पण न-नही मानुष्यं मनुष्यपणुं चवली दं-आ पात्रपूजा-सुपात्रे दान समस्तं बधुं नम्नहि कृतं कर्य श्राधर्म-श्रावकधर्म मया में च-अने अरण्य जंगल न-नहीं विलाप रुदन साधुधर्मः साधु महाराजनो धर्म | तुल्यं सरखं न देवपूजा न च पात्रपूजा, न श्राध

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